बोले सहारनपुर: आग की चमक में बुझती कारीगरों की उम्मीदें
Saharanpur News - सहारनपुर में दस हजार से अधिक वेल्डिंग कारीगर सरकारी योजनाओं और सुरक्षा सुविधाओं से वंचित हैं। ये मेहनतकश लोग खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं, लेकिन उनके लिए कोई स्थायी सुरक्षा व्यवस्था नहीं है।...

सहारनपुर में दस हजार से अधिक वेल्डिंग कारीगर है, लेकिन उनकी हालत देखकर यह साफ जाहिर होता है कि ये मेहनतकश लोग समाज की मुख्यधारा से अब भी बहुत पीछे हैं। न तो उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है, न ही उनके लिए कोई स्थायी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। वेल्डिंग का काम जितना कठिन है, उतना ही खतरनाक भी। अक्सर बिना किसी सेफ्टी किट के, बिना दस्ताने, बिना मास्क के काम करते इन कारीगरों के शरीर पर छोटे-मोटे जख्म आम बात हैं। कई बार ये जख्य इतने गंभीर हो जाते हैं कि ईलाज की आवश्यकता होती है, मगर न बीमा होता है, न पर्याप्त पैसे। धातु को जोड़ते हुए चिंगारी उड़ती है। एक सुलगती रोशनी होती है और उसी के बीच कहीं एक मेहनतकश वेल्डिंग कारीगर अपनी आंखे मिचमिचाते हुए अपनी रोजी-रोटी के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा होता है। यह काम महज एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि जिंदगी के साथ जद्दोजहद का प्रतीक बन गया है। सहारनपुर में दस हजार से अधिक वेल्डिंग कारीगर अपनी आजीविका के लिए काम कर रहे हैं, मगर उनकी हालत देखकर यह साफ जाहिर होता है कि ये मेहनतकश लोग समाज की मुख्यधारा से अब भी बहुत पीछे हैं। न तो उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है, न ही उनके लिए कोई स्थायी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
सरकार द्वारा संचालित आयुष्मान भारत योजना का लाभ आम नागरिकों तक पहुंच चुका है, लेकिन इन वेल्डिंग कारीगरों की बड़ी तादाद इससे वंचित है। इनमें से अधिकांश को इस योजना की जानकारी तक नहीं है। उनका जीवन धुएं और चिंगारियों के बीच बीतता है, लेकिन कोई भी यह नहीं पूछता कि उनका ईलाज कैसे होगा, जब उनकी आंखें इस काम की रोशनी में धीरे-धीरे बुझने लगती हैं। वेल्डिंग का काम जितना कठिन है, उतना ही खतरनाक भी। अक्सर बिना किसी सेफ्टी किट के, बिना दस्ताने, बिना मास्क के काम करते इन कारीगरों के शरीर पर छोटे-मोटे जख्म आम बात हैं। कई बार ये जख्य इतने गंभीर हो जाते हैं कि ईलाज की आवश्यकता होती है, मगर न बीमा होता है, न पर्याप्त पैसे। ठेकेदार अक्सर केवल आश्वासन देते हैं और जब वक्त आता है मदद करने का तो उनकी आंखे और जेब दोनों बंद हो जाती हैं। वेल्डिंग कारीगरों ने कई बार सरकार से बीमा की मांग की है। वह चाहते हैं कि उनके काम की खतरनाक प्रकृति को समझा जाए और उन्हें ऐसी योजनाओं में शामिल किया जाए, जिससे कम से कम हादसों के समय वे और उनके परिवार किसी राहत की उम्मीद कर सकें। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि कई कारीगरों के बुजुर्ग माता-पिता पेंशन जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। ये लोग अपने पूरे जीवन में मेहनत करते रहे, मगर अब जब वे वृद्ध हो चुके हैं और उन्हें आराम की जरूरत है, तब उन्हें कोई सहारा नहीं है। उनके बेटे-पोते वेल्डिंग का काम करके जैसे-तैसे घर चला रहे हैं, लेकिन महंगाई के इस दौर में दो वक्त की रोटी जुटाना भी आसान नहीं है।
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सरकारी योजनाओं से वाकिफ नहीं वेल्डिंग कारीगर
कई ऐसे बुजुर्ग कारीगर हैं, जिन्होंने जिंदगी भर यही काम किया, मगर अब पेंशन योजना का कोई लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन जमीन पर उनका अमल कहीं खो जाता है। जब इन बुजुर्गों से पूछा जाता है कि उन्होंने पेंशन के लिए आवेदन क्यों नहीं किया तो वे बड़ी सादगी से कहते हैं कि किसी ने बताया ही नहीं। कारखानों में जहां ये कारीगर काम करते हैं, वहां अक्सर मेडिकल किट तक की सुविधा नहीं होती। कोई जल जाए, चोट लग जाए या आंखे की रोशनी स्पार्क से चली जाए तो इलाज का इंतजाम खुद करना पड़ता है और अगर किस्मत ने साथ नहीं दिया तो काम से हाथ धोना पड़ता है। सबसे अधिक चिंता की बात तब होती है जब ये कारीगर ऊंची-ऊंची इमारतों पर बिना किसी सुरक्षा के काम करते हैं। जान जोखिम में डालकर ये कारीगर दूसरों के लिए सुंदर इमारतें तैयार करते हैं, लेकिन उनके अपने घर में पंखा भी कई बार किश्तों पर आता है।
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वेल्डिंग संसाधनों की बढ़ती कीमतों ने किया निराश
वेल्डिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों और गैस के दामों में भी इजाफा हुआ है। लोहे के रॉड, इलेक्ट्रोड, गैस सिलेंडर सबकी कीमतें बढ़ती जा रही हैं। इसका सीधा असर कारीगरों की आय पर पड़ता है। उन्हें पहले से कम पैसे मिलते हैं और काम का खर्च पहले से ज्यादा हो गया है। अफसोस की बात है कि इस काम में कई कारीगरों की आंखों की रोशनी तक चली गई है। यह एक स्थायी नुकसान है, जिससे उनका पूरा जीवन प्रभावित हो गया। कई बार ठेकेदारों ने वादा किया कि वे मदद करेंगे, ईलाज करवाएंगे, कुछ मुआवजा देंगे, मगर फिर वही कहानी दोहराई जाती है। वादा तो होता है, लेकिन पूरा नहीं होता।
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अपने बच्चों को विरासत में नहीं देना चाहते वेल्डिंग कार्य
इन कारीगरों का जीवन इस कदर कठिन है कि वे अपने बच्चों को कभी यह पेशा नहीं देना चाहते। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई कर कुछ बेहतर करें और और इस काम से बचे। मगर जब घर चलाने के लिए और कोई विकल्प नहीं होता, तब वही बच्चा पिता के साथ वेल्डिंग मशीन पकड़ लेता है। सरकारें बदलती हैं, घोषणाएं होती हैं, योजनाओं की सूची लंबी होती जाती है, मगर जमीनी सच्चाई जस की तस बनी रहती है। एक ऐसा तबका, जो देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। सरकार से लेकर समाज तक सबको यह समझने की आवश्यकता है कि ये वेल्डिंग कारीगर भी इंसान हैं, उनके भी सपने हैं, परिवार हैं, जिम्मेदारियां हैं। अगर उन्हें बीमा, पेंशन, मेडिकल सुविधाएं और सुरक्षा उपकरण मिल जाएं तो वे भी सम्मान के साथ जिंदगी जी सकते हैं।
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शिकायतें
1.काम के दौरान सेफ्टी किट या सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते
2.आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य योजनाओं की जानकारी और लाभ नहीं मिलता
3. काम के दौरान अक्सर चोटें लगती हैं, लेकिन कोई बीमा सुविधा नहीं होती
4. मेडिकल सहायता के लिए फैक्ट्री या साइट पर कोई मेडिकल किट नहीं होती
5. बुजुर्ग माता-पिता को पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा
6. कई बुजुर्ग वेल्डिंग कारीगर पेंशन से वंचित हैं
7. महंगाई के कारण जीवन यापन करना मुश्किल होता जा रहा है
8. वेल्डिंग में काम आने वाले संसाधनों के दाम बढ़ने से आमदनी पर असर
9. आंखों की रोशनी चली जाने जैसे हादसों के बाद भी कोई मुआवजा नहीं मिलता
10. सरकारी योजनाओं की जानकारी तक नहीं मिल पाती
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समाधान
1. सरकार और ठेकेदारों को मिलकर सभी वेल्डिंग कारीगरों को हेलमेट, दस्ताने, चश्मे और अन्य सुरक्षा उपकरण अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने चाहिए
2. पंचायत स्तर पर जनप्रतिनिधियों द्वारा शिविर लगाकर कारीगरों का आयुष्मान कार्ड बनवाया जाए और इसके लाभों की जानकारी दी जाए
3. कारीगरों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना या श्रमिक बीमा योजनाओं में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए
4. सभी वर्क साइट्स पर प्राथमिक चिकित्सा किट की व्यवस्था कानूनी रूप से अनिवार्य की जाए और समय-समय पर निरीक्षण भी हो
5. सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत पात्र बुजुर्गों का सर्वे कर, पंचायत स्तर से उनका आवेदन सुनिश्चित किया जाए
6. पूर्व कारीगरों का डेटा एकत्र कर उन्हें असंगठित क्षेत्र के श्रमिक के रूप में रजिस्टर कर पेंशन दिलाई जाए
7. वेल्डिंग कारीगरों की न्यूनतम मजदूरी तय कर उसे बढ़ाया जाए और इसे लागू कराने के लिए निगरानी समितियां बनाई जाएं
8. सरकार द्वारा सब्सिडी या सस्ती दरों पर संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो, या समूह के माध्यम से थोक खरीद की सुविधा मिले
9.वेल्डिंग से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए अलग से मुआवजा नीति बनाई जाए और ठेकेदारों को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जाए
10. श्रमिकों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं और श्रमिकों को आवेदन करने में मदद की जाए
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वर्जन:-
1. हम रोज जान जोखिम में डालकर काम करते हैं, मगर न सुरक्षा मिलती है, न स्थायी आमदनी। एक चिंगारी जिंदगी बदल सकती है, फिर भी कोई नहीं पूछता कि हम कैसे हैं। हमारी मेहनत को पहचान मिले और सरकार कुछ ठोस कदम उठाए, यही हमारी उम्मीद है। -ताजिम राणा, कारिगर
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2. मैं रोज ऊंची इमारतों पर बिना किसी बेल्ट या हेलमेट के काम करता हूं। थोड़ा संतुलन बिगड़ा नहीं कि जान जा सकती है। क्या हम इंसान नहीं हैं। सरकार से गुजारिश है कि हमारी सुरक्षा के लिए कानून सख्ती से लागू हों। -जावेद सोनू, कारिगर
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3. सभी को सुरक्षा उपकरण मिलने चाहिएं। ताकि काम करते वक्त हमारी जिंदगी पर सुरक्षा कवच रहे। ----सद्दाम
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4. हमारे पास हेलमेट तक नहीं होता, आंखों में स्पार्क चला जाए तो ईलाज कराने के पैसे भी नहीं होते। कई बार चोट लगती है, मगर काम तो करना ही पड़ता है। सरकार से मांग है कि हमें बीमा और ईलाज की सुविधा दी जाए। -इब्राहिम
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5. हम मेहनत करते हैं, मगर न मेडिकल सुविधा है न आयुष्मान कार्ड। वेल्डिंग कारीगरों कोतमाम सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिएं। सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। ---शौकीन
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6. परिवार में बड़े बुजुर्ग हैं, उन्हें पेंशन नहीं मिलती। मैं खुद वेल्डिंग का काम करता हूं, पर इतना नहीं कमाता कि सबका खर्च चला सकूं। अगर सरकार कुछ मदद करे तो हम भी इज्जत से जी सकते हैं। -प्रीतम
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7. हमारी मजदूरी बहुत कम है और महंगाई लगातार बढ़ रही है, जो कमाते हैं, उसमें घर चलाना मुश्किल है। अगर सरकार हमें नियमित मजदूरी और संसाधनों पर सब्सिडी दे दे तो बहुत राहत मिलेगी। -लोकेश
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8. सरकारी योजनाओं की खबर तक नहीं मिलती। न कोई बताता है, न कोई समझाता है। जब जागरूकता ही नहीं होगी तो हम आवेदन कैसे करेंगे। सरकार को हमारे लिए विशेष शिविर लगाने चाहिए। -सुनील
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9. वेल्डिंग करते-करते कई बार करंट लगा है, मगर मेडिकल किट तक नहीं मिलती। छोटी चोट को नजर अंदाज करना पड़ता है। क्योंकि छुट्टी नहीं मिलती---जबल सिंह
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10. मैं कई सालों से वेल्डिंग का काम कर रहा हूं। यह जोखिम भरा काम है। इसलिए कारीगरों के बीमें होने चाहिएं। इसके साथ ही तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। -शहजाद
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