Commemorative Procession of Journey from Medina to Karbala Held in Sultanpur सुलतानपुर: मदीना से करबला के सफर की याद में निकाला जुलूस, Sultanpur Hindi News - Hindustan
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सुलतानपुर: मदीना से करबला के सफर की याद में निकाला जुलूस

Sultanpur News - सुलतानपुर में बुधवार को जुलूस-ए सफर मदीना का आयोजन किया गया। यह जुलूस हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार द्वारा मदीना से करबला तक की ऐतिहासिक यात्रा की याद में निकाला गया। जुलूस जामा मस्जिद अमहट से शुरू...

Newswrap हिन्दुस्तान, सुल्तानपुरWed, 29 Jan 2025 05:13 PM
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सुलतानपुर: मदीना से करबला के सफर की याद में निकाला जुलूस

अमहट से शुरू होकर दरगाह हजरत अब्बास पर जूलुस का समापन जामा मस्जिद अमहट में मौलाना मेंहदी ने मजलिस को संबोधित किया

सुलतानपुर। गोराबारिक अमहट में बुधवार को जुलूस-ए सफर मदीना का आयोजन किया गया। यह जुलूस हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार द्वारा मदीना से करबला तक किए गए ऐतिहासिक सफर की याद में निकाला गया। इसकी शुरुआत सुबह 11 बजे जामा मस्जिद अमहट में मौलाना काजिम मेंहदी ओरूज जौनपुरी द्वारा मजलिस के साथ हुई।

मौलाना मेंहदी ने कहा, रसूल ने आगाज-ए इस्लाम किया तो मक्के के लोगों ने कहा इन्हें न सुनना, इनकी न मानना। ये जादूगर हैं, जब रसूल ने कुछ कहा ही नहीं तो मक्के के लोग कैसे समझ गए कि ये क्या कहना चाह रहे हैं। इसका मतलब है वो ये जान रहे थे मोहम्मद के किरदार, मोहम्मद के अमल को देखकर यह हमारे जैसा नहीं है। लेकिन चौदह सौ साल में मुसलमान नहीं समझ पाया, वो आजतक कह रहा मोहम्मद हमारे जैसे हैं। मजलिस के बाद जुलूस काफिले की शक्ल में निकला गया। इसमें ऊंट, घोड़े, अलम और जुलजनाह शामिल रहे। जुलूस जामा मस्जिद अमहट से प्रारंभ होकर, अमहट चौराहे और सुलतानपुर रोड से होते हुए, गभड़िया चौकी के सामने मोहम्मद हादी के इमाम बाड़े से गुजरते हुए दरगाह हजरत अब्बास अलैहिस्सलाम गभड़िया पर समाप्त हुआ ।

जुलूस के दौरान मौलाना मोहम्मद जाफर खान, मौलाना मुशीर अब्बास खान, मौलाना नकी रजा जैदी, मौलाना कलबे हसनैन खान, मौलाना सैयद हबीब हैदर और गजनफर अब्बास तूसी ने तकरीर किया। इस धार्मिक आयोजन में सुलतानपुर जनपद के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु शामिल हुए। हुसैनी शिया वेलफेयर एसोसिएशन सुलतानपुर के अध्यक्ष हैदर अब्बास खान के अनुसार,जुलूस उस ऐतिहासिक घटना की याद में निकाला गया है, जब हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम और इंसानियत की रक्षा के लिए 28 रजब सन 60 हिजरी को अपने परिवार के साथ मदीना से करबला की यात्रा की थी। 10 मोहर्रम सन 61 हिजरी को अपने 72 साथियों के साथ शहादत देकर उन्होंने इंसानियत की रक्षा की थी।

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