सरकार से मिले प्रोत्साहन व संरक्षण तो दूर होंगी नाई समाज की समस्याएं
समस्तीपुर में नाई समाज अपने पारंपरिक काम को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। युवा पीढ़ी अब इस पेशे में रुचि नहीं दिखा रही है, जबकि अन्य समाज के लोग सैलून का काम करने लगे हैं। उन्हें श्रमिक सुविधाओं और...
समस्तीपुर। आदमी के जन्म से लेकर अंतिम समय तक विभिन्न अवसरों पर नाई समाज के लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में महत्वपर्ण भूमिका निभाने के बाद भी इस समाज की समस्याएं कम नहीं हो पा रही हैं। इनके पारंपरिक काम को इस समाज की युवा पीढ़ी आगे नहीं बढ़ाना चाहती है। दूसरी ओर, सैलून के काम में दूसरे समाज के लोग भी उतरने लगे हैं। इससे चुनौती मिलने लगी है। कठिन श्रम कर परिवार का भरण पोषण कर रहे नाई समाज को श्रमिक सुविधाओं का लाभ नहीं मिलने का मलाल है। संसाधन और पूंजी के अभाव में नाई समाज पिछड़ता जा रहा है। ऐसे में वे अपने लिए सरकार और जनप्रतिनिधियों से अपने लिए विशेष संरक्षण की मांग कर रहे हैं।
नुष्य के जन्म से लेकर अंतिम समय तक विभिन्न अवसरों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला नाई समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। कठिन श्रम कर परिवार का भरण पोषण कर रहे समाज को श्रमिक सुविधाओं का लाभ न मिलने का मलाल है। संसाधन और पूंजी के अभाव में नाई समाज पिछड़ता जा रहा है। नई समाज के लिए सरकार और सिस्टम को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। नाई समाज के लोगों ने ‘बोले हिन्दुस्तान के तहत अपनी कई मांगें रखीं। उनका कहना है कि नाई का समाज में अहम योगदान है। बावजूद इसके अबतक उनके विकास के लिए सरकार को जो काम करना चाहिए था, वह नहीं हुआ। नाई समाज कि भी मांग है कि इनके काम को देखते हुए पंजीकरण हो और कार्ड जारी कर योजनाओं का लाभ तो मिले ही, साथ ही विशेष दर्जा भी मिले। नाई की जरूरत सबको है। ये रीति-रिवाजों का प्रमुख हिस्सा हैं। बगैर इनके किसी भी का अनुष्ठान पूरा होना संभव नहीं है। लेकिन, आज नाई समाज अपने पारंपरिक कार्यों में से बाल-दाढ़ी बनाने तक सीमित रह गया है। जबकि एक दौर था जब नश चढ़ने पर उसे बैठाना, टूटी हुई हड्डी को सेट करने, चंपी करना सहित कई ऐसे कार्यों के लिए जाना जाता था, जिससे किसी व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक रूप से राहत दी जा सकती है। नया जनरेशन अपनी पारंपरिक कला को सम्पूर्ण रूप से सीखने व उसमें नई तकनीक के साथ बाजार में उपलब्ध कराने से कतराता है। इसके पीछे पूंजी का अभाव से लेकर इच्छा शक्ति की कमी तक है।
मिल रही चुनौती : नाई समाज के लोगों ने बताया कि इनके परंपरागत कार्य का आधुनिकीकरण हो गया है। अस्तुरा वाला दौर नहीं रहा। नये दौर की सोच के हिसाब का स्टैंडर्ड मेंटेन करने पर ही दुकान पर लोग पहुंचते हैं। इसके लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। इसका लाभ दूसरे समाज के लोग उठाते हैं। पूंजी के अभाव में नाई समाज के युवा दूसरे समाज द्वारा खोले गए सैलून, पार्लर आदि में मजदूरी करते हैं और गुजर बसर करने को विवश हैं। दूसरे समाज के लोगों के आने से चुनौतियां बढ़ गई हैं।
सैलून के लिए नाई समाज को मिले प्राथमिकता : युवाओं के लिए पौराणिक सभी कलाओं का प्रशिक्षण केंद्र हो। जहां से प्रशिक्षित होकर युवा वर्तमान दौर के हिसाब से दुकान संचालक कर सके। घर और बाहर दोनों जगह से युवाओं को जब प्रशिक्षण मिलेगा, तो उनके काम में निखार आएगा और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। इसके साथ ही सैलून के लिए सरकार सब्सिडी के साथ पूंजी की व्यवस्था कराये। वहीं, युवाओं के लिए पौराणिक सभी कलाओं का प्रशिक्षण केंद्र हो। इस समाज के लिए सरकार को चाहिए की नाई समाज के लिए रिजर्व में सरकारी नौकरी को अधिक-से-अधिक वैकेंसी दी जाए ताकि नाई समाज के लोगों के बच्चें भी दुकानों पर आश्रित नहीं रह सके एवं दूसरों की दुकानों पर कार्य करने पर विवश न हो। कार्यस्थल पर कार्य करते समय कुछ लोग तय दर को लेकर आपसी विवाद कर लेते हैं। जिन्हे निपटाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिनपर जिला प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
बोले-जिम्मेदार
मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है। नाई समाज के लोग जिला उद्योग केंद्र में मिलकर योजनाओं की अधिक जानकारी ले सकते हैं। उनकी समस्याओं का निदान किया जाएगा।
-विवेक कुमार, जिला प्रबंधक,
उद्योग विभाग, समस्तीपुर
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