भागवत महापुराण की रचना सत्य के विजय की पुनर्प्रतिष्ठा है
Ayodhya News - अयोध्या में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य राधेश्याम शास्त्री ने सत्य और समर्पण के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने भीष्म के उदाहरण से बताया कि असली समर्पण तब होता है जब व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों...

अयोध्या। सत्य जीतता है, असत्य कभी नहीं। इसकी घोषणा करने और इस घोषणा की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए महाभारत की कथा से ही भागवतारम्भ है। भीष्म को पता कि सत्य कहां है ? उन्हें यह भी पता है कि जीत कहां होगी? फिर भी दुर्योधन के तरफ खड़े हैं कि देख लो बड़े बड़े खड़े हैं किन्तु जीता सत्य ही। इसीलिए भीष्म की गरिमा बढ़ी हुई है भीष्म अगर कहते कि युधिष्ठिर और अर्जुन और पांडवों के पक्ष में तू मुझे खड़ा कर दे, तो मैं समर्पण को राजी हूं तब तो समर्पण कुछ बहुत गहरा न हुआ होता। यह उद्गार मणिराम छावनी के प्राकृतिक चिकित्सालय के प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अवसर पर प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य राधेश्याम शास्त्री ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जिस बात के लिए तुम राजी हो, उसमें समर्पण करने में कौन-सी कठिनाई है! वस्तुत: तुम समर्पण का आवरण ओढ़ रहे हो, मर्जी तुम्हारी ही है। भीष्म ने अपने को ऐसी विपरीत दशा में छोड़ दिया, जहां कि समर्पण अति कठिन है, असंभव है। अंधेरे के पक्ष में छोड़ दिया। अगर प्रभु की यही मर्जी है, तो यही होगा। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को भीष्म के पास धर्म की शिक्षा के लिए भेजा, क्योंकि जिसका समर्पण इतना गहरा होगा , वह परमात्मा के उतने सन्निकट होगा।
आचार्य प्रवर ने कहा कि व्यक्ति जैसी भी परिस्थिति हो, बिना किसी शर्त के समर्पण करता है, वही असली समर्पण है। अपनी मर्जी के अनुसार स्थिति हो और तब समर्पण करो, तो आप सब समर्पण के धोखे में मत पड़ो क्योंकि आप चतुराई दिखा रहे हो इसलिए पकड़े जाओगे। उन्होंने कहा कि जब सुख बरसता हो, स्वर्ग पास हो, तब तुम यह मत कहना कि प्रभु, तेरी ही मर्जी पूरी हो। जब नरक द्वार पर दस्तक देता हो, अंधकार सब तरफ से घेरे हो, पराजय सुनिश्चित हो, पैर के नीचे की भूमि खिसकती हो, कहीं सहारा न मिलता हो, नाव ड़बने ही वाली हो, आंधियां हों, अंधड़ हों, तब भी तुम कहना, प्रभु तेरी ही मर्जी पूरी हो। तो तुम्हारे समर्पण की जो गहराई होगी, वही असली गहराई है।
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