बोले रुद्रपुर: मजदूरों के उत्पीड़न की कहीं सुनवाई नहीं
एक मई को मजदूर दिवस पर मजदूरों ने एकजुट होकर अपनी स्थिति को उजागर किया। उन्होंने कहा कि मजदूर दिवस केवल रस्म अदायगी है और कंपनियों में उनका शोषण हो रहा है। उन्हें 12 घंटे काम करने के बावजूद कम वेतन...
एक मई को मजदूर दिवस पर मजदूरों ने एकजुट होकर अपनी एकता दिखाई, लेकिन उनकी बातों में बेबसी ज्यादा छलकती रही। मजदूरों का कहना है कि मजदूर दिवस रस्म अदायगी भर है। उनके साथ कंपनियों में हर स्तर पर अन्याय और शोषण होता है, लेकिन उनकी आवाज कहीं नहीं सुनी जाती है। कहा कि कहने को जिले में श्रम विभाग है, लेकिन बीते कई सालों से जिला श्रम आयुक्त का पद रिक्त चल रहा था। वर्तमान में जिला श्रम आयुक्त व सहायक श्रम आयुक्त की नियुक्ति हो चुकी है, लेकिन उनके मामलों में अब भी तेजी नहीं आई है। मजदूरों से 8 घंटे की जगह 12 घंटे तक काम कराया जा रहा है, जबकि समान कार्य करने के बाद भी उन्हें बेहद कम वेतन दिया जाता है।
वहीं महिला श्रमिकों से रात्रि की शिफ्ट में काम कराया जा रहा है। मजदूर दिवस मना रहे मजदूर अब भी मजबूर हैं। कंपनियों में मजदूरों के अधिकारों का हनन होता है। मजदूरों का कहना है कि वह इतने मजबूर हैं कि अपनी मांगों को किसी के सामने नहीं रख पाते हैं। शांतिपूर्ण धरना करने पर उनके खिलाफ अलग-अलग धाराएं लगा दी जाती हैं। मजदूर अपनी आवाज बुलंद ना कर पाएं, इसलिए ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों को कंपनियों की ओर से तरह-तरह से परेशान किया जाता है। कहा कि नए श्रम कानूनों के तहत उनसे हड़ताल करने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा। कहा कि मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड्स को रद्द किया जाना चाहिए। मजदूरों ने बताया कि उनसे स्थाई कर्मचारियों की तरह काम कराया जाता है, लेकिन दोनों के वेतन में जमीन आसमान का अंतर होता है। उनकी मांग है कि समान कार्य पर समान वेतन दिया जाए और न्यूनतम वेतन 30 हजार रुपये प्रतिमाह घोषित किया जाए। महिलाओं से रात्रि पाली में काम कराया जा रहा है, जबकि उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। इससे महिला कर्मचारी अक्सर कार्यालय आने व जाने में असुरक्षित महसूस करती हैं। महिलाओं से रात्रि पाली में कार्य कराने के कानून को रद्द किया जाना चाहिए। कहा कि आवश्यक कार्यों को छोड़कर सभी कंपनियों में रात्रि पाली में कार्य कराना बंद किया जाना चाहिए। इसी तरह उनकी यह मांग भी है कि ठेका प्रथा में मजदूरों का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है, इसलिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए और स्थाई काम पर स्थाई रोजगार लागू किया जाना चाहिए। कहा कि श्रम विभाग में अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे उनके मामलों की सुनवाई जल्द हो सके। कहा कि अधिकारियों को सख्ती के साथ श्रम कानूनों को लागू करवाना चाहिए। कंपनियों में लागू नहीं होते श्रम कानून : मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए श्रम कानून हैं, लेकिन ज्यादातर कंपनियों में श्रम कानूनों का पालन नहीं होता है। मजदूरों ने बताया कि सिडकुल स्थित लगभग सभी कंपनियों में श्रम कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है। श्रम कानून में बुनियादी सुविधाएं, काम के घंटे, स्वास्थ्य, साप्ताहिक छुट्टी आदि शामिल हैं, लेकिन इन नियमों का कंपनियों में पालन नहीं हो रहा है। मजदूरों के लिए 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम व 8 घंटे मनोरंजन का नियम है, लेकिन कंपनियों में मजदूरों से 12-12 घंटे तक काम कराया जाता है। काम की रफ्तार व काम के घंटे बढ़ाकर दोनों तरह से मजदूरों को बीमार किया जा रहा है। कहा कि पूर्व में मजदूरों के लिए 44 श्रम कानून होते थे, जिन्हें 4 लेबर कोड्स में सीमित कर दिया गया है। उनकी मांग है कि मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड्स को रद्द किया जाए। दुर्घटना का शिकार होने पर चली जाती है नौकरी : अक्सर कंपनियों में मशीनों से कार्य करते हुए मजदूरों के साथ दुर्घटनाएं हो जाती हैं, लेकिन ऐसे मजदूरों को कंपनियों की ओर से कोई मदद व सहायता प्रदान नहीं की जाती है। अक्सर दुर्घटना के शिकार मजदूरों को कंपनियों से बाहर कर दिया जाता है। मजदूरों ने बताया कि ज्यादातर कंपनियों में मशीनों में लगे ऑटो सेंसर लंबे समय से खराब पड़े हैं, जिससे कार्य करने के दौरान सप्ताह में अमूमन एक-दो मजदूर हादसे का शिकार हो जाते हैं। सेंसर खराब होने से अक्सर मजदूरों के हाथ मशीन में चले जाते हैं। ऐसे में पीड़ित मजदूरों को निजी अस्पताल में इलाज कराकर घर भेज दिया जाता है। हाथ गंवाने के साथ ही मजदूरों को अक्सर नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है। एक निजी कंपनी में कार्यरत संदीप कुमार मिश्रा ने बताया कि कुछ समय पूर्व उनका हाथ मशीन में आने से कट गया, जिसके बाद कंपनी ने उन्हें हटाने की कोशिश की। हालांकि, संघर्षों व मजदूर संगठनों के सहयोग की वजह से वह अब भी उसी कंपनी में कार्यरत हैं, लेकिन उन्हें इस बात का बेहद दुख है कि जिस कंपनी के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण श्रम किया, हाथ कटने पर कंपनी को वह बोझ लगने लगे हैं। श्रम विभाग में अधिकारियों की कमी, नहीं होती सुनवाई : मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून हैं, लेकिन लागू कराने के लिए श्रम विभाग में अधिकारियों की बेहद कमी है। मजदूरों ने बताया कि रुद्रपुर औद्योगिक राजधानी है, लेकिन जिले में करीब 8 साल से जिला श्रम आयुक्त का पद रिक्त था। पिछले एक साल से नए जिला श्रम आयुक्त की नियुक्ति हुई है, लेकिन वह अक्सर छुट्टी पर या कार्यालय में उपस्थित नहीं रहते हैं। कहा कि श्रम विभाग में सुनवाई के दौरान ज्यादातर फैसले कंपनियों के हक में ही आते हैं। बताया कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम-1997 के तहत मजदूरों के मामलों के फैसले होते हैं, लेकिन इसका अनुपालन ही नहीं होता है। मजदूरों के वेतन बढ़ाने, मेडिकल, परिवहन, दुर्घटना होने पर परिजनों को नौकरी देने जैसे मांग पत्रों पर कोई सुनवाई नहीं होती है। कोई भी कंपनी कभी भी बंद हो जाती है, लेकिन वहां कार्यरत मजदूरों की आवाज कभी नहीं सुनी जाती है। समान कार्य के बाद भी नहीं मिलता समान वेतन : समान कार्य करने के बाद भी मजदूरों को समान वेतन नहीं मिल पाता है। मजदूरों ने बताया कि एक ही मशीन पर कार्य करने के बाद भी स्थाई की तुलना में अस्थाई कर्मचारियों का वेतन बेहद कम होता है। बताया कि स्थाई कर्मचारियों का वेतन 80 से 1 लाख रुपये होता है, उसी के समान कार्य करने वाले अस्थाई कर्मचारियों को महज 16 हजार रुपये वेतन मिलता है। वर्तमान में ज्यादातर कंपनियों में ठेकेदारी प्रथा के तहत कर्मचारियों की नियुक्ति की जा रही है, जिससे मजदूरों का जमकर शोषण किया जा रहा है। बताया कि ज्यादातर कंपनियों में स्थिति यह है कि वहां 32 स्थाई व 1000 अस्थाई कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि 4 शिफ्टों में कार्य किया जाता है। कहा कि पुरुषों की तुलना में महिला कर्मचारियों का वेतन और भी कम है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं का शोषण किया जा रहा है। उन्हें कम वेतन और अब उनसे रात्रि शिफ्ट में भी कार्य कराया जा रहा है, जबकि उनकी सुरक्षा की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जाती है। इसी तरह ट्रेनी कर्मचारियों से भी पूरा कार्य करवाया जाता है, लेकिन उन्हें वेतन नाममात्र का दिया जाता है। मजदूरों के लिए भी लागू हो सिंगल विंडो : मजदूरों का कहना है कि जिस तरह पूंजीपतियों के लिए उद्योग लगाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था है, उसी तरह की व्यवस्था मजदूरों के लिए भी होनी चाहिए। कहा कि मजदूरों को प्रत्येक मामलों के लिए अलग-अलग कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं। मजदूर को अपने मामलों के लिए ईएसआई कार्यालय, श्रम विभाग, लेबर कोर्ट, हाईकोर्ट आदि जाना पड़ता है। कहा कि वर्ष-1926 में ट्रेड यूनियनों का गठन शुरू हुआ, लेकिन वर्तमान में कंपनियां ट्रेड यूनियन नहीं बनाने देती हैं। जो ट्रेड यूनियन अस्तित्व में हैं, उन्हें मजदूरों के मुद्दों को उठाने नहीं दिया जाता है। हर बार तरह-तरह की अड़चनें पेश की जाती हैं। ट्रेड यूनियन के नेताओं को कंपनियों की ओर से परेशान किया जाता है। शांतिपूर्ण हड़ताल व विरोध करने पर मजदूरों पर शांति भंग करने की धाराएं लगा दी जाती हैं। मजदूरों का कहना है कि उनके इलाज आदि के लिए ईएसआई ने सिडकुल के करीब में अस्पताल का निर्माण कराया है, लेकिन वहां डॉक्टरों व सुविधाओं की काफी कमी है। शिकायतें 1-श्रम कानूनों के बावजूद कंपनियां अपने यहां इन्हें लागू नही करती हैं। इससे मजदूरों का अत्यधिक शोषण किया जाता है। तय से अधिक घंटे काम करना पड़ता है। 2-कंपनियों में अक्सर मजदूरों के साथ दुर्घटनाएं हो जाती हैं, लेकिन इसके बाद उन्हें कंपनियों से सहयोग नहीं मिल पाता है। कई बार कंपनियां ऐसे कर्मचारियों को हटा देती हैं। 3-औद्योगिक नगरी होने के बाद भी जिले के श्रम विभाग में अधिकारियों की बेहद कमी है, जिससे मजदूरों की समस्याओं का हल नहीं हो पाता है। 4- कंपनियों में मजदूरों से समान कार्य कराया जाता है, लेकिन स्थाई कर्मचारियों की तुलना में उन्हें बेहद कम वेतन मिल पाता है। इसे न्यूनतम 30 हजार रुपये किया जाए। 5-जिस तरह पूंजीपतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की गई है, लेकिन मजदूरों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इससे उन्हें कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। सुझाव 1-सभी कंपनियों को अपने यहां श्रम कानूनों को लागू किया जाना चाहिए, जिससे मजदूरों के शोषण को रोका जा सके। इससे उनकी जिंदगी में सुधार आएगा। 2-कंपनियों को अपने यहां मशीनों को दुरुस्त करना चाहिए, जिससे मजदूरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके। दुर्घटना होने पर कंपनियों को मजदूरों की सहायता करनी चाहिए। 3-जिले में श्रम विभाग में अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे मजदूरों के मामलों की जल्द सुनवाई हो सके और उन्हें न्याय मिल सके। 4-कंपनियों में मजदूरों से समान काम कराए जाने के बाद उन्हें भी स्थाई कर्मचारियों के समान वेतन दिया जाना चाहिए। महिला कर्मचारियों का वेतन भी बढ़ाया जाना चाहिए। 5-जिस तरह पूंजीपतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था है, उसी तर्ज पर मजदूरों के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे उन्हें अपने कार्य के लिए अलग-अलग कार्यालयों में ना जाना पड़े। साझा किया दर्द कंपनियों में मजदूरों का अत्यधिक शोषण किया जाता है। मजदूरों से ज्यादा कार्य और ज्यादा समय तक कार्य करवाया जाता है, लेकिन वेतन बेहद कम दिया जाता है। -दिनेश चंद्र मजदूरों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। हमारे मांगपत्र कंपनियों में रखे रह जाते हैं, लेकिन उन पर कोई उचित कार्यवाही नहीं होती है। मजदूर सिर्फ मजबूर हैं। -चंद्रमोहन लखेड़ा श्रम विभाग में अधिकारियों की बेहद कमी है। उनकी संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। अधिकारियों को कंपनी की बजाए मजदूरों की बात सुननी चाहिए। मजदूरों को समान कार्य का समान वेतन दिया जाना चाहिए। - दिनेश तिवारी, अध्यक्ष, श्रमिक संयुक्त मोर्चा घोर मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड्स को रद्द किया जाना चाहिए। इसके लागू होने के बाद मजदूर हड़ताल तक नहीं कर सकते हैं। कानून ऐसे होने चाहिए, जिससे मजदूरों की आवाज बुलंद हो सके। - मुकुल, महासचिव, सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग ट्रेड यूनियन कंपनियों में महिलाओं का अत्यधिक शोषण होता है। उनसे ज्यादा कार्य कराया जाता है, जबकि पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले उन्हें काफी कम वेतन दिया जाता है। -अनीता अन्ना प्रत्येक कर्मचारी का न्यूनतम वेतन 30 हजार रुपये किया जाना चाहिए। मजदूरों के शोषण पर रोक लगनी चाहिए। श्रम विभाग के अधिकारियों को प्रत्येक सप्ताह मजदूरों के बीच कार्यक्रम करने चाहिए। -उत्तम जिन कर्मचारियों के साथ कार्य करते समय दुर्घटना होती है, उन्हें इंसाफ मिलना चाहिए। कार्य करने की उनकी क्षमता कम होने पर कंपनियों को उन्हें निकालना नहीं चाहिए। -विजेंद्र पूंजीपतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम है। हमारे लिए भी ऐसी योजना होनी चाहिए, जिससे हमें कार्यालयों में भटकना न पड़े। श्रम विभाग के अधिकारियों को मजदूरों की पीड़ा भी सुननी चाहिए। -कैलाश चंद्र ठेकेदारी प्रथा को बंद किया जाना चाहिए। ठेकेदारी प्रथा में मजदूरों का अत्यधिक शोषण होता है। ट्रेनी कर्मचारियों का अत्यधिक शोषण होता है, इस पर भी रोक लगनी चाहिए। -हरेंद्र सिंह मजदूरों के संगठित होने के ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमले करना बंद होना चाहिए। समान कार्य का समान वेतन दिया जाना चाहिए। महिलाओं का शोषण रोका जाना चाहिए। -जय शंकर राजपूत चार लेबर कोड्स को रद्द किया जाना चाहिए। इससे मजदूरों के मौलिक अधिकार का हनन होगा। कंपनियों में मजदूरों से 12-12 घंटे कार्य करवाया जा रहा है, उस पर रोक लगे। -सौरभ कुमार श्रम विभाग में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे मजदूरों के मामलों पर त्वरित कार्रवाई की जा सके। कंपनियों में सख्ती से श्रम कानून लागू करवाए जाने चाहिए। -फिरोज खान कंपनी में काम करते समय मजदूरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं में कंपनियों को पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। मजदूर अपना श्रम व समय कंपनी के लिए खर्च करता है। -प्रशांत बोले उप श्रमायुक्त कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को हमेशा विभाग की ओर से सहयोग किया जाता है। समय-समय पर कंपनियों में मानकों की जांच भी की जाती है। मानकों में कमी पाए जाने पर कंपनियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाती है। अधिकारी हमेशा कार्यालय में उपस्थित रहते हैं। - केके अग्रवाल, उप श्रमायुक्त, श्रम विभाग
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