बोले हाथरस: जूड़ो कराटे को मिले संजीवनी तो प्रतिभा भरें भविष्य की उड़ान
काका की नगरी में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। एक खोजों तो एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं सामने आती है। ये खेल प्रतिभा विषम परिस्थिति में भी कड़ी मेहनत करने के साथ खुद को हुनरबंद बनाया है। केवल ये सोचकर खुले आसमान के नीचे घंटों पसीना बहाया है कि एक दिन उनकी भी किस्मत चमकेगी।
संवाद कार्यक्रम में जूडो और कराटे सीख रहे खिलाड़ियों ने कहा कि खेल के मैदान पर पारदर्शिता बरते जाने की जरूरत है। तभी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों को उनका मुकाम मिल पाएगा। लगातार बढ़ते अपराधों को देखते हुए आजकल अभिभावक अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास शुरू कर देते है। जूडों कराटे के जरिए अभिभावक अपने बेटे और बेटियों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। जिससे कि विषम परिस्थिति में वो अपने हुनर के जरिए असमाजिक तत्वों का सामना करके उन्हें धूल चटा सके। जूडो और कराटे के खेल में भविष्य बनाने के लिए प्रेक्टिस करते हैं। अन्य खेलों से भी हजारों की संख्या में खिलाड़ी जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ खिलाड़ी तो संपन्न हैं लेकिन कई हुनरमंद खिलाड़ी ऐसे भी हैं। जो सुविधाओं का अभाव झेल कर भी अपने खेल प्रतिभा को लगातार तराश रहे हैं। आर्थिक अभाव की पथरीली जमीन उनके इरादों को और ठोस कर रही है। इन खिलाड़ियों में काफी संख्या बेटियों की भी है। जो इसी उम्मीद में हैं कि उनकी प्रतिभा को भी एक न एक दिन सम्मान मिलेगा। देश के लिए कुछ कर गुजरने का अवसर मिलेगा। लेकिन ये आसान काम नहीं है। निजी संस्थान के जरिए खिलाड़ी हुनरमंद बन रहे है। हालांकि कोच हर कदम पर खिलाड़ियों का साथ देकर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। लेकिन वो भी खेल प्रतिभाओं के साथ अन्याय होते देख दुखी हो जाते हैं। कोच ने बताया कि उन्होंने कई मुकाबलों में खेल प्रतिभाओं के साथ अन्याय होते देखा है। यही वजह है कि अच्छे खिलाड़ी ये हालात देखकर मैदान से दूरी बना लेते हैं। अच्छी प्रतिभाएं भी गुमनामी के अंधेरे में खो जाती है। हिन्दुस्तान ने जूड़ों कराटे के खिलाड़ियों व प्रशिक्षकों से बातचीत की तो उन्होंने अपना दर्द बया किया। युवा खिलाड़ी कहते हैं कि उन्हें पर्याप्त सुविधाएं मिलनी चाहिए। जिससे वह अपनी प्रतिभा को निखार पाएं। परिवार और कोच का नाम रोशन कर सकें।
स्टेडियम में नहीं है कोई सुविधा
जिला बनने के बाद कलेक्ट्रेट के निकट जिला स्टेडियम की स्थापना इस मकसद के साथ कराई गई। जिससे कि जनपद के विभिन्न खेलों के खिलाड़ियों को बेहतर संसाधनों की सुविधा मिलेगी और वो प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में अपने खेल को गति देंगे। सरकार ने स्टेडियम का निर्माण तो करोड़ों रुपया खर्च करके बनवा दिया गया,लेकिन दो दशक बीत जाने के बाद भी स्थिति यह है कि स्टेडियम में नाम मात्र प्रशिक्षक है। संसाधनों का काफी अभाव है,जिस वजह से वहां खिलाड़यों को बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पा रही। जिस वजह से खेल प्रतिभाओं को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यदि सरकार सुविधा उपलब्ध कराए तो बेहतर प्रतिभा निकलकर आ सकती है।
निजी संस्थान दे रही प्रशिक्षण
वर्ल्ड बूडो सोतोरियो कराटे महासंघ इंडिया के प्रेसीडेंट सिहान एम एस सामुराई पिछले करीब 15 सालों से जूडों कराटे का अलख जलाएं हुए है। उनके द्वारा जनपद के अलावा देश और देश के बाहर भी बेहतर प्रतिभाओं को पहुंचाया गया। लगातार जनपद में जूडों कराटे का एक आयोजन होता है। जिससे प्रतिभा अपने खेल को निखार पाते है। प्रतियोगिता में कई खिलाड़ियों ने पदक भी जीते। बेटियों ने बताया कि खेल में निखार के साथ उन्हें आत्मरक्षा के गुण भी सीखने को मिल रहे हैं। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। कोच के पास पर्याप्त संसाधन न होने की वजह से बेटियों में मायूसी नजर आई। उन्होंने जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से मांग की है कि उन्हें दो घंटे प्रेक्टिस के लिए कोई पार्क मिल जाए तो उनकी मुश्किल हल हो जाए।
अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की जरूरत
हाथरस की खेल प्रतिभाओं ने कई प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व किया है। यहां लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के निर्माण की मांग की जा रही है। जनप्रतिनिधि भी कई बार शासन को पत्राचार कर चुके हैं। इसके बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की मांग की अब तक पूरी नहीं हो पाई है। यही वजह भी है कि हाथरस से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार खिलाड़ी नहीं निकल पा रहे हैं। क्रिकेट के क्षेत्र में आगरा की महिला और पुरुष खिलाड़ियों ने जरूर भारतीय टीमों में जगह बनाई है। लेकिन जूडो कराटे समेत अन्य खेलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
नियमित रूप से आयोजित कराई जाएं प्रतियोगिताएं
जूडो कराटे सीख रही बेटियों ने नियमित रूप से ओपन प्रतियोगिताएं कराए जाने की मांग उठाई है। उनका कहना है कि ओपन प्रतियोगिताएं आयोजित होने से जिले के सभी खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा। इससे बेहतरीन खेल प्रतिभाएं सामने आएंगी। खिलाड़ियों के चयन में भी पारदर्शिता रहेगी। ऐसा होना शुरु हो जाएगा तो खिलाड़ी भी प्रतियोगिताओं में जीत के लिए जी जान लड़ा देंगे। देश के लिए मेडल जीतने को कुछ भी कर गुजरेंगे। उन्होंने बताया कि वर्तमान में ज्यादातर प्रतियोगिताएं निजी स्तर पर भी कराई जा रही हैं। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए अच्छी खासी एंट्री फीस देनी पड़ती है।
बेटियों को दी जा रही है सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग
बेटियों को जूडो कराटे की निशुल्क ट्रेनिंग दी जा रही है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए साथ ही उन्हें आत्मरक्षा के गुण भी सिखाए जा रहे हैं। जिससे वो जरूरत पड़ने पर अपनी हिफाजत कर सकें। उनकी अस्मत से खिलवाड़ करने की कोशिश करने वालों को कड़ा सबक सिखा सकें। प्रतिकूल परिस्थिति में अपनी और परिवार की रक्षा कर सकें। बेटियों ने कहा कि हर अभिभावक को अपनी बेटियों को इस तरह का प्रशिक्षण दिलवाना चाहिए। ताकी बेटियां भी शारीरिक रूप से मजबूत बन सकें। अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें किसी भी आश्रित न रहना पड़े। हालात कैसे भी हों बेटियां उनका मुकाबला करने में सक्षम रहें।
प्रेक्टिस के लिए नहीं मिलता पर्याप्त स्थान
मथुरा रोड़ ओढ़पुरा क्षेत्र में काफी संख्या में खिलाड़ी जूडो कराटे की प्रेक्टिस करने के लिए कोच एम एस सामुराई के पास पहुंचते हैं। लेकिन इतनी संख्या में खिलाड़ियों को एक साथ प्रेक्टिस कराने के लिए कोच के पास पर्याप्त स्थान और संसाधन नहीं हैं। महिला खिलाड़ियों ने बताया कि कोच उनका पूरा सहयोग करते हैं। लेकिन प्रेक्टिस के लिए पर्याप्त स्थान न होने की वजह से उन्हें काफी परेशानी होती है। महिला खिलाड़ियों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मांग उठाई है कि वो उनकी मदद करें। क्षेत्र के किसी भी पार्क में उन्हें प्रेक्टिस करने के लिए दो घंटे का समय दिलवा दें। जिससे वह आसानी से अपनी प्रेक्टिस कर पाएं।
तीन माह का प्रशिक्षण हो पूरे साल
माध्यमिक शिक्षा परिषद के राजकीय स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। तीन माह का प्रशिक्षण छात्राओं को दिया जाता है। विद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राएं चाहती है कि पूरे साल प्रशिक्षण मिलना चाहिए। तीन माह का प्रशिक्षण पूरे साल होना चाहिए। वहीं छात्राओं को प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षकों का भी मानना है कि सरकार को पूरे साल प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही प्रशिक्षकों को मिलने वाला पांच हजार रुपये मानदेय काफी कम है। इस मानदेय को बढ़ाकर दस हजार रुपये किये जाना चाहिए।
ये हैं समस्याएं
महिला खिलाड़ियों के पास प्रेक्टिस के लिए स्थान नहीं है।
जिले में सरकारी खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन में कमी।
खिलाड़ियों ने कहा चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रहती है।
आर्थिक अभाव के कारण खेल प्रतिभाएं निखर नहीं पाती हैं।
जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम का सपना है अधूरा।
राज्य स्तर पर चयनित खिलाड़ियों को खेल कोटे से नहीं मिलती नौकरी
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ये हैं समाधान
स्थानीय स्तर पर भी सरकारी खेल मैदान का निर्माण किया जाए
हर छह महीने में सरकारी स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन
खिलाड़ियों की चयन प्रक्रिया में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाए
आर्थिक रूप से कमजोर होनहार खिलाड़ियों को सुविधा दी जाए
जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम का निर्माण कराया जाए
राज्य स्तर पर प्रतिभाग करने वाले खिलाड़ियों को खेल कोटे से मिले नौकरी
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