सेवा के अभाव में पिता की मौत, अब बेटी नर्स बन करेगी सेवा
Prayagraj News - प्रयागराज की कविता ने अपने माता-पिता को खोने के बाद सरकारी मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी। पिता की कोरोना से मृत्यु के समय वह खुद टीबी पीड़ित थी। अब वह जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी की तृतीय वर्ष की छात्रा...

प्रयागराज। धूमनगंज की रहने वाली कविता के पिता की चार साल पहले वर्ष 2021 में कोरोना से मृत्यु हो गई थी। 16 साल की कविता की मां की मृत्यु वर्ष 2017 में बीमारी के कारण हुई थी। जिस वक्त पिता की मौत हुई कविता खुद टीबी पीड़ित थी। ऐसे में पिता की सेवा का अवसर भी ठीक से नहीं मिल सका। माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। सरकारी मदद मिली तो कविता ने पढ़ाई की। आज वह जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही है। कविता नर्स बनकर बीमारों की सेवा करना चाहती है।
आज से चार साल पहले कोरोना की दूसरी लहर को शायद ही कोई भूला हो। जिले में 453 ऐसे बच्चे थे, जिन्होंने अपने माता या पिता को खो दिया था। प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने इन बच्चों की मदद की तो आज इसमें से 71 बच्चे या तो अपने पांव पर खड़े हो चुके हैं या फिर कॅरियर की राह पर आगे बढ़ चुके हैं। दारागंज निवासी जल निगमकर्मी की मौत पर भी परिवार पूरी तरह से टूट गया था। आज बेटा पिता की जगह पर काम कर रहा है। मुट्ठीगंज के महेंद्र के माता-पिता दोनों की मौत कोरोना में हुई और 23 वर्षीय बहन साथ थी। आज वह गाजियाबाद से बीबीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा है। ऐसे ही कीडगंज के राजेश के पिता की मृत्यु हो गई थी। रोज कमाने खाने वाले परिवार के पास आर्थिक तंगी थी। आज राजेश होमगार्ड बन गया है। सरकारी मदद से मिली नई राह कोरोना के दौरान जब बड़े पैमाने पर मौत हुई तो प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की शुरुआत की थी। जिसके तहत माता या पिता को खोने वाले बच्चों को पालन पोषण के लिए 18 वर्ष की आयु तक चार हजार रुपये प्रतिमाह दिया जा रहा है। जबकि माता और पिता दोनों को खोने वालों को प्रधानमंत्री केयर योजना से भी जोड़ा गया था। इनके खाते में 18 वर्ष की आयु तक सरकार ने 10 लाख रुपये जमा किए। 18 से 21 साल की उम्र तक मासिक ब्याज निकालने का पात्रों को अधिकार था। जबकि 21 वर्ष पूरे होने के बाद 10 लाख रुपये की राशि ये लोग निकाल सकते हैं। आज 372 बच्चे सरकार की योजना से लाभान्वित हो रहे हैं। जिस वक्त कविता के पिता की मौत हुई थी, वो खुद टीबी से पीड़ित थी। आज वो जीएनएम तीतृय वर्ष की पढ़ाई कर रही है। हमारे विभाग की ओर से 453 बच्चों को योजनाओं का लाभ दिया गया था। आज 372 बच्चे ही बचे हैं। हम सभी से लगातार उनका हाल जानते रहते हैं। कई बच्चे अपने पांव पर खड़े हो गए तो कुछेक आगे पढ़ाई कर रहे हैं। सर्वजीत सिंह, जिला प्रोबेशन अधिकारी
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