बोले बेल्हा : धूप में तड़प रहे निराश्रित मवेशी, खा रहे सूखा भूसा, पी रहे गर्म पानी
Pratapgarh-kunda News - करीब आठ साल पहले सरकार ने निराश्रित मवेशियों के लिए गोशाला स्थापित की थी, लेकिन आज स्थिति बदतर है। गोशालाओं में मवेशियों के लिए चारा और पानी का उचित इंतजाम नहीं है, और कई मवेशी धूप में तड़प रहे हैं।...
करीब आठ साल पहले निराश्रित मवेशियों से किसानों की फसल बचाने के लिए सरकार ने गांव-गांव गोशाला बनवाया लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ। खेत में फसल उगने के साथ काटने तक किसान रखवाली करते रहे। अब गेहूं की फसल कटने के बाद ज्यादातर खेत खाली हैं। सैकड़ों की संख्या में निराश्रित मवेशी गांव, सड़क पर भटक रहे हैं। जिले की गोशालाओं में संरक्षित निराश्रित मवेशी गर्मी में परेशान हैं। हरा चारा नहीं मिल पा रहा है। खुले आसमान के नीचे बनी टंकी का उबलता पानी पीना पड़ रहा है। टिनशेड की उपलब्धता के बावजूद कमजोर मवेशी धूप में पड़े हैं।
कइयों की धूप, सर्दी से मौत भी हो जाती है। आम लोगों का मानना है कि निराश्रित मवेशियों को संरक्षित करने के लिए सरकार की ओर से गोशाला स्थापित करने का कदम बेहतर था लेकिन इसके संचालन की खामियां दूर न किए जाने से आज यह मवेशियों के लिए काल साबित हो रही हैं। नगर पालिका, ग्राम और नगर पंचायतों की 70 गोशालाओं में संरक्षित 18 हजार से अधिक निराश्रित मवेशियों की देखभाल करना संभव नहीं हो पा रहा है। वे चारदीवारी में कैद तो कर दिए गए हैं लेकिन चारा पानी तो दूर उन्हें बैठने के लिए छांव तक नहीं मिल पा रही है। अधिकांश मवेशी धूप में तड़प रहे हैं। जेठवारा इलाके के ग्रामीणों ने गोशालाओं में संरक्षित निराश्रित मवेशियों की हालत बदतर बताई। कहा कि गोशालाएं मवेशियों के लिए कैदखाना साबित हो रही हैं। ज्यादातर जगहों पर चारा-पानी का समुचित इंतजाम नहीं है। परिसर में पानी की टंकी बना दी गई है। उसमें भरा पानी कड़ी धूप में उबल रहा है। वह मवेशियों की प्यास नहीं बुझा पा रहा है। हरा चारा का भी ज्यादातर जगह अभाव है। एक दो टिनशेड बने हैं लेकिन ताकतवर मवेशियों के डर से कमजोर मवेशी उसकी छांव में बैठ नहीं पाते। सर्दी हो या गर्मी हर गोशाला में मवेशी खुले आसमान में दिखते हैं। वे बाहर भी नहीं जा पा रहे हैं और धूप में तड़प रहे हैं। यही हाल सर्दी में भी होता है। पूरी रात मवेशी खुले आसमान के नीचे पड़े रहते हैं। कई बार उनके शव भी परिसर में दिखते हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि गोशाला संचालन का दायित्व ग्राम प्रधान को दिया गया लेकिन कई बार यह भी देखा जाता है कि उनका समय से भुगतान नहीं हो पाता। ग्रामीणों का कहना है कि वर्तमान में गर्मी में गोशालाओं में मवेशियों की जो हालत दिख रही है वह बहुत तकलीफदेय है। उन्हें कैद तो किया गया है लेकिन उनकी देखभाल की सिर्फ औपचारिकता पूरी की जा रही है। हर साल हो करोड़ों खर्च, फिर भी नहीं बदल रहे हालात गोशालाओं में संरक्षित मवेशियों को भरपूर चारा पानी दिए जाने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। गोशालाओं की स्थापना के बाद उसमें संरक्षित प्रति मवेशी 30 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता था। बाद में 50 रुपये प्रतिदिन प्रति मवेशी कर दिया गया। जिले की 70 गोशालाओं में संरक्षित 18 हजार मवेशियों पर एक साल में सिर्फ चारा पर 1 करोड़, 8 लाख रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया गया। लेकिन हालात नहीं बदल रहे हैं। सड़क से खेत तक हर ओर हालात जस के तस पशुपालन विभाग जिले की गोशालाओं में 18 हजार मवेशी संरक्षित किए जाने का दावा कर रहा है। विभाग का अनुमान है कि जिले में करीब 500 निराश्रित मवेशी अभी खुले में घूम रहे हैं। जबकि आलम यह है कि जिले की 1148 ग्राम पंचायत के 4 हजार अधिक गांव, सभी नगर पंचायत और नगर पालिका की जिम्मेदारी वाले शहरी इलाके में हर ओर निराश्रित मवेशी खेत से सड़क तक मुसीबत बने हैं। पालतू मवेशी छोड़ने वालों पर नहीं हुई कार्रवाई गोशालाओं में मवेशी संरक्षित किए जाने के बाद भी समस्या कम नहीं हुई तो पालतू मवेशियों की टैगिंग लग गई। टैगिंग नंबर के साथ पशुपालकों के नाम दर्ज किए गए। कहा गया कि पालतू मवेशी छोड़ने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद लोग दूध देना बंद करने पर गाय, बछड़ा छोड़ने लगे। टैग के साथ वे टहलते भी रहे। हालांकि कुछ लोगों ने कान काटकर टैग निकाल लिया था। कई मवेशियों को टैग लगे भी थे लेकिन पशुपालक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। ... समस्या 0 गोशालाओं में नहीं है छाया का पर्याप्त इंतजाम। 0 हर रोज गोबर न हटाने के कारण रहता है गंदगी का अंबार। 0 टंकी खुले में बनाने से गर्म हो रहा पानी। 0 ज्यादातर के पास नहीं है हरा चारा का इंतजाम। 0 बीच में भी दीवार न होने से डर रहे कमजोर मवेशी। समाधान 0 संरक्षित मवेशियों को सर्दी, गर्मी, बारिश से बचाव को बने पक्की छत। 0 परिसर में कहीं भी बनाएं टंकी, करें छाया का इंतजाम। 0 ग्राम पंचायत और खाली जमीन हरा चारा के लिए करें उपयोग। 0 उपयोगी मवेशियों को संरक्षित कर ग्रामीणों को दिए जाएं। 0 गोबर और उसकी खाद को बनाया जाए आय का स्रोत। बोले ग्रामीण सरकार की गोशाला स्थापित करने की मंशा अच्छी थी लेकिन इसके संचालन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आज हर ओर बदहाली दिख रही है। जहां छाया का इंतजाम है वहां भी मवेशी धूप में पड़े रहते हैं। मुन्नालाल हर गोशाला का परिसर बड़ा है। सभी प्रकार के मवेशियों को एक जगह संरक्षित करना गलत है। एक पशुपालक के 4-5 मवेशी आपस में लड़ाई करते हैं तो गोशाला में तो सैकड़ों रहते हैं। ऐसे में उसमें अलग-अलग हिस्सा बनाया जाए। रंजीत कुमार कई गोशालाओं में बछड़ों के साथ गाय भी रहती हैं और वे बच्चा भी देती हैं। ऐसे में उनके दूध का व्यवसाय किया जा सकता है। गोबर की खाद भी किसान खरीदते हैं। आज गोशाला संचालित करने वाले जिम्मेदारों को दिक्कत हो रही है लेकिन फायदे का भी काम हो सकता है। रामपूजन निराश्रित मवेशियों की समस्या के लिए आम लोग भी जिम्मेदार हैं। लोग दूध निकालने के बाद गोवंश छोड़ देते हैं। वे दिन रात खेत में फसल खाते हैं। निराश्रित मवेशियों की संख्या बढ़ने से रोकने के लिए हर हर पशुपालक को ध्यान देना होगा। अमृतलाल गोशाला में संरक्षित मवेशी समस्या बने हैं। कई लोग मवेशियों के मरने के बाद शव आसपास ही फेंक देते हैं। जो दफन भी करते हैं कुत्ते उन्हें बाहर निकाल लेते हैं। इससे कई दिन तक दुर्गंध से परेशानी होती है। राजू ग्राम पंचायतों के बजट का बड़ा हिस्सा गोशालाओं पर खर्च किया जा रहा है। बस समस्या के समाधान के प्रति गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा है। अधिकारियों का मौके पर आकर समस्या देखकर उसका समाधान करना चाहिए। अशोक कुमार शासन लगातार गोशालाओं को लेकर गंभीर रहा है लेकिन समस्या हमेशा बरकरार रही। जिले के आला अधिकारियों के साथ ही शासन के भी नोडल अधिकारी पहले से चिन्हत एक दो गोशाला का निरीक्षण कर लौट जाते हैं। मुश्ताक आठ साल से गोशालाएं चल रही हैं लेकिन निराश्रित मवेशियों की समस्या जस की तस बरकरार है। गांव में घूमने वाले निराश्रित मवेशी, पालतू मवेशियों के साथ ही घर के बाहर सो रहे लोगों पर भी हमला कर घायल कर रहे हैं। छोटू जिला मुख्यालय के साथ ही सभी तहसील क्षेत्र के सड़कों पर निराश्रित मवेशी हादसों का सबब बने हैं। बाइक सवार उनसे टकराकर घायल हो रहे हैं। कई की जान भी जा चुकी है। गोशालाओं को और बेहतर बनाकर सभी उनमें संरक्षित किए जाएं और बाद में मवेशी छोड़ने वालों पर कार्रवाई की जाए। भाईलाल . बोले जिम्मेदार जिले की गोशालओं में संरक्षित मवेशियों के लिए अब 50 रुपये प्रतिदिन, प्रति मवेशी दिया जा रहा है। बीडीओ के माध्यम से सभी का भुगतान भी समय से करके लगातार बेहतर करने का प्रयास किया जा रहा है। मवेशी मानव नहीं हैं। उनका स्वभाव एक साथ रहने का नहीं है। वे हमेशा टहलना चाहते हैं। पानी हर जगह उपलब्ध है। सभी को हरा चार का भी इंतजाम करने को कहा गया है। मवेशियों के इलाज के लिए इलाकाई पशु चिकित्सक को जिम्मेदारी दी गई है। समस्या कोई भी व्यक्ति अधिकारियों को बता सकता है। जहां भी समस्या संज्ञान में आती है, अधिकारी मौके पर जाकर उसका समाधान कर रहे हैं। डॉ. प्रदीप कुमार, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी
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