अपडेट : संघर्ष में मारे गए लोगों की याद में मणिुपर बंद, जनजीवन प्रभावित
मणिपुर में जातीय संघर्ष की दूसरी बरसी पर विभिन्न समूहों ने बंद का आह्वान किया, जिससे मेइती और कुकी समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। हिंसा के कारण 260 से अधिक लोग मारे गए और 70,000 से ज्यादा लोग विस्थापित...

नोट : खबर में राहुल गांधी का वर्जन जोड़ा गया है और जयराम रमेश के बॉक्स को अपडेट किया गया है इंफाल/चुराचांदपुर/नई दिल्ली, एजेंसी। मणिपुर में जातीय संघर्ष की दूसरी बरसी पर शनिवार को विभिन्न समूहों की ओर से आहूत बंद से मेइती नियंत्रित इंफाल घाटी और कुकी बहुल पहाड़ी जिलों में जनजीवन प्रभावित रहा। 'मणिपुर अखंडता पर मैतेई समूह समन्वय समिति' (सीओसीओएमआई) ने घाटी के जिलों में बंद का आह्वान किया है , जबकि 'जोमी छात्र संघ' (जेडएसएफ) और कुकी छात्र संगठन (केएसओ) ने पहाड़ी जिलों में बंद आयोजित किया है। अधिकारियों के अनुसार, 2023 में इसी दिन मेइती और कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें 260 से ज्यादा लोग मारे गए और लगभग 1500 अन्य घायल हुए।
70,000 से ज्यादा लोग हिंसा के कारण विस्थापित हो गए। पूरे राज्य में शनिवार को बाजार बंद रहे, सार्वजनिक वाहन सड़कों से नदारद रहे और निजी कार्यालय बंद रहे। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज और अन्य संस्थान भी बंद रहे। अधिकारियों ने बताया कि किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए प्रमुख स्थानों पर सुरक्षाबलों को तैनात किया गया। हिंसा में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए इंफाल में शाम के समय मोमबत्ती जुलूस भी निकाला गया। पहाड़ी जिलों चुराचांदपुर और कांगपोकपी में कुकी समुदाय ने अलग क्षेत्र की मांग को लेकर 'डे ऑफ सेपरेशन' मनाया। जातीय हिंसा में मारे गए लोगों की याद में चुराचांदपुर शहर में बनाई गई 'वॉल ऑफ रिमेंबरेंस' और 'सेहकेन दफन स्थल' पर कार्यक्रम हुए। कुकी-जो और मेइती समूहों का दिल्ली में प्रदर्शन मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के दो साल पूरे होने पर कुकी-जो और मेइती समुदाय के सदस्यों ने शनिवार को दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर अलग-अलग प्रदर्शन किया। तीन मई 2023 को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी थी। काले कपड़े पहने कुकी-जो समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने पूर्वोत्तर राज्य में हुई हिंसा में मारे गए लोगों के लिए शोक व्यक्त किया और अपने समुदाय के लिए एक अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग दोहराई। विरोध प्रदर्शन का आयोजन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और कुकी-जो महिला फोरम, दिल्ली (केजेडडब्ल्यूएफडी) ने किया। दिल्ली स्थित कुकी-जो समुदाय की कार्यकर्ता ग्लैडी वैपे होन्जन ने कहा,'' हम सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि वह हमें कोई समाधान दे, हमें किसी अन्य राज्य के लोगों की तरह सामान्य जीवन जीने दे।'' प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर हिंसा में मारे गए और विस्थापित हुए लोगों के लिए एक मिनट का मौन रखा। लोग हाथों में तख्तियां थामे हुए थे जिन पर लिखा था, स्वतंत्रता का आह्वान: पृथक प्रशासन तथा न्याय नहीं, तो शांति नहीं। वहीं, सफेद कपड़े पहने मेइती समुदाय के प्रदर्शनकारी दिल्ली मेइती समन्वय समिति के बैनर तले एकत्र हुए। उन्होंने न्याय, पुनर्वास और आंतरिक रूप से विस्थापित सभी लोगों की उनके मूल घरों में सुरक्षित वापसी की मांग की। प्रधानमंत्री राजधर्म निभाने में विफल: खरगे नई दिल्ली, एजेंसी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मणिपुर में हिंसा की शुरुआत के दो साल पूरे होने पर शनिवार को दावा किया कि पूर्वोत्तर के इस राज्य में आज भी हिंसक घटनाएं नहीं रुकी हैं। प्रधानमंत्री राजधर्म निभाने में एक बार फिर विफल रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने सवाल किया कि मणिपुर के लोगों के प्रति इतनी उदासीनता और तिरस्कार क्यों है। राजनीतिक जवाबदेही कहां है? खरगे ने 'एक्स' पर पोस्ट किया, मणिपुर में दो साल से हिंसा हो रही है। 260 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 68,000 लोग विस्थापित हुए हैं। मगर प्रधानमंत्री वहां नहीं गए। अभी दो दिन पहले ही तामेंगलांग जिले में हुई हिंसक झड़प में 25 लोग घायल हो गए।खरगे ने प्रधानमंत्री से सवाल किया, डबल इंजन सरकार अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के संवैधानिक कर्तव्य में विफल क्यों रही? आपने पहले मुख्यमंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया? उन्होंने दावा किया कि केंद्र और राज्य का प्रशासन मणिपुर में विफल हो चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, केंद्र ने अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए जल्दबाजी में आधी रात को दो बजे राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रस्ताव संसद में पारित करा दिया। खरगे ने दावा किया कि मणिपुर की अर्थव्यवस्था को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है, इसके बावजूद राज्य के लिए अनुदान की मांग में कई सामाजिक व्यय में कटौती की गई। उन्होंने सवाल किया, गृह मंत्री द्वारा घोषित शांति समिति का क्या हुआ? आप दिल्ली में भी सभी समुदाय के प्रभावित लोगों से क्यों नहीं मिले? आपने राज्य के लिए विशेष पैकेज की घोषणा क्यों नहीं की? मोदी सरकार मणिपुर में शांति स्थापित करने में विफल रही: राहुल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार मणिपुर में शांति स्थापित करने में विफल रही है। राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया कि हिंसा के दो साल बाद भी मणिपुर का सामाजिक ताना-बाना बिखरा हुआ है, स्थिति अभी भी सामान्य नहीं हो पाई है। मोदी सरकार शांति स्थापित करने, समय पर राष्ट्रपति शासन लगाने और राज्य को एकजुट रखने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि सैकड़ों लोग मारे गए हैं, हजारों लोग राहत शिविरों में हैं और अभी तक प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा नहीं किया है। उपेक्षा के कारण हर दिन के साथ मणिपुर के घाव गहरे होते जा रहे हैं। मणिपुर राजनीतिक खेल जारी: जयराम रमेश पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर लिखा, आज से ठीक दो साल पहले मणिपुर में हिंसा की शुरुआत हुई थी। फरवरी 2022 में विधानसभा चुनावों में राज्य की जनता ने भाजपा और उसके सहयोगियों को निर्णायक जनादेश दिया था, जिसके बाद भी वहां हिंसा हुई। उन्होंने कहा कि मणिपुर के संबंध में उच्चतम न्यायालय को भी यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से नष्ट हो गया है। रमेश ने कहा कि राज्य विधानसभा में कांग्रेस द्वारा लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव को देखते हुए केंद्र सरकार ने बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया और अंततः 13 फरवरी 2025 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मणिपुर का प्रबंधन 'आउटसोर्स' किया है, लेकिन वह (शाह) पूरी तरह ''असफल'' साबित हुए हैं। मणिपुर में चुनाव कराए सरकार: कांग्रेस कांग्रेस ने शनिवार को आरोप लगाया कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के बावजूद हालात सामान्य नहीं हुए हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सप्तगिरि उलाका ने केंद्र से आग्रह किया कि राज्य में जल्द विधानसभा चुनाव कराए जाएं, ताकि वहां जनता की सरकार का गठन हो और मणिपुर में शांति स्थापित की जा सके। मणिपुर में हिंसा भड़कने के दो साल पूरा होने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, हम अपेक्षा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर के लोगों को आश्वासन देंगे और वहां जो भी घटना घटी है, उसकी जिम्मेदारी लेंगे, मगर प्रधानमंत्री आज तक मणिपुर नहीं गए और अब गृह मंत्री अमित शाह भी मणिपुर नहीं जा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मणिपुर में 55 विधायक होने के बाद भी राष्ट्रपति शासन लागू करने की क्या जरूरत पड़ी? क्या सरकार ने केवल इसलिए राष्ट्रपति शासन लागू किया, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने दबाव डाला था और (पार्टी) अविश्वास प्रस्ताव लाई थी। हजारों विस्थापितों को घर वापसी का इंतजार इंफाल, एजेंसी। मणिपुर में जातीय हिंसा को दो वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अब भी हजारों लोग अपने घरों से दूर राहत शिविरों और अस्थायी आवासों में रहने को मजबूर हैं। वे न केवल बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि अपने भविष्य को लेकर गहरी चिंता में भी डूबे हैं। मणिपुर में तीन मई, 2023 को मेइती और कुकी-जो समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 260 से अधिक लोग मारे गए हैं और 1,500 से ज्यादा घायल हुए। इसके चलते करीब 70,000 लोग विस्थापित हुए हैं। हालांकि, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को पद से हटाया जा चुका है, लेकिन शांति अब भी दूर की बात है। आपबीती 1. जी. किपगेन पहले एक कोचिंग संस्थान का संचालन करते थे, लेकिन आज तीन बच्चों के साथ शरणार्थी जीवन जी रहे हैं और इंफाल में अपने घर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने भावुक होकर कहा कि सबकुछ उजड़ गया है। न नौकरी है, न स्थिर आमदनी। बच्चों का भविष्य अंधकारमय लग रहा है। 2. विष्णुपुर जिले में अस्थायी घर में रह रहे मेइती समुदाय के अबुंग ने कहा कि पहले मेरी किराने की दुकान थी और अच्छा कारोबार हो रहा था। अब सब कुछ खो चुका हूं। यह जीवन किसी सजा से कम नहीं है। 3. इंफाल में रह रहीं अबेनाओ देवी ने कहा कि शुरुआत में कुछ मदद मिली थी, लेकिन अब जैसे हम सबको भुला दिया गया है। कभी-कभी तो खाने-पीने के लिए दूसरों की दया पर जीना पड़ता है। यह बहुत अपमानजनक है। सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने आंतरिक रूप से विस्थापितों को रोजगार योग्य बनाने के लिए कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया, लेकिन इन पहलों से उनके दुख को कम करने में कोई खास मदद नहीं मिली। दोनों पक्षों के बीच आम लोग पिस रहे कुकी समुदाय जहां अलग प्रशासन की मांग कर रहा है, वहीं मेइती समुदाय राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने और अवैध प्रवासियों की वापसी की मांग कर रहा है। दोनों पक्षों की मांगों के बीच आम लोग पिस रहे हैं। पुराने उग्रवादी संगठन फिर सक्रिय एक केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी ने बताया कि अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सशस्त्र समूहों ने समुदायों पर नियंत्रण कर लिया है। आम लोगों की पीड़ा को नजरअंदाज कर ये समूह अपना राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कई पुराने उग्रवादी गुट फिर से सक्रिय हो गए हैं और बेरोजगार युवाओं को भर्ती कर रहे हैं। इंफाल घाटी में जबरन वसूली का खेल चल रहा है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।