Send him for training and refresher course Jammu and Kashmir High Court anger over civil judge who passed cryptic order ऐसे-ऐसों को ट्रेनिंग पर भेजो, जूनियर जज के रहस्यमयी आदेश पर हाई कोर्ट तमतमाया, Jammu-and-kashmir Hindi News - Hindustan
Hindi Newsजम्मू और कश्मीर न्यूज़Send him for training and refresher course Jammu and Kashmir High Court anger over civil judge who passed cryptic order

ऐसे-ऐसों को ट्रेनिंग पर भेजो, जूनियर जज के रहस्यमयी आदेश पर हाई कोर्ट तमतमाया

सिविल कोर्ट के जज ने अपने आदेश में लिखा था कि रिकॉर्ड को सुना और पढ़ा। आवेदन में बताए गए कारणों आवेदन के योग्य नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है। HC ने इसे रहस्यमयी आदेश बताया।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, श्रीनगरFri, 11 April 2025 11:01 PM
share Share
Follow Us on
ऐसे-ऐसों को ट्रेनिंग पर भेजो, जूनियर जज के रहस्यमयी आदेश पर हाई कोर्ट तमतमाया

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने हाल ही में एक डिस्ट्रिक कोर्ट के जज द्वारा दिए गए रहस्यमयी आदेश पर न सिर्फ चिंता जताई है बल्कि आदेश पारित करने वाले जज को कड़ी फटकार भी लगाई है। इसके अलावा हाईकोर्ट ने उस जज को रिफ्रेशर कोर्स करने के लिए न्यायिक अकादमी भेजने की अनुशंसा की है। जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने अपने फैसले में हाई कोर्ट रजिस्ट्री को आदेश दिया है कि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा जिस मामले में रहस्यमयी आदेश पारित किया गया है, उसमें उचित आदेश पारित कराने के लिए मामले को चीफ जस्टिस की बेंच के सामने सूचीबद्ध करे।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विनोद चटर्जी ने कहा, "यह सर्वविदित है कि न्यायिक आदेश हर हाल में तर्कपूर्ण हो, जिसमें न्यायालय की सोच को उजागर किया गया हो और आदेश के पीछे कोई ठोस कारण बताए जाने चाहिए लेकिन जब हम विवादित आदेश पर गौर करते हैं, तो यह पीठासीन अधिकारी की ओर से पूरी तरह से उसकी विवेकहीनता को दर्शाता है। उन्हें जम्मू-कश्मीर न्यायिक अकादमी के माध्यम से रिफ्रेशमेंट कोर्स करने की जरूरत है।"

मामला क्या है?

बता दें कि हाई कोर्ट की सिंगल बेंच श्रीनगर डिस्ट्रिक कोर्ट के नगर मजिस्ट्रेट (प्रथम सिविल अधीनस्थ न्यायाधीश) द्वारा 30 दिसंबर, 2024 को सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 151 के तहत एक आवेदन पर पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ताओं ने श्रीनगर नगर निगम द्वारा कथित रूप से ध्वस्त किए गए लोहे के गेट को फिर से स्थापित करने की मांग की थी, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया था।

ये भी पढ़ें:ऐसे नारे लगेंगे तो नहीं चाहिए राज्य का दर्जा; J&K विधानसभा में हंगामे पर BJP
ये भी पढ़ें:जम्मू-कश्मीर में एक और एनकाउंटर, तीन आतंकियों को सेना ने घेरा; हो रही गोलीबारी
ये भी पढ़ें:मुस्लिम स्टेट है जम्मू-कश्मीर; वक्फ बिल पर विधानसभा में खूब मचा हंगामा

इसी आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और तर्क दिया कि सिविल कोर्ट ने न केवल उनके आवेदन की मूल सामग्री को नजरअंदाज किया है, बल्कि प्रतिवादियों को नोटिस जारी न करके न्यायिक प्रक्रिया के निर्धारित मानदंडों को भी दरकिनार कर दिया है। इसके साथ ही सिविल कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से आवेदन को खारिज करने का कोई कारण भी नहीं बताया था।

सिविल जज ने अपने आदेश में क्या लिखा?

सिविल कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में लिखा था, "रिकॉर्ड को सुना और पढ़ा। आवेदन में बताए गए कारणों आवेदन के योग्य नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है। इसका निपटारा किया जाता है और इसे मुख्य फाइल का हिस्सा बनाया जाता है।" हाई कोर्ट ने सिविल जज के इस आदेश को रहस्यमयी आदेश बताया और कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस बात पर चर्चा ही नहीं की कि सीपीसी की धारा 151 के क्या प्रावधान हैं, याचिकाकर्ताओं ने क्या प्रार्थना की थी और आवेदन को खारिज करने के लिए उसके पास क्या कारण थे।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।