जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना पड़ा महंगा, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ठोका 2 हजार का जुर्माना
उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति को हाईकोर्ट के न्यायाधीशों पर झूठा आरोप लगाना महंगा साबित हुआ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उसे अदालत की अवमानना का दोषी करार देते हुए 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

यूपी में एक शख्स को हाईकोर्ट के न्यायाधीशों पर झूठा आरोप लगाना महंगा पड़ गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को अदालत की अवमानना का दोषी पाते हुए उस पर 2 हजार का जुर्माना लगाया। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की पीठने पाया कि अवमाननाकर्ता देवेंद्र कुमार दीक्षित ने साल 2016 में एक निराधार शिकायत की थी। जिसमें उसने आरोप लगाया था कि जज ने उसके द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करने के लिए पैसे लिए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि देवेंद्र कुमार दीक्षित का यह कृत्य न्यायलय के अधिकार को कम और बदनाम करता है। न्यायालय ने आदेश दिया कि देवेंद्र कुमार दीक्षित को अधिनियम 19971 की धारा 2 (सी) (आई) के तहत इस न्यायालय की आपराधिक अवमानना करने का दोषी मानते हैं। लेकिन उनकी वृद्धावस्था और पहला अपराध देखते हुए उन पर केवल 2 हजार का जुर्माना लगाया जाता है। जो एक महीने के भीतर लखनऊ पीठ के वरिष्ठ रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होगा। ऐसा न करने पर एक हफ्ते का कारावास सजा भुगतना होगा।
दरअसल साल 2016 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर देवेंद्र कुमार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई थी। जिसके जबाव में दिक्षित ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति को शिकायत भेजी थी और यह नहीं जानते थे कि वह उच्च न्यायालय तक कैसे पहुँची। इसलिए, उन्होंने राष्ट्रपति भवन के कवरिंग/फॉरवर्डिंग पत्र की प्रति मांगी थी। हालांकि, न्यायालय ने उनकी इस मांग को अस्वीकार कर दिया और टिप्पणी की कि यह पत्र अवमानना कार्यवाही से संबंधित नहीं है। इस वर्ष जनवरी में, न्यायालय ने दिक्षित के खिलाफ आरोप तय किए। इसके बाद, उन्होंने फिर से कवरिंग पत्र की प्रति की मांग दोहराई और दलील दी कि यह पत्र उनके मामले को साबित करने के लिए आवश्यक है।