wedding procession went out seven rounds were taken man who became groom for 42nd time still did not get bride बारात निकली, सात फेरे भी हुए, 42वीं बार दूल्हा बने युवक को फिर भी नहीं मिली दुल्हन, जानें पूरा मामला, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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बारात निकली, सात फेरे भी हुए, 42वीं बार दूल्हा बने युवक को फिर भी नहीं मिली दुल्हन, जानें पूरा मामला

  • खीरी जिले के नरगड़ा गांव के रहने वाले विश्वम्भर दयाल मिश्रा सोमवार को 42 वीं बार दूल्हा बने। रंगों से सराबोर बारातियों का जत्था ट्रैक्टर पर सवार दूल्हे के साथ गांव के बीच निकला। बारात में करीब-करीब पूरा गांव शामिल है।

Dinesh Rathour लाइव हिन्दुस्तान, खमरिया, (लखीमपुर खीरी)Sat, 15 March 2025 05:19 PM
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बारात निकली, सात फेरे भी हुए, 42वीं बार दूल्हा बने युवक को फिर भी नहीं मिली दुल्हन, जानें पूरा मामला

खीरी जिले के नरगड़ा गांव के रहने वाले विश्वम्भर दयाल मिश्रा सोमवार को 42 वीं बार दूल्हा बने। रंगों से सराबोर बारातियों का जत्था ट्रैक्टर पर सवार दूल्हे के साथ गांव के बीच निकला। बारात में करीब-करीब पूरा गांव शामिल है। बारात दुल्हन के दरवाजे पर पहुंची। स्वागत-सत्कार के बाद बारात में शामिल लोगों के पांव पखारे गए। उधर वधु के महिलाओं ने घर में मंगलगीत गाए। द्वारपूजन के बाद विवाह की रस्में निभाई गईं। बारात और दूल्हे के साथ वे सारी रस्में निभाई हुईं। जो आमतौर पर शादियों में होती हैं। फेरे की रस्में हुईं और फिर विदाई। लेकिन हर बार की तरह इस बार दूल्हे को दुल्हन नहीं मिली। 42वीं बार विश्वम्भर की बारात बिना दुल्हन के बैरंग वापस हुई। इससे पहले 35 मर्तबा विश्वम्भर के बड़े भाई श्यामबिहारी की बारात भी बिना दुल्हन के वापस लौट चुकी है।

हम बात कर रहे हैं होली के दिन ईसानगर के मजरा नरगड़ा में निकाली जाने वाली बारात की। इस बारात की खासियत यह है कि इसमें एक ही परिवार के सदस्य सैकड़ो वर्षो से दूल्हा बनते आए हैं। होली के दिन पूरा गांव दूल्हे के साथ नाचते गाते रंग, अमीर, गुलाल से सराबोर होकर दूल्हे के साथ बरात लेकर पहुंचते हैं। गांव के लोग बताते हैं यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चलती आयी है। होली के दिन बारात लेकर पूरा गांव जाता है। सारी रस्मे शादी बरात वाली ही होती है। पुरानी परम्परा के अनुसार आज भी हम लोग भी इस प्रथा को निभा रहे हैं। यह भी परम्परा है कि बारात को बिना दुल्हन के विदा किया जाता है। इस परंपरा में गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 42 वीं बार दूल्हा बने। विश्वम्भर की ससुराल गांव में ही है।

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होली के पहले उनकी पत्नी मोहिनी को कुछ दिन पहले मायके बुला लिया जाता है। शादी के स्वांग के बाद जब बारात विदा होकर आ जाती है तब उसके कुछ दिन बाद मोहिनी को ससुराल भेज दिया जाता है। विश्वम्भर से पहले उनके बड़े भाई श्यामबिहारी इसी तरह दूल्हा बनते थे। 35 वर्षों तक श्यामबिहारी दूल्हा बन भैंसा पर सवार होकर बारात लेकर निकलते थे। यह अनोखी शादी देखने और बारात में शामिल होने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। सैकड़ों सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी लोक संस्कृतियों की यादें समेटे हुए है। भले ही आज की शादियों में बड़ा बदलाव आ गया हो पर नरगड़ा की इस अनोखी शादी में बारात के स्वागत,ज्योनार के समय गारी और सोहर,सरिया और मंगलगीतों की परम्पराएं जीवंत हैं।