हिन्दू मंदिर में करिए शिवलिंग की पूजा, महाबोधि मंदिर बौद्ध को सौंप दीजिए: आठवले
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा है कि महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बुद्धिस्टों को सौंप देना चाहिए। उन्होंने कहा कि महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग की पूजा ठीक नहीं है, उसे परिसर के हिन्दू मंदिर में करना चाहिए।

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने सलाह दी है कि बोधगया का महाबोधि महाविहार मंदिर बौद्ध लोगों के हवाले कर देना चाहिए। आठवले ने महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध के ठीक सामने स्थापित शिवलिंग की पूजा परिसर में ही बने हिन्दू मंदिर में करने की भी सलाह दी और कहा कि बुद्ध मंदिर में शिवलिंग की पूजा ठीक नहीं है। बौद्ध धर्म को मानने वाले आठवले ने गुरुवार को पटना में एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान बोधगया मंदिर प्रबंध समिति से हिन्दुओं को हटाकर सिर्फ बौद्धों को रखने की मांग को लेकर गया में चल रहे आंदोलन पर भी अपनी बात रखी।
बता दें कि बिहार सरकार द्वारा बनाए गए बोधगया मंदिर कानून 1949 के तहत बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति (बीटीएमसी) ही महाबोधि मंदिर परिसर की व्यवस्था देखती है। 1953 में लागू इस कानून के मुताबिक समिति में अध्यक्ष समेत 9 सदस्य हो सकते हैं। 4 बौद्ध और 4 हिन्दू सदस्यों के अलावा गया के पदेन डीएम समिति के अध्यक्ष होते हैं। पहले डीएम भी तभी अध्यक्ष हो सकते थे जब वो हिन्दू हों और ऐसा ना होने पर राज्य सरकार किसी हिन्दू को अध्यक्ष मनोनीत करती थी। 2013 में नीतीश कुमार की सरकार ने इसमें संशोधन करके डीएम के लिए हिन्दू धर्म का होने की शर्त हटा दी जिससे कोई भी डीएम हो, वो समिति का चेयरमैन बनाया जा सके।
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आठवले ने पटना में मंदिर प्रबंध समिति को लेकर कहा- “पूरे देश के बौद्ध लोगों की ये मांग है कि 1949 में जो बिहार विधानसभा ने कानून बनाया, उसमें इस ट्रस्ट में चार लोग बौद्ध, चार लोग हिन्दू और कलेक्टर हिन्दू होगा तो वो होगा। मेरा कहना है कि अगर हिन्दू मंदिर में कोई बौद्ध ट्रस्टी नहीं होता है तो हमारे ट्रस्ट में… कानून होगा लेकिन वो संविधान लागू होने के पहले का है। उस कानून को बदलना चाहिए और उसमें 8 ट्रस्टी जो हैं, 8 ट्रस्टी बुद्धिस्ट होने चाहिए। हमारी एक ही मांग है। हिन्दू विरोधी मांग नहीं है। बौद्धों का मंदिर बौद्धों के हवाले कर दो।”
महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और उसकी पूजा को लेकर आठवले ने पत्रकारों से कहा- “शिवलिंग की पूजा हिन्दू धर्म के लोगों को करनी है, उनका तो धर्म है, लेकिन वो बुद्ध मंदिर, बुद्ध विहार में नहीं होना चाहिए। शिवलिंग पूजा जरूर होनी चाहिए लेकिन वो पूजा बुद्ध मंदिर के परिसर में होना ठीक नहीं है। हिन्दू मंदिर भी बगल में है, वहां वो पूजा होती तो अच्छी बात है। वो भी पूजा करें।”
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याद दिला दें कि संसद में जब वक्फ संशोधन बिल पर बहस हो रही थी, तब राज्यसभा में रामदास आठवले ने 3 अप्रैल को भी बोधगया मंदिर प्रबंध समिति में नॉन-बुद्धिस्ट सदस्यों का मसला उठाया था। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से मुखातिब आठवले ने कहा था कि सभी सदस्य बौद्ध होने चाहिए, सरकार देखे कि वो क्या कर सकती है।
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अगले दिन 4 अप्रैल को राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी राज्यसभा में इस मसले को उठाया था। वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को रखने का विपक्षी दलों के विरोध के जवाब में उपेंद्र कुशवाहा ने कांग्रेस को याद दिलाया कि उसकी सरकार ने बिहार में बोधगया मंदिर कानून बनाया था, जिसमें हिन्दुओं को रखा गया। कुशवाहा ने कांग्रेस से पूछा था कि तब आपको नहीं लगा था कि बौद्ध मंदिर है तो सिर्फ बुद्धिस्टों को ही होना चाहिए। उन्होंने किरेन रिजिजू को उनके भी बौद्ध धर्म से होने की याद दिलाते हुए कहा था कि दुनिया भर में संदेश गया है कि बोधगया में आंदोलन चल रहा है। कुशवाहा ने कहा था कि एक ही मंदिर की बात है, सरकार बौद्धों को सौंप दे और उसके प्रबंधन का काम बुद्धिस्टों को अपने हिसाब से करने दे।