नदी-पहाड़ों के बीच कैद ज़िंदगी, असनातरी गांव की पुकार कौन सुनेगा
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- कविन्द्र कुमार सिंह अंधेरे में टिमटिमाता ‘असनातरी गांव, जहां अब भी विकास एक सपना आज़ादी के 77 साल बाद

कटोरिया (बांका), निज प्रतिनिधि। जिले के चांदन प्रखंड अंतर्गत धनुबसार पंचायत के उत्तरी सीमा पर बसा असनातरी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रहा है। जब सूरज की पहली किरणें असनातरी गांव के चारों ओर खड़े पहाड़ों से छनकर ज़मीन पर गिरती हैं, तो गांव के लोग एक नई सुबह की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं। मगर हर दिन वही हकीकत सामने आती है, टूटी उम्मीदें, अधूरे वादे और विकास से कोसों दूर एक और संघर्ष भरा दिन। लगभग 40 परिवारों और 500 लोगों की आबादी वाला यह गांव एक प्राकृतिक खूबसूरती के बीच फंसी त्रासदी की तरह है। ऐसा लगता है जैसे यह गांव समय के किसी भूले-बिसरे कोने में फंसा हुआ है, जहां आज़ादी के 77 साल बाद भी विकास महज एक सपना है। गांव की भौगोलिक स्थिति ही इसकी सबसे बड़ी परेशानी बन गई है। असनातरी गांव दो दिशाओं से नदियों से घिरा है, जबकि दो दिशाओं में पहाड़ व टीला है। यही वजह है कि गांव तक किसी प्रकार की सड़क या पुलिया का निर्माण नहीं हो पाया है। वन विभाग की अनुमति न मिलने से सड़क निर्माण कार्य अटका हुआ है, वहीं नदी पर पुल नहीं होने से बरसात के मौसम में गांव का संपर्क पूरी तरह कट जाता है। यह गांव ना सिर्फ सड़कों से कटा हुआ है, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जरूरी सुविधाओं से भी पूरी तरह पिछड़ा हुआ है। यहां बच्चे किताबों से पहले नदी की धार और पगडंडियों की खतरनाक राहें नापते हैं, और बीमारों के लिए इलाज नहीं, बल्कि एक पहाड़ जैसी चुनौती होती है। महिलाएं गर्भावस्था के दौरान भय और तनाव में जीवन गुजारती हैं। किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में समय पर इलाज मिल पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। छोटे बच्चों को टीकाकरण, पोषण और शैक्षिक सुविधा से दूर रहना पड़ता है। ग्रामीणों के जीवन की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत एक जंग बन चुकी है। हर साल बारिश के मौसम में असनातरी गांव की हालत बद से बदतर हो जाती है। नदियों का जलस्तर बढ़ने से गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है। लोग गांव से बाहर नहीं जा पाते, ना ही बाहर से कोई वाहन गांव में आ सकता है। ऐसे में किसी तरह की सामाजिक या पारिवारिक गतिविधि जैसे शादी-ब्याह आदि पूरी तरह बाधित हो जाती हैं। ग्रामीणों का मुख्य पेशा खेती है, लेकिन उपज को बाजार तक पहुंचाने में भी उन्हें भारी परेशानी होती है। भविष्य संवारने के लिए यहां के बच्चों को नदी पार कर स्कूल जाने से पहले अपने भाग्य और मौसम का हाल देखना होता है। गांव में न कोई प्राथमिक विद्यालय है और न ही आंगनबाड़ी केंद्र। शिक्षा पाने के लिए बच्चों को तीन किलोमीटर दूर धनौछी, दो किलोमीटर दूर बरगुनिया या डेढ़ किलोमीटर दूर कटसकरा गांव जाना पड़ता है। लेकिन स्कूल तक जाने का रास्ता नदियों और पगडंडियों से होकर गुजरता है। बरसात के दिनों में जब नदियां उफान पर होती हैं, तो बच्चों की पढ़ाई महीनों तक ठप हो जाती है। कई बार बच्चे फिसलकर गिर जाते हैं या वापस लौट आते हैं। ऐसे में बच्चों की पठन पाठन भी प्रभावित हो रही है। गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और भी चिंताजनक है। स्थिति इतनी दयनीय है कि यहां बीमार पड़ने पर लोग पुराने जमाने की तरह डोली खटोली के माध्यम से मरीज को नदी, पहाड़, टीला लांघकर संपर्क मार्ग तक पहुंचाते हैं। ग्रामीणों को मरीज को खाट पर लादकर टीला और पहाड़ को लांघकर करीब दो किलोमीटर दूर गढ़ीटांड़ मोड़ तक पहुंचाना पड़ता है। यह मोड़ ही गांव से संपर्क का एकमात्र रास्ता है, जहां एंबुलेंस या निजी वाहन खड़े किए जाते हैं। बाइक से चल सकने वाले मरीज ही किसी तरह वहां तक पहुंच पाते हैं, लेकिन बाकी को ले जाना एक बेहद कठिन और जोखिम भरा कार्य होता है। ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव में नेता गांव की समस्याएं सुनते हैं, विकास के वादे करते हैं, लेकिन जीत के बाद सबकुछ भूल जाते हैं। ना कभी कोई जनप्रतिनिधि यहां स्थाई समाधान लेकर आया, ना ही कोई ठोस योजना शुरू हुई। हर चुनाव के साथ सिर्फ आश्वासन मिले, लेकिन धरातल पर नतीजा आज तक शून्य रहा। गांव में आज तक कोई नेता एक सामुदायिक भवन तक का निर्माण नहीं करा सके। विधायक मनोज यादव ने कहा कि असनातरी गांव की स्थिति हमारे संज्ञान में है। यह एक विशेष परिस्थिति वाला इलाका है, जहां भौगोलिक बाधाएं विकास कार्यों में चुनौतियां उत्पन्न करती हैं। फिर भी संबंधित विभागों से बात कर समाधान निकालने की कोशिश जारी है। हमारा प्रयास है कि असनातरी गांव को जल्द से जल्द मुख्यधारा से जोड़ा जाए।
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