बोले मथुरा: भक्तों में तलाशते हैं रोजगार रेहड़ी वालों की सुनो सरकार
Mathura News - मथुरा में आगरा-दिल्ली हाइवे पर छटीकरा से वृंदावन की ओर मुड़ते ही बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वाले मिलते हैं। ये श्रद्धालुओं के लिए खाद्य सामग्री और अन्य सामान बेचते हैं। नगर निगम और पुलिस द्वारा हटाए...

मथुरा। आगरा-दिल्ली हाइवे पर छटीकरा से वृंदावन की ओर मुड़ने के साथ ही रेहड़ी-पटरी वाले विभिन्न सामान बेचते दिख जाएंगे। खाद्य सामग्री ही नहीं, विभिन्न प्रकार के सामान रेह़ड़ी पटरी पर मिल जाएगा। छटीकरा से वृंदावन की ओर मुड़ते ही वैष्णौ देवी मंदिर है, जहां रोजाना हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके पास बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वाले मिल जाएंगे। इन श्रद्धालुओं से इनका रोजगार चलता है। रेहड़ी-पटरी पर खरीदारों की भीड़ भी मिल जाएगी। कोई भगवान की तस्वीर खरीदता दिख जाएगा तो कोई चाट या फल खरीदता मिल जाएगा। कुल मिलाकर जितने रेहड़ी पटरी वाले यहां दिखेंगे उनका रोजगार श्रद्धालु हैं।
जितने ज्यादा श्रद्धालु आते हैं, उतना ही इनका रोजगार बढ़ता है। इस्कॉन और प्रेम मंदिर के बाहर रहता है जाम: वैष्णौ देवी मंदिर के अलावा इस्कॉन और प्रेम मंदिर के बाहर भी बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वाले हैं। इन मंदिरों के बाहर तो सड़क पर जाम लगा रहता है। शनिवार-रविवार को तो यहां पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। महिलाओं के श्रंगार से संबंधित वस्तु हो या खान-पानी की, बच्चों के खिलौने हों या मोबाइल संबंधित आइटम, सब कुछ यहां मिल जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां खरीदारी करते दिख जाएंगे। नगर निगम और पुलिस का बना रहता है भय:एक अनुमान के अनुसार छटीकरा चौराहे से वृंदावन के बिहारी जी मंदिर तक लगभग एक हजार रेहड़ी-पटरी वाले हैं। इस्कॉन मंदिर तक ही करीब 800-900 रेहड़ी-पटरी वाले दिख जाएंगे, जो श्रद्धालुओं की भीड़ में अपनी रोजी-रोटी तलाशते हैं। इन रेहड़ी-पटरी वालों को पुलिस और नगर निगम का भय बना रहता है। सड़क घेरने के कारण अक्सर पुलिस और नगर निगम की टीम इन्हें यहां से हटाने का प्रयास करती है। कारण इनसे रास्ता जाम होने लगता है। वहीं इनका कहना है कि यह उनकी रोजी-रोटी का साधन है, वे कहां जाएं। इन रेहड़ी पटरी वालों का कहना है कि उनकी रोजी रोटी का साधन ही उनके द्वारा रेहड़ी पर और पटरी पर सामान बेचना है। उनकी यह मजबूरी है। प्रमुख मंदिरों के पास उनके लिए कोई निर्धारित स्थान तय कर दिया जाए तो वह सड़क पर जाएं ही क्यों? फिर तो वे अपने निर्धारित स्थल पर ही अपना फड़ लगा लेंगे। ढकेल के सहारे चाय-पानी बिक्री कर न केवल अपना परिवार पाल रही हूं, बल्कि अपने बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही हूं। नगर निगम के कर्मचारी चाहे जब अभद्रता करते रहते हैं। -जयंती देवी आइसक्रीम की ढकेल लगाकर मैं अपने परिवार की जीविका चला रहा हूं। उसे भी नगर निगम और पुलिस प्रशासन नहीं करने देता। चाहे जब उन्हें वहां से हटा दिया जाता है। -अरुण कुमार ढकेल वाले अपने दम पर रोजागर कर रहे हैं। नगर निगम को ढकेल वालों का सहयोग कर हौसलाफजाई करनी चाहिए। जिससे वह पूरे उत्साह के साथ रोजी-रोटी कमा कर परिवार को पाल सकें। -रमेश सैनी ढकेल लगाकर मैं इसके सहारे अपना परिवार पालती हूं। रोजगार का कोई और साधन नहीं है। श्रद्धालुओं पर ही हमारी रोजी-रोटी निर्भर है। हमरा रोजगार चलता रहे, इसकी नगर निगम को व्यवस्था करनी चाहिये। -मूलवती करीब 10 वर्षों से ढकेल पर कड़ी मेहनत कर बच्चों की परवरिश कर रहा हूं। नगर निगम आये दिन हटा देता है। जबकि नगर निगम को चाहिये कि धूप और बारिश से बचाव को टीन शेड लगाकर कोई स्थान तय कर दे। -आलोक सिंह मैं वृद्ध हो चुका हूं और लंबे समय से ढकेल के सहारे अपने परिवार को पाल रहा है। यह ढकेल ही मेरे परिवार को पालने का जरिया है। चाहे जब पुलिस प्रशासन ओर नगर निगम से अपमानित होना पड़ता है। -पूरन नगर निगम ने कभी भी ढकेल वालों की सुविधा के बारे में नहीं सोचा, जिससे वह इज्जत से अपना पेट भर सकें। हम जी तोड़ मेहनत कर परिवार का पालन कर रहे हैं लेकिन हर समय ढकेल पर तलवार लटकी रहती है। -राजू सिंह महिला होने के बाद भी मैं पुरुषों के बराबर मेहनत करती हूं और ढकेल लगाकर परिवार का पालन करती हूं। मेहनत का काम करने पर भी जब पुलिस या निगम कर्मी हटाते हैं तो दुख होता है। हमारे लिए निर्धारित स्थान तय होना चाहिये। -गिर्राजी देवी नगर निगम ढकेल वालों की सुविधा के लिए कुछ नहीं करना चाहता। केवल उजाड़ने का काम करता है। नगर निगम को चाहिये कि ढकेल वालों के लिए एक निश्चित स्थान कर दे, जिससे हम अपनी ढकेल वहीं लगा सकें। -विपिन कुमार नगर निगम को हम रेहड़ी-पटरी वालों के लिए भी योजना बनानी चाहिए। वृंदावन के प्रमुख मंदिरों के पास कोई स्थान निर्धारित कर दिया जाए तो रेहड़ी-पटरी बाले सड़क पर क्यों खड़े हों। -सोनू वैष्णव
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