Brass industry hit by tariff war टैरिफ वार की चपेट में आया पीतल उद्योग, Aligarh Hindi News - Hindustan

टैरिफ वार की चपेट में आया पीतल उद्योग

ट्रंप के टैरिफ वार से शुरू हुआ वैश्विक दबाव अब अलीगढ़ के मेटल कारोबार को पूरी तरह चपेट में ले चुका है। बाजारों में गिरावट का सिलसिला जारी है। खरीदार गायब हैं और अनिश्चितता के इस दौर में उत्पादन ठप हो गया है।

Sunil Kumar लाइव हिन्दुस्तानWed, 16 April 2025 07:17 PM
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टैरिफ वार की चपेट में आया पीतल उद्योग

कारोबारियों का कहना है कि धातुओं के दामों में बेहताशा बढ़ोत्तरी से भी कारोबार प्रभावित है। ऐसे में इकाइयों पर काम का संकट मंडराने लगा है। पिछले सात वर्षों में धातुओं की कीमतों में आई बेतहाशा वृद्धि ने अलीगढ़ के पारंपरिक हार्डवेयर और आर्टवेयर उद्योग की कमर तोड़ दी है। पीतल, जस्ता, तांबा, लोहा, स्टील और निकिल जैसे कच्चे माल की कीमतें दोगुना तक पहुंच गई हैं। जिससे उद्योग का लागत मूल्य काफी बढ़ गया है। इसके अलावा हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उत्पादों पर टैरिफ वार छेड़ दिया है। परिणामस्वरूप, अलीगढ़ का कारोबार लगभग 60 प्रतिशत तक घट चुका है।

ताला, मूर्ति और हैंडल जैसे उत्पादों के लिए मशहूर अलीगढ़ की देश-दुनिया में एक अलग पहचान रही है। परंतु अब वैश्विक आर्थिक तनाव और घरेलू स्तर पर मांग में गिरावट के कारण इस पहचान पर संकट मंडरा रहा है। निर्माण लागत में बढ़ोत्तरी और नए ऑर्डरों की कमी ने व्यापारियों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। छोटे कारोबारियों से लेकर बड़ी विनिर्माण इकाइयों तक सभी के पास ऑर्डर कम हो गए हैं और बाजार में पूंजी की भारी कमी देखी जा रही है। जिले के करीब दो हजार से अधिक जॉब वर्क यूनिट्स, जो सीमित संसाधनों में बड़ी कंपनियों के लिए उत्पादन करती थीं। अब लागत बढ़ने के कारण ठप पड़ने की कगार पर हैं। इन इकाइयों में कार्यरत हजारों श्रमिकों के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया है। इस बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों ने वैश्विक व्यापार को और गहरा झटका दिया। ट्रंप प्रशासन द्वारा विभिन्न उत्पादों पर लगाए गए भारी टैरिफ के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में धातुओं की मांग में गिरावट आई। इसका सीधा असर मेटल इंडस्ट्री पर पड़ा, जिससे भारत जैसे विकासशील देशों के उद्योग प्रभावित हुए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि धातुओं की कीमतों पर नियंत्रण नहीं पाया गया और वैश्विक स्तर पर व्यापार नीति में स्थिरता नहीं आई, तो आने वाले समय में अलीगढ़ जैसे कारीगरी के केंद्रों के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।

बोले कारोबारी

बाजार की हालत बेहद खराब है। ग्राहक आ नहीं रहे, ऑर्डर मिल नहीं रहे। फैक्टरी चलाने लायक भी काम नहीं है। सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी तो मजबूरी में इकाई बंद करनी पड़ेगी।

अश्विनी वार्ष्णेय

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जीएसटी की जटिलता ने व्यापारी को उलझा दिया है। अफसर माल पर नहीं, फाइल पर ध्यान दे रहे हैं। टैक्स देना अलग, जवाब देना अलग चुनौती है। हर महीने कोई न कोई नोटिस आ जाता है।

आशीष गोयल

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दो फीसदी टीडीएस का नियम हमारे जैसे छोटे कारोबारियों के लिए बहुत नुकसानदायक है। पूंजी पहले ही सीमित होती है, उस पर ये कटौती हमें और कमजोर कर रही है। इसे तुरंत खत्म किया जाना चाहिए।

ह्देश गुप्ता

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एमएसएमई का 45 दिन में भुगतान वाला नियम कागजों में अच्छा लगता है। जमीन पर कोई पालन नहीं कर रहा। बड़ी कंपनियां 90 दिन से भी ज्यादा पेमेंट रोके बैठी हैं। इसका क्या फायदा।

ऋषि वार्ष्णेय

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ट्रंप के टैरिफ वार ने पहले ही एक्सपोर्ट खत्म कर दिया। अब घरेलू बाजार में भी ऑर्डर नहीं हैं। लागत बढ़ती जा रही है और मुनाफा तो दूर, अब तो लागत भी नहीं निकल रही।

मुरली वार्ष्णेय

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बैंक लोन की ईएमआई और जीएसटी रिटर्न की तारीखें पीछा नहीं छोड़तीं। कारोबारी का ध्यान व्यापार पर कम और कागजी कार्रवाई पर ज्यादा लगने लगा है। इससे हमारी उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

संयोग मित्तल

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वर्तमान में काम की स्थिति काफी खराब है। इकाइयों से रोजाना मजदूरों को घर भेजा जा रहा हैं। रोजाना का खर्च निकालना भी भारी पड़ रहा है। काम रुक गया है। ऐसे में सरकार से उम्मीद है कि वो टैक्स में छूट और सस्ती बिजली की सुविधा दे।

आलोक अग्रवाल

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हर बार कहा जाता है कि लघु उद्योग देश की रीढ़ हैं। लेकिन हमें सबसे ज्यादा दबाया जा रहा है। न मदद मिलती है, न सुनवाई। जीएसटी, टीडीएस और लेबर नियमों ने हालत खराब कर दी है।

नरेश कामख्या

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ट्रंप का टैरिफ वार वैश्विक स्तर पर अपना असर दिखा रहा है। भारतीय बाजार पूरी तरह से धड़ाम हैं। ऐसी हालत पहले कभी नहीं देखी। बाजार में मंदी, ऑर्डर में गिरावट और अब अफसरशाही का डर है। इन सबसे कारोबार करने का मन ही नहीं होता।

संजय वार्ष्णेय

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जीएसटी अफसर जब चाहें जांच के नाम पर दस्तावेज मांग लेते हैं। ईमानदार व्यापारी परेशान होता है। सरकार को इस पर सख्त कदम उठाना चाहिए। बाजार को नियंत्रित करने का तरीका खोजना होगा।

संतोष कुमार गुप्ता

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सिस्टम ऐसा बना दिया गया है कि व्यापारी दिनभर हिसाब-किताब में उलझा रहता है। ना ग्राहक है, ना पैसा, और ऊपर से अफसरशाही। छोटे उद्योग ऐसे ही दम तोड़ देंगे।

सुरेंद्र कुमार गुप्ता

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अलीगढ़ में लोगों का काम निर्यात पर निर्भर है। ट्रंप की टैरिफ नीति से हमारा अमेरिका वाला ऑर्डर कैंसिल हो गया। इसके बाद कोई नया ऑर्डर नहीं आया। अब घरेलू नियमों ने भी दम निकाल दिया है।

गौरव वार्ष्णेय

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बड़ी कंपनियां पेमेंट रोककर बैठी हैं और एमएसएमई को मजबूरी में कर्ज लेकर काम चलाना पड़ता है। सरकार ने नियम बनाया है, पर उसके पालन की कोई निगरानी नहीं है।

नवीन चंद्र

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जिन कारोबारियों ने हाल ही में आधुनिक मशीनों पर निवेश किया था। अब काम ही नहीं है। ब्याज का बोझ, बिजली का बिल और टैक्स सब मिलकर हमारी कमर तोड़ रहे हैं। कोई राह नहीं दिख रही।

अरविंद कुमार

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व्यापारी का भरोसा सिस्टम से उठता जा रहा है। हम हर नियम मानते हैं, लेकिन हमारे साथ ही सख्ती क्यों। ईमानदार व्यापारी से हर बात पर दस्तावेज मांगे जाते हैं। उसे परेशान किया जा रहा है।

नवनीत वार्ष्णेय

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मेटल सिटी के नाम पर देशभर में पहचान है, लेकिन यहां के हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे हैं। सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो कई इकाइयों में ताले लग जाएंगे।

मनोज वार्ष्णेय

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व्यापारी टैक्स देता है, नौकरियां देता है, लेकिन फिर भी उसे अपराधी की तरह देखा जाता है। हर बार अफसर ऐसे सवाल पूछते हैं जैसे हम कोई घोटाला कर रहे हों। ये मानसिक दबाव भी बहुत होता है।

पीयूष वार्ष्णेय

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हमने उम्मीद की थी कि जीएसटी आने के बाद सिस्टम सरल होगा, लेकिन उल्टा और जटिल हो गया। पुराने टैक्स सिस्टम में कम से कम इतनी दिक्कत नहीं थी। अब तो हर दिन नई मुसीबत है।

गौरव गुप्ता

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बाजार में इतनी मंदी है कि ग्राहक भाव पूछकर निकल जाता है। लागत कम नहीं हो रही, ऊपर से टैक्स और पेमेंट अटके हुए हैं। ऐसे में हम कैसे सर्वाइव करें।

इंद्र देव वार्ष्णेय कन्हैया

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हमें सरकार से सिर्फ यही उम्मीद है कि वो मेटल कारोबार को समझे, उससे जुड़े नियम सरल बनाए और भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता लाए। वरना यह क्षेत्र बुरी तरह टूट जाएगा।

राजेंद्र प्रसाद वार्ष्णेय

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