Love is the only way to reach God परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग प्रेम, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग प्रेम

ईश्वर को पाने का सहज-सरल उपाय है, ईश्वर के प्रेम में पड़ जाना। जब आप ईश्वर को जान जाएंगे, तब आप उनसे प्रेम करेंगे, और जब आप उनसे प्रेम करेंगे, तब आप स्वयं को उन्हें समर्पित कर देंगे।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, श्री श्री परमहंस योगानंदTue, 20 May 2025 10:07 AM
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परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग प्रेम

परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग प्रेम: ज्ञान से आप ईश्वर के स्वरूप को तो जान सकते हैं लेकिन उसकी प्राप्ति नहीं कर सकते। ईश्वर को पाने का सहज-सरल उपाय है, ईश्वर के प्रेम में पड़ जाना। जब आप उनसे प्रेम करेंगे, तब आप स्वयं को उन्हें समर्पित कर देंगे और यह समर्पण ही ईश्वर की प्राप्ति है।

मैंने अनुभव किया है कि जीवन इससे कहीं अधिक गहनतर है। उससे अधिक अद्भुत है। जब आप ईश्वर को जान लेते हैं, तब कोई दुख नहीं रह जाता। जिनसे आपने प्रेम किया और वे मृत्यु में समा गए, वे सब शाश्वत जीवन में फिर आपके साथ होंगे।

केवल प्रेम ही ईश्वर को पकड़ने का एकमात्र रास्ता है। ईश्वर पर ध्यान लगाएं और गहन प्रार्थना करें, “हे प्रभो!, मैं आपके बिना नहीं रह सकता। आप मेरी चेतना के पीछे विद्यमान शक्ति हैं। मैं आपसे प्रेम करता हूं। मुझे दर्शन दें।” उनका ध्यान करने के लिए जब आप नींद को त्याग देते हैं, जब आप स्वार्थ को छोड़ देते हैं और स्वयं ईश्वर को अपने बंधुओं में कष्ट भोगते देखकर रोते हैं तो वे आपके पास आ जाते हैं। जब आप वास्तव में उनके लिए त्याग करते हैं, तो वे आपके प्रेम जाल में फंस जाते हैं। अन्य कुछ उन्हें बांध नहीं सकता।

ज्ञान प्रेम के लिए रास्ता बनाता है। आप उसे प्रेम नहीं कर सकते, जिसे आप जानते ही नहीं। इसलिए ईश्वर से प्रेम करने से पहले उनका ज्ञान आवश्यक है। यह ज्ञान क्रियायोग के अभ्यास से आता है। जब आप ईश्वर को जान जाएंगे, तब आप उनसे प्रेम करेंगे, और जब आप उनसे प्रेम करेंगे, तब आप स्वयं को उन्हें समर्पित कर देंगे।

जब तक आपकी ईश्वरीय भक्ति और ईश्वरीय बोध पूरे नहीं हो जाते, विश्राम से न बैठें। ध्यान करने के समय नींद में न चले जाएं। ईश्वर की अपेक्षा अन्य किसी वस्तु को प्राथमिकता कभी न दें। उनका प्रेम ही महानतम प्रेम है। जब तक आप दूसरी वस्तुओं को प्रथम स्थान देते रहेंगे, वे प्रतीक्षा करते रहेंगे, परंतु आपका विलंब बहुत लंबा हो सकता है। आपके कष्ट और अधिक बढ़ सकते हैं। टालिए मत। अपनी अंतरात्मा की सच्चाई में विश्वस्त हो जाएं कि आपने उनसे संपर्क करने का पूरा प्रयास कर लिया है। विश्राम मत करें, तब तक प्रयास न छोड़ें, जब तक कि आप उन्हें अपनी आंखों से देख न लें या अपने हृदय में उन्हें अनुभव न कर लें। जन्म, खेलकूद, विवाह, संतान, वृद्धावस्था और फिर जीवन समाप्त हो जाता है। यह जीवन नहीं है! मैंने अनुभव किया है कि जीवन इससे कहीं अधिक गहनतर है और उससे अधिक अद्भुत है। जब आप ईश्वर को जान लेते हैं, तब कोई दुख नहीं रह जाता। जिनसे आपने प्रेम किया और वे मृत्यु में समा गए, वे सब शाश्वत जीवन में फिर आपके साथ होंगे। आप नहीं जानते कि किसको आप ‘अपना’ समझें, क्योंकि वहां प्रत्येक आपका अपना है। ईश्वर की सुंदरता अपार है। पुष्पों की मनोहरता का आनंद लेना ठीक है, परंतु उससे कहीं अधिक अच्छा है उनकी सुंदरता और पवित्रता के पीछे ईश्वर के चेहरे को देखना। संगीत की, मात्र उससे मिलने वाले आनंद में अपने आप में बह जाने की तुलना, उसमें विद्यमान ईश्वर की रचनात्मक वाणी को सुनने से नहीं की जा सकती। यद्यपि ईश्वर सृष्टि के सीमित सौंदर्य में अंतर्निहित हैं, फिर भी भौतिक स्वरूप और सीमितता से परे शाश्वत आत्मा की अनुभूति करना ही ज्ञान है।

मैं यहां माउंट वाशिंगटन और एंसिनिटास आश्रमों के अपने बगीचों के प्रति बहुत स्नेही हूं। मैं उनकी सुंदरता से कभी नहीं ऊबता। लेकिन हाल ही में ईश्वर ने मुझे जाग्रत करने वाला एक अनुभव कराया। मैंने अंतर में देखा कि लोग बैठे हैं और बातें कर रहे हैं। उनमें से एक ने किसी कार्य का प्रस्ताव रखा, लेकिन दूसरे ने कहा, ‘नहीं, परमहंसजी ने सिखाया है कि हमें वह कार्य नहीं करना चाहिए।’ मैंने अचानक अनुभव किया कि यही वह मानस दर्शन है, जिसे आने वाले समय में फलीभूत होना है, जब मैं इस शरीर में यहां नहीं रहूंगा। एक क्षण के लिए मैं हिल गयाऔर फिर मैं अपनी सामान्य चेतना में वापस आ गया।

इस संसार में किसी भी वस्तु के प्रति आसक्ति रखने का कोई लाभ नहीं है। ईश्वर के ब्रह्मांडीय नाटक में अनेक वस्तुएं आती और जाती हैं। मैं विमान क्षेत्रों को नष्ट होते और समुद्र को शवों से भरे तथा आने वाले समय में बहुत से दूसरे होने वाले कार्यों को देखता हूं। मैं अपने हृदय में, संसार को अपने बिना देखता हूं। और, यह स्वतंत्रता ईश्वर प्रत्येक आत्मा को देते हैं।

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