Decline of Traditional Katerni Rice Farming in Amarpur Farmers Seek Support अमरपुर में विलुप्त होता जा रहा कतरनी धान,, Banka Hindi News - Hindustan
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अमरपुर में विलुप्त होता जा रहा कतरनी धान,

बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- विपिन कुमार सिंह सरकारी उदासीनता एवं उपेक्षा से सिमटती जा रही कतरनी की खेती, बाजार नहीं मिलने की

Newswrap हिन्दुस्तान, बांकाThu, 22 May 2025 05:32 AM
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अमरपुर में विलुप्त होता जा रहा कतरनी धान,

अमरपुर (बांका), निज संवाददाता| अमरपुर प्रखंड क्षेत्र कभी कतरनी धान तथा उत्तम क्वालिटी के गुड़ के लिए काफी प्रसिद्ध था। अमरपुर के पूर्वी हिस्से में कतरनी धान की उपज बड़े पैमाने पर होती थी तो पश्चिमी क्षेत्र गन्ने की मिठास एवं गुड़ के लिए नामी था। अमरपुर के कतरनी धान के चावल एवं चुरा की खुशबू तथा गुड़ की सौंधी महक से ना सिर्फ यह क्षेत्र सुगंधित था बल्कि देश के अनेक हिस्सों में इनकी अलग पहचान थी। कतरनी धान की उपज के लिए भदरिया एवं तारडीह पंचायत की अलग पहचान थी तो महादेवपुर, भीखनपुर, गरीबपुर, लक्ष्मीपुर चिरैया, कुशमाहा, कोल बुजुर्ग, बिशनपुर आदि पंचायतों में गन्ने की उपज तथा कोल्हू एवं छोटे मिलों में गुड़ बनाने की कला स्थानीय किसानों में थी।

हालांकि अब यह दोनों ही चीजें इस क्षेत्र से विलुप्त होती जा रही है। प्रखंड क्षेत्र के भदरिया एवं तारडीह पंचायत के किसानों ने बताया कि पहले इस क्षेत्र के रामचंद्रपुर, लक्ष्मीपुर, भदरिया, रघुनाथपुर, लौसा, राजापुर, तारडीह, गंगापुर गढैल आदि गांवों में करीब पांच सौ एकड़ में सिर्फ कतरनी धान लगाए जाते थे। खेतों में धान की रोपाई के समय से ही कतरनी की खुशबू चारों ओर फैलने लगती थी। इधर से गुजरने वाले लोगों को धान की सुगंध लगते ही वह समझ जाते थे कि भदरिया एवं तारडीह पंचायत से वह गुजर रहे हैं। पूर्व में परंपरागत तरीके से खेती की जाती थी। लोग हल-बैल से खेतों की जुताई कर लगन एवं मेहनत से धान का बीचड़ा बुनते थे तथा बीचड़ा तैयार होते ही धान की बुआई में लग जाते थे। धीरे-धीरे परंपरागत खेती समाप्त होती चली गई तथा किसान आधुनिक खेती की ओर मुड़ गए। इसका असर कतरनी की खेती पर पड़ा तथा इस धान की खेती अब सिमट कर करीब पचास एकड़ में रह गई है। गांव के किसानों ने बताया कि कतरनी धान की खासियत है कि इसकी उपज कमजोर मिट्टी में होती है तथा सभी धान की बुआई के बाद ही कतरनी धान की बुआई होती है। पूर्व के समय में किसान परंपरागत तरीके से हल-बैल से खेतों की जुताई करते थे। किसान दूसरे प्रकार के धान की बुआई करने के बाद सबसे आखिर में खेत में हल-बैल लेकर जाते थे तथा खेतों की जुताई कर उसमें कतरनी धान की रोपाई करते थे। इसमें रासायनिक खाद का उपयोग बिल्कुल ही नहीं किया जाता था। घर में गाय, भैंस के गोबर से बने कंपोस्ट खाद के रूप में प्रयोग किए जाते थे। इसमें पटवन की भी अधिक जरूरत नहीं थी। सभी धान के कट जाने के बाद सबसे अंतिम में कतरनी धान की कटाई होती थी। नवान्न पर्व अथवा मकर संक्रांति तक इस क्षेत्र के घर-घर से कतरनी धान की खुशबू आने लगती थी। ग्रामीणों के दूर-दराज के रिश्तेदारों के घर पर्व के पहले संदेश के रूप में कतरनी चावल एवं चूड़ा पहुंचने लगते थे। किसानों ने बताया कि इस क्षेत्र की मिट्टी में इतनी उर्वरा शक्ति थी कि यह क्षेत्र कतरनी धान के लिए प्रसिद्ध हो गया था। धीरे-धीरे समय बदलता गया तथा किसान भी हल-बैल छोड़ कर आधुनिक खेती करने लगे। जिसमें सबसे ज्यादा उपयोग ट्रैक्टर का होने लगा। लेकिन इसका दुष्प्रभाव कतरनी की खेती पर पड़ा। सभी प्रकार के धान खेत में लगा देने के बाद खेतों तक पहुंचने का रास्ता बंद हो जाता था। जिससे सबसे आखिर में लगने वाले कतरनी धान के खेतों तक ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता था। इसका असर यह हुआ कि इस धान की खेती में किसान पिछड़ते चले गए। किसानों ने बताया कि चांदन नदी के किनारे दोनों पंचायत बसे हैं जिससे पटवन की कभी समस्या नहीं रही। पहले तो सीधे नदी से पटवन होता था लेकिन अब नदी में नहर एवं डांड बांध बना दिए गए जिससे पटवन की कभी दिक्कत नहीं हुई। लेकिन हल-बैल से खेती छोड़ने तथा ट्रैक्टर का सहारा लेने के कारण यहां अब मुश्किल से पचास एकड़ में कतरनी की खेती की जा रही है। छोटे-छोटे किसान तो पूरी तरह इस धान की खेती से मुंह मोड़ चुके हैं, जिनके पास अधिक जमीन है वह अपनी जमीन के कुछ हिस्से में अभी भी कतरनी धान लगाते हैं। किसानों ने बताया कि इस धान के लिए उजली मिट्टी काफी उपजाऊ होती है, लेकिन ट्रैक्टर से खेतों की जुताई होने के कारण मिट्टी में भी बदलाव आ गया। अब पहले जैसी सुगंध कतरनी धान में नहीं आती है साथ ही धान की क्वालिटी में भी परिवर्तन हुआ है। किसानों ने बताया कि उस समय बड़ी मात्रा में धान की उपज होती थी। क्षेत्र के किसान धान तैयार कर खेतों से अपने घर लाते थे। फिर इसे बेचने की समस्या खड़ी हो जाती थी। इस क्षेत्र का कतरनी का सबसे बड़ा बाजार जगदीशपुर है, वहां तक धान पहुंचाने में काफी मुश्किल काम था। समय की बर्बादी तो होती ही थी, बैलगाड़ी से वहां जाने के बाद व्यवसायी अपने हिसाब से धान की कीमत लगाते थे। कम कीमत मिलने के बावजूद धान को बेचना उनकी मजबूरी हो जाती थी। कुछ व्यापारी गांव में आकर धान खरीदते थे लेकिन वह भी धान की कीमत कम ही लगाते थे। लेकिन जगदीशपुर जाने की परेशानी को देखते हुए कुछ किसान स्थानीय व्यापारी को ही धान बेच देते थे। इस क्षेत्र के किसानों ने कहा कि यदि सरकार से उन्हें प्रोत्साहन मिले तो वे लोग फिर से कतरनी धान की खेती शुरू कर सकते हैं। कहते हैं जिम्मेदार: अमरपुर के भदरिया एवं तारडीह पंचायत में अभी भी कतरनी धान की खेती हो रही है। इस खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने का विभागीय प्रयास जारी है। *विनय कुमार पाठक, बीएओ, अमरपुर* कहते हैं किसान: कतरनी धान की खासियत है कि इसकी बुआई देर से तथा कटाई भी सबसे आखिर में होती है। लेकिन ट्रैक्टर से शुरू हुई खेती ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। अब कतरनी की खेती में पहले जैसी बात नहीं रही। *अखिलेश्वरी कापरी, रामचंद्रपुर* पहले इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसान कतरनी धान की खेती करते थे। लेकिन कतरनी की तरह का ही सोनम धान आ जाने से इसकी कीमत प्रभावित हुई। इससे हतोत्साहित होकर अधिकांश किसान कतरनी की खेती छोड़ चुके हैं। *जयप्रकाश साह, रघुनाथपुर* कतरनी धान की खेती करने के लिए किसानों को जागरूक रहना पड़ता है। थोड़ी सी भी अधिक खाद डालने से धान के पौधे काफी बढ़ जाते हैं तथा हल्की हवा चलने पर वह गिर भी जाते हैं जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है। इसके अलावा कतरनी धान की खेती बंद होने का एक कारण ट्रैक्टर से खेती करना भी है। *कृत्यानंद कापरी, रामचंद्रपुर* सिर्फ रामचंद्रपुर गांव में कतरनी धान की खेती सैकड़ों एकड़ में होती थी। लेकिन किसानों को इसका उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण धान की खेती प्रभावित हुई है। हालांकि अपने स्तर से किसानों को फिर से कतरनी धान की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। *प्रशांत कापरी, रामचंद्रपुर* कतरनी धान की खेती अब भी होती है। किसानों द्वारा खेतों के थोड़े हिस्से में इसकी खेती की जा रही है। हालांकि अपने अभिभावकों से यह सुना है कि इस क्षेत्र में कतरनी धान की उपज बड़ी मात्रा में होती थी। शायद फिर से वह दिन देखने को मिले। *सुलेन्द्र सिंह, भदरिया* कतरनी धान के समकक्ष ही सोनम धान की उपज शुरू हो जाने से व्यापारी दोनों धान की मिलावट कर देते थे, जिससे कतरनी की मांग एवं कीमत कम होने लगी। इस वजह से किसान इस धान की खेती से विमुख हो रहे हैं। *नकलेश्वर कापरी, रामचद्रपुर* कतरनी धान की खेती अभी भी हो रही है लेकिन पहले जैसी खेती अब देखने को नहीं मिलती है। किसानों की सबसे बड़ी समस्या बाजार की है। स्थानीय स्तर पर बाजार मिलने से किसान फिर से कतरनी धान की खेती शुरू कर सकते हैं। *कमोद राम, राजापुर* अमरपुर के भदरिया एवं तारडीह पंचायत कतरनी धान की उपज के लिए प्रसिद्ध थे। आज भी यहां कतरनी की खेती होती है, लेकिन किसानों को आर्थिक रूप से हानि होने के कारण अब इसकी खेती कम हो गई है। *निलेश सिंह, गंगापुर गढैल* कतरनी धान की खेती कम होने का कारण किसानों द्वारा परंपरागत तरीके से खेती करना छोड़ देना है। ट्रैक्टर से खेतों की मिट्टी बदल रही है। यदि पुराने तरीके से खेती होगी तो फिर से कतरनी की उपज हो सकती है। *मनोरंजन कापरी, रामचंद्रपुर* मेरे पूर्वजों द्वारा कतरनी धान की खेती की जाती थी। लेकिन अब इसकी खेती काफी कम हो गई है। इसके कई कारण हैं जिसमें सबसे प्रमुख कारण खेती के तरीके में बदलाव होना है तथा स्थानीय स्तर पर बाजार का नहीं होना भी है। *श्रवण यादव, गंगापुर गढैल* खेतों की जुताई ट्रैक्टर से होने के कारण मिट्टी काफी बदल गई है। जिससे कतरनी धान की क्वालिटी में भी फर्क आया है। सोनम धान की उपज ज्यादा होने से किसानों को कतरनी धान की कीमत कम मिल रही है। *राजू राम, राजापुर* कभी यह क्षेत्र कतरनी धान की सौंधी खुशबू से सराबोर रहता था, लेकिन इसके समकक्ष सोनम धान के आ जाने से किसानों को नुकसान होने लगा। इस वजह से किसान कतरनी धान की खेती कम करते जा रहे हैं। *अभिमन्यु कापरी, रामचंद्रपुर*

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