किस्मत जो आवे सामने तू मोड़ दे उसका पंजा रे
अलीगढ़ के पहलवानों ने जहां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहलवानी में सफलता के झंडे गाड़े हैं। पहलवानी सिर्फ शौक तक ही सीमित होती जा रही है क्योंकि स्थानीय स्तर पर न मिलने वाली सुविधाओं की वजह से उन्हें मंजिल तक पहुंचने का रास्ता नजर नहीं आता है।
देश को पहली महिला पहलवान देने वाला अलीगढ़ से अब कब निकलेगा कोई सितारा
देश को हमीदा बानू के तौर पहली महिला पहलवान देने वाला अलीगढ़ सालों से इंतजार में है कि कैसे कोई यहां का पहलवान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन करे। हालांकि कुछ पहलवान ऐसे भी हैं जिन्होंने अभावों में खुद को निखार कर अपनी पहचान बनाई है। जिनमें एक नाम रामेश्वर पहलवान हैं, जिन्होंने भारत केसरी जैसे कई अन्य खिताब हासिल किए। इसके अलावा कई अन्य नाम भी हैं। लेकिन कुश्ती को प्रोत्साहन न मिलने की वजह से मोहभंग हो रहा है। युवा पहलवान अखाड़े में कुश्ती के पैतरें सीखने के लिए घंटों पसीना बहाते थे। मल्ल युद्ध कला सीखने के लिए दिन रात अखाड़े में जमे रहते थे। अब समय के साथ कुश्ती का तरीका भी बदल रहा है। पहले अखाड़ों में मिट्टी पर कुश्ती हुआ करती थी। अब मिट्टी की जगह मैट ने ले ली है। कुश्ती की सभी प्रतियोगिताएं अब मैट पर होती है। पहलवानों के लिए पारंपरिक दंगलों की संख्या भी सीमित रह गई है। इसलिए जिले के पहलवानों को आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ रहा है। कुश्ती के खेल में दम दिखाकर परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं। इसलिए पहलवानों में निराशा का भाव है।
बातचीत में पहलवानों ने बताया कि अधिकांश पहलवान ग्रामीण अंचल से आते हैं। इनमें ज्यादातर पहलवानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मैट के जमाने में पहलवानों को मिट्टी में पसीना बहाना पड़ रहा है। डाइट के लिए भी इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। पहलवानों ने कहा कि गांवों में भी मैट पर कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे युवा खिलाड़ियों को बहुत फायदा मिलेगा।
कुश्ती खिलाड़ियों को मिले हॉस्टल की सुविधा
जिले में कुश्ती खिलाड़ियों की प्रेक्टिस स्पोर्ट्स स्टेडियम में होती है। देहात के युवा कुश्ती के दांव पेंच सीखने के लिए स्टेडियम पहुंचते हैं। स्टेडियम आने जाने में युवा पहलवानों का अच्छा खासा खर्चा हो जाता है। ऐसे में युवा पहलवानों ने स्टेडियम में कुश्ती खिलाड़ियों के लिए अलग से हॉस्टल बनाए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि हॉस्टल बन जाने से युवाओं का आने जाने का खर्च और समय बच जाएगा। हॉस्टल स्टेडियम परिसर में होगा तो वह कुश्ती सीखने में ज्यादा समय दे पाएंगे। हर समय कुश्ती कोच के संपर्क में रह पाएंगे। हॉस्टल खुलने से युवा कुश्ती खिलाड़ियों को बुहत फायदा मिलेगा।
पदकवीरों को मिले सरकारी नौकरी
पहलवानों ने पदकवीर कुश्ती खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि बहुत सारे पहलवान ऐसे हैं। जिन्होंने प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं। इसके बाद भी उन्हें मेहनत का लाभ नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि जो खिलाड़ी जिला स्तर पर प्रतियोगिता में पदक जीतें। उन्हें उसी स्तर की नौकरी दी जाए। जिससे आने वाले युवाओं को प्रोत्साहन मिले।
अखाड़ों की मद्द को आगे आएं उद्यमी और समाजसेवाी
बातचीत के दौरान पहलवानों ने सुझाव भी दिया कि अगर शहर के बड़े उद्यमी या समाजसेवी स्थानीय स्तर पर अखाड़ों को गोद लेकर वहां पर व्यवस्थाओं को सुधारने का प्रयास करें तो इससे काफी राहत मिलेगी। इसके अलावा कुछ बड़े दंगलों का आयोजन भी कराया जाए जिससे कि यहां के युवा पहलवान अपने जौहर दिखाएं। इससे उनका खेल तो सुधरेगा ही साथ ही उन्हें आर्थिक सहायता भी मिल सकेगी। एएमयू जैसे संस्थान भी इसको लेकर योजना बनाएं।
गांवों में बने मिनी स्टेडियम, मेट का हो इंतजाम
प्रतियोगिताएं भी कच्ची मिट्टी पर होती थी। अब ऐसा नहीं होता है। अब सभी पेशेवर प्रतियोगिताएं के बजाय मैट पर होती हैं। इसलिए जिले के युवा पहलवान भी मिट्टी के बजाय गेट पर पसीना बहाना चाहते हैं। उनका कहना है कि कुश्ती के खेल को बढ़ावा देना है तो गांवों के आसपास मिनी स्टेडियम बनाने होंगे। वहां पहलवानों के लिए मैट का इंतजाम करना होगा। कोच की तैनाती करनी होगी। युवा खिलाड़ी जब रोजाना मैट पर प्रेक्टिस करेंगे। तो उनके प्रदर्शन में निखार आएगा।
पावर स्टार पवन कल्याण के साथ नजर आएंगे रामेश्वर
सिकंदराराऊ के मूल निवासी रामेश्वर पहलवान ने जहां कुश्ती में भारत केसरी जैसे खिताब जीते हैं। उन्होंने शहर के शांतिकुंज अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास किया और यहां से निकल कर नाम कमाया। रामेश्वर पहलवान ने बताया कि पहलवानी में उन्होंने देश प्रदेश में कुश्ती लड़कर कई इनाम जीते हैं। दंगल फिल्म में उन्होंने आमिर खान के साथ काम किया। इसके पश्चात मुंबई जाकर कई क्षेत्रीय फिल्मों में पहलवान की भूमिका में काम किया। उन्होंने दक्षिण के कई स्थानों पर जाकर हरिहरा के निर्देशन में वीरमल्लू फिल्म में एक्शन सीन दिए हैं। फिल्म के नायक पवन कल्याण के साथ काफी देर तक उन्होंने यह सीन शूट किया है। यह मूवी एक्शन मूवी है। शीघ्र ही यह सिनेमाघरों में रिलीज होगी। रामेश्वर पहलवान के नक्शेकदम पर अब उनका बेटा अरुण भी पहलवानी में जोर आजमाइश कर रहा है।
बोले लोग
अलीगढ़ में कुश्ती की परंपरा काफी पुरानी है। लेकिन आज के युवाओं को जुनून के साथ संसाधनों की जरूरत भी है। अगर सरकार और स्थानीय निकाय मिलकर अखाड़ों को सहयोग दें। तो यहां से नेशनल लेवल के खिलाड़ी निकल सकते हैं।
गंगे पहलवान, अध्यक्ष, अखाड़ा कुश्ती प्रोत्साहन संघ
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छोटे-छोटे बच्चे रोजाना सुबह अखाड़े में अभ्यास करते हैं। लेकिन मिट्टी और दवाई जैसी जरूरी चीजों की भारी कमी है। अगर प्रशासन ध्यान दे, तो बच्चों का भविष्य सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहेगा, खेलों में भी बनेगा।
ऋषि पहलवान, महामंत्री, अखाड़ा कुश्ती प्रोत्साहन संघ
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कुश्ती मेहनत और अनुशासन का खेल है। लेकिन आज के लड़कों को सही मार्गदर्शन और कोचिंग की कमी है। अखाड़ों को आधुनिक बनाया जाए और पहलवानों को डाइट का सहयोग मिले तो अलीगढ़ की पहचान बदल सकती है।
रेवती प्रसाद अग्रवाल
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अब समय आ गया है कि लड़कियों को भी कुश्ती के लिए प्रेरित किया जाए। कुश्ती सीखना सिर्फ आत्मरक्षा ही नहीं आत्मनिर्भर बनने का जरिया भी है। सुरक्षित और नियमित ट्रेनिंग से खिलाड़ी अलीगढ़ का नाम रोशन कर सकती हैं।
बिलाल खलीफा
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कुश्ती हमारे समाज से जुड़ी विरासत है। हर मोहल्ले में एक अखाड़ा हो, ये जरूरी है। आज के बच्चों को स्क्रीन से हटाकर अखाड़े में लाना होगा, तभी असली ताकत और अनुशासन सीखा जा सकता है।
यासीन खलीफा
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कुश्ती एक सशक्त खेल है। इसके प्रति माता-पिता को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी। लड़कियां भी अखाड़े में जा सकती हैं। सरकार को लड़कियों के लिए अलग सुविधाएं देनी चाहिए।
रईस खलीफा
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अगर शहर में एक केंद्रीय कुश्ती प्रशिक्षण केंद्र बने तो हमें तकनीकी और पेशेवर ट्रेनिंग मिल सकती है। इसके लिए सरकार को कुश्ती प्रोत्साहन की ओर बढ़ावा देना होगा। जिससे खिलाड़ियों को पंख लग सकें।
इस्राइल खलीफा
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कुश्ती गांव-कस्बों की जान रही है। परंपरा के साथ-साथ अब इसे करियर विकल्प के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इसके लिए स्कूल स्तर पर ही कुश्ती को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
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कुश्ती केवल लड़कों का खेल नहीं है। आज लड़कियां भी इसमें शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। हमें ज़रूरत है ऐसे स्पेस बनाने की जहां वे सुरक्षित महसूस करें और नियमित अभ्यास कर सकें।
नीटू वार्ष्णेय
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शहर के उद्योगपति या व्यापारी मिलकर अगर स्थानीय अखाड़ों को गोद लें. तो संसाधनों की कमी काफी हद तक दूर हो सकती है। ये सीएसआर का हिस्सा भी हो सकता है। कुश्ती में निवेश, युवाओं में निवेश है।
धर्मेंद्र
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एएमयू जैसे संस्थानों में भी कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। महिलाओं के लिए विशेष कोचिंग कैंप आयोजित हों। जिससे वे भी प्रतियोगी स्तर तक पहुंच सकें।
रिषभ पहलवान
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हम दिन-रात कुश्ती के दांव-पेंच सीखते हैं और बच्चों को सिखाते भी हैं। लेकिन सरकारी मदद या सम्मान नहीं मिलता। अगर गांव और शहर दोनों स्तर पर पहलवानों को मान्यता मिले, तो युवाओं में उत्साह बढ़ेगा।
भुटिया पहलवान
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दंगल फिल्म देखकर कुश्ती में रुचि ली थी। लेकिन हमारे क्षेत्र में कोई महिला कोच नहीं है। सरकार कोच की नियुक्ति करे और अलग कुश्ती केंद्र बनाए। जिससे युवाओं की रुचि बढ़ेगी।
समीर पहलवान
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कुश्ती में शहर के युवा काफी अच्छा कर रहे हैं। लेकिन जब तक उन्हें डाइट, स्पोर्ट्स गियर और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पैसा नहीं मिलेगा, तब तक वे रुक जाएंगे। यह जमीनी सच्चाई है।
आदित्य
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अखाड़े में आकर लोग अपने गुस्से और लापरवाही पर काबू पा सकते हैं। कुश्ती एक जीवनशैली है जिसे अनुशासन में रहकर हासिल किया जा सकता है। सरकार अगर स्कूलों में नियमित कुश्ती सत्र रखे, तो ज्यादा बच्चे इससे जुड़ेंगे।
कृष्णा
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खेलों का मानसिक स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। कुश्ती जैसे खेल युवाओं में आत्मबल, अनुशासन और लक्ष्य की भावना लाते हैं। यह केवल शारीरिक खेल नहीं, बल्कि मानसिक विकास का भी माध्यम है।
मोइन
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हमने नगर निगम स्तर पर प्रस्ताव रखा है कि हर इलाके में खेल मैदान के साथ एक अखाड़ा हो। कुश्ती को गांव और शहर दोनों में साथ-साथ बढ़ावा मिलना चाहिए।
आकिब
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कुश्ती में करियर की संभावनाएं हैं। सेना, पुलिस भर्ती, स्पोर्ट्स कोटा आदि। लेकिन ये तभी होगा जब खिलाड़ी लगातार अभ्यास करें और सरकार उन्हें नियमित कोचिंग व ग्राउंड दे।
राजू
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कुश्ती जैसी पारंपरिक खेलों में अगर लड़कियों की भागीदारी बढ़े तो पूरे समाज की सोच बदल सकती है। हम इसके लिए वर्कशॉप और बालिकाओं के लिए विशेष कैंप चलाने की योजना बना रहे हैं।
सागर पहलवान
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कुश्ती मेरे लिए गर्व की बात है। मैंने कई बड़े-बड़े खिलाड़ियों को अखाड़े में पसीना बहाते देखा है। अलीगढ़ में अगर जिला स्तर पर नियमित प्रतियोगिताएं हों, तो यहां की प्रतिभा राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकती है।
सैफुल्ला प्रिंस
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