मां काली की पूजा कर व बली देकर शुरू करेंगे खेतीबारी
पहाड़ी क्षेत्रों में बकरा-बकरी और मुर्गा-मुर्गी की बली देने की परंपरा है। किसान मां काली की पूजा कर खरीफ की खेती की शुरुआत करते हैं। पूजा में महिलाएं, पुरुष, और बच्चे भाग लेते हैं। ग्रामीण अच्छी फसल,...

पहाड़ी क्षेत्रों में बकरा-बकरी, मुर्गा-मुर्गी की बली देने की है परंपरा वनवासी मां काली, डीह, डीहवार बाबा व धरती मां की करते हैं पूजा (पेज चार) अधौरा, एक संवाददाता। प्रखंड क्षेत्र के किसान मां काली की पूजा व बली प्रथा को पूरी कर खरीफ मौसम की खेती की शुरुआत करेंगे। इसके लिए बैगा व गवहां द्वारा ग्रामीणों से चंदा वसूली का काम किया जा रहा है। राशि का इंतजाम होते ही पूजा की तिथि तय कर दी जाती है। अधौरा की यह परंपरा पुरानी है। इस पूजा में महिला, पुरुष, बच्चे, युवक-युवतियां भाग लेती हैं। चह मां काली, डीह, डीहवार बाबा व धरती माता की सोल्लासपूर्ण पूजा-अर्चना करते हैं।
जयकारा गांव-जवार तक पहुंचता है। ग्रामीणों सुरेश यादव व रामचंद्र खरवार ने बताया कि पूजा के दौरान किसान अच्छी खेती, बंपर उपज, रोग-दु:ख दूर करने, समय पर बारिश होने की कामना करते हैं। बड़गांव खुर्द के बैगा राजकुमार खरवार व गवहां लक्ष्मण खरवार ने बताया कि पूजा की तैयारी शुरू कर दी गई है। महिलाएं अपने घर से चावल व घी लेकर पहुंचती हैं। मां को उक्त चीजें अर्पित कर चूल्हे पर पकाया जाता है। एक साथ पंगत में बैठकर ग्रामीण प्रसाद ग्रहण करेंगे। गांव के 80 वर्षीय चरितर उरांव व धनु शर्मा ने बताया कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के काल से चली आ रही है। बरसात शुरू होने से पहले हर गांव में इस पूजा को संपन्न करानी होती है। पूजा करने के बाद किसान अपने खेतों में खाद-बीज डाल सकते हैं, अन्यथा बैगा द्वारा आर्थिक दंड लगाया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां की खेती वर्षा के पानी पर निर्भर है। इसलिए मां काली की पूजा कर बारिश के लिए प्रार्थना की जाती है।
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