बुद्ध ने भिक्षु के अशांत मन को शांत और निर्मल किया
महात्मा बुद्ध के पास एक राजकुमार दीक्षा के लिए आया। कुछ समय पश्चात राजकुमार दीक्षित हो गया। एक दिन बुद्ध ने उसे किसी श्राविका के घर भिक्षा के लिए भेजा। जब वह भिक्षु भिक्षा के लिए जा रहा था तो रास्ते में चलते-चलते उसे खयाल आया कि जो भोजन मुझे प्रिय है, वह तो अब मुझे मिलेगा नहीं।

महात्मा बुद्ध के पास एक राजकुमार दीक्षा के लिए आया। कुछ समय पश्चात राजकुमार दीक्षित हो गया। एक दिन बुद्ध ने उसे किसी श्राविका के घर भिक्षा के लिए भेजा। जब वह भिक्षु भिक्षा के लिए जा रहा था तो रास्ते में चलते-चलते उसे खयाल आया कि जो भोजन मुझे प्रिय है, वह तो अब मुझे मिलेगा नहीं। लेकिन जब वह भिक्षु श्राविका के घर पहुंचा तो उसे वही भोजन मिला, जो उसे बहुत पसंद था। यह देखकर वह बहुत हैरान हुआ। फिर उसने सोचा कि यह संयोग होगा कि श्राविका के यहां आज उसकी पसंद का भोजन बना है। भोजन करते-करते उसके मन में विचार आया कि रोज तो वह भोजन के बाद विश्राम करता है, लेकिन आज उसे धूप में ही वापिस जाना होगा। लेकिन तभी श्राविका ने उससे कहा कि उनकी बड़ी कृपा होगी कि यदि वह भोजन के बाद दो घड़ी विश्राम भी कर लें। वह हैरान था कि श्राविका उसके मन की बात कैसे जान गई। भोजन के बाद श्राविका ने उसके लिए चटाई बिछा दी। भिक्षुक उस पर लेट गया। लेटते ही उसके मन में खयाल आया कि अब तो यह आकाश ही छप्पर है और जमीन ही बिछौना है। वह यह सोच ही रहा था कि श्राविका वापिस आई और उसे बिछौना लाकर दिया। यह देख कर वह हैरान रह गया। उसके लिए अब इसे संयोग मानना मुश्किल लग रहा था। वह उठ कर बैठ गया और उसने श्राविका से पूछा कि क्या तुम मेरे मन में आ रहे विचारों को पढ़ लेती हो। श्राविका ने कहा, ‘हां वह सिर्फ उसके ही नहीं किसी के भी मन में उठ रहे भावों को जान लेती है।’ यह सुन कर वह भिक्षु घबरा गया और उसने श्राविका से वहां से जाने की आज्ञा मांगी।
वह बुद्ध के पास लौटा और कहा कि वह उस श्राविका के द्वार पर भिक्षा मांगने नहीं जाएगा। तथागत ने उससे इसका कारण पूछा। भिक्षु ने कहा कि वह श्राविका दूसरों के मन के विचारों को पढ़ लेती है। यह मेरे लिए बहुत लज्जाजनक है क्योंकि मेरे मन में उस सुंदर श्राविका के प्रति कुविचार भी आए थे। वह यह जान गई होगी। ऐसी स्थिति में वह उसके सामने नहीं जा सकता। बुद्ध ने भिक्षु से कहा कि भिक्षा के लिए उसे उस श्राविका के पास ही जाना होगा। उन्होंने जानबूझकर ही उसे उस श्राविका के पास भेजा है। और जब तक वे मना नहीं करें, तब तक उसे वहां जाना ही होगा। लेकिन उसे वहां होशपूर्वक जाना होगा। यह देखते हुए जाना होगा कि उसके भीतर कौन-से विचार उठते हैं और कौन-से नहीं।
वह भिक्षु दूसरे दिन उस श्राविका के पास गया और भाेजन करके लौट आया। वह बुद्ध के पास गया और उनके चरणों पर झुक गया। उसने तथागत से कहा कि आज जैसे ही वह उस श्राविका की कुटिया के निकट पहुंचा, उसके मन के विचार क्षीण हो गए। तब उसके मन में किसी तरह की कामना नहीं थी। उसका मन शांत था।
बुद्ध ने मुस्कराते हुए भिक्षु से कहा, ‘अब तुम्हेंं वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने इसलिए तुम्हें वहां भेजा था। अब तुम्हारी इच्छाएं समाप्त हो गई हैं। तुम्हारा मन शांत और निर्मल है। तुम्हारा विवेक जाग्रत हो गया है, जो तुम्हें सन्मार्ग की ओर ले जाएगा।’
अश्वनी कुमार