आरबीआई लगातार दूसरी बार कर सकता है ब्याज दरों में कटौती, कम होगी ईएमआई
- RBI MPC Meeting: ट्रंप के टैरिफ के बाद यदि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी की आशंका गहराई तो इसका भारत पर भी देखने को मिल सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए इस साल रेपो रेट में और कटौती कर सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस सप्ताह होने वाली अपनी मौद्रिक समीक्षा बैठक में प्रमुख ब्याज दर (रेपो रेट) में एक बार फिर से 0.25 प्रतिशत तक की कटौती कर सकता है। मुद्रास्फीति में कमी से आरबीआई के पास ब्याज दर में कटौती की गुंजाइश है। अगर ऐसा हुआ तो लोन सस्ते होंगे और आपकी ईएमआई भी कम होगी
इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए जवाबी आयात शुल्क से निपटने के लिए भी केंद्रीय बैंक बड़ा कदम उठा सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों ने यह अनुमान जताया है।
बुधवार को होगा ऐलान
गौरतलब है कि फरवरी में गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया था। यह मई, 2020 के बाद रेपो दर में पहली कटौती और ढाई साल के बाद पहला संशोधन था। एमपीसी की 54वीं बैठक सात अप्रैल से शुरू होगी।
बैठक के नतीजों की घोषणा नौ अप्रैल को की जाएगी। आरबीआई गवर्नर के अलावा एमपीसी में केंद्रीय बैंक के दो वरिष्ठ अधिकारी और सरकार द्वारा नियुक्त तीन लोग होते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने फरवरी, 2023 से रेपो दर (अल्पकालिक उधार दर) को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था। पिछली बार आरबीआई ने कोविड के समय (मई, 2020) रेपो दर में कमी की थी और उसके बाद इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था।
टैरिफ के प्रभाव का आकलन करेगा आरबीआई
बैंक ऑफ बड़ौदा (बॉब) के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अमेरिका की तरफ से जवाबी आयात शुल्क लगाने की घोषणा के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां पैदा हो गई हैं। ऐसे में घरेलू मोर्चे पर भी आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने की जरूरत महसूस की जा रही है।
उन्होंने कहा कि बढ़े हुए आयात शुल्क से वृद्धि की संभावनाओं और मुद्रा पर कुछ प्रभाव पड़ेगा, जिस पर एमपीसी को अर्थव्यवस्था की स्थिति के सामान्य आकलन से परे विचार करना होगा। हालांकि, लगता है कि मुद्रास्फीति की संभावनाएं नरम होने और तरलता के स्थिर होने के साथ इस बार रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती हो सकती है।
आरबीआई के पास मौका
वहीं, रेटिंग एजेंसी इक्रा को भी उम्मीद है कि एमपीसी अपनी आगामी बैठक में तटस्थ रुख बनाए रखते हुए रेपो दर में चौथाई प्रतिशत की कटौती करेगी। साथ ही एमपीसी बैठक में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती जैसी किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं है। इस बीच, उद्योग मंडल एसोचैम ने सुझाव दिया है कि एमपीसी को आगामी मौद्रिक नीति में मौजूदा स्थिति में दर में कटौती करने के बजाय 'देखो और इंतजार करो' का रुख अपनाना चाहिए।
एसोचैम के अध्यक्ष संजय नायर ने कहा, ''आरबीआई ने हाल ही में विभिन्न उपायों के माध्यम से बाजार में तरलता बढ़ाई है। हमें इन उपायों के पूंजीगत व्यय में वृद्धि और खपत पर प्रभाव तक धैर्य रखना होगा। हमारा मानना है कि आरबीआई इस नीति चक्र के दौरान रेपो दर को स्थिर रखेगा। ''
इस साल एक फीसदी तक कटौती संभव
विशेषज्ञों ने यह भी अनुमान जताया है कि तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश के मद्देनजर आरबीआई आगे भी अपने रुख को और उदार कर सकता है। कुछ रेटिंग्स एजेंसियों ने भारत के वृद्धि दर अनुमान को घटाया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के टैरिफ के बाद यदि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी की आशंका गहराई तो इसका भारत पर भी देखने को मिल सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए इस साल रेपो दर में और कटौती कर सकता है। उनका मानना है कि अगस्त तक रेपो रेट 5.5% तक लाया जा सकता है, जो अगस्त 2022 के बाद सबसे निम्न स्तर होगा।
क्या है रेपो दर
यह वह ब्याज दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंको को कर्ज देता है। इस दर में कटौती होने से बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की दरें भी घटती हैं। वहीं, बढ़ोतरी होने से कर्ज की दरें भी बढ़ जाती हैं।