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बोले देवघर: स्कूलों में नहीं हो रहा शिक्षा का अधिकार कानून का पालन

विद्यालय समाज की नींव है, लेकिन निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यापार बना दिया है। अभिभावकों पर फीस और अन्य चार्जेस का भारी बोझ है। झारखंड के देवघर में आरटीई कानून का पालन नहीं हो रहा है, जिससे गरीब...

Newswrap हिन्दुस्तान, देवघरTue, 15 April 2025 01:52 AM
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बोले देवघर: स्कूलों में नहीं हो रहा शिक्षा का अधिकार कानून का पालन

विद्यालय समाज की नींव को मजबूत करने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। यह न केवल ज्ञान का स्रोत है, बल्कि सामाजिक मूल्यों, अनुशासन, नैतिकता और नागरिक जिम्मेदारियों को विकसित करने का केंद्र भी है। स्कूलों में बच्चों को विविध संस्कृतियों, विचारों और सामाजिक व्यवहारों को समझने का अवसर मिलता है, जिससे वे एक बेहतर नागरिक बनते हैं। एक सशक्त समाज का निर्माण अच्छी शिक्षा प्रणाली पर ही निर्भर करता है। वर्तमान समय में निजी स्कूलों की भूमिका तेजी से बढ़ी है। इन स्कूलों ने आधुनिक तकनीक, उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, अंग्रेजी माध्यम और सुविधाजनक इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण अभिभावकों का ध्यान आकर्षित किया है। कई निजी स्कूल प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रारंभिक स्तर से ही छात्रों को तैयार करने पर जोर देते हैं। हालांकि, निजी स्कूलों की बढ़ती फीस और व्यावसायीकरण एक चिंता का विषय है। शिक्षा अब सेवा की बजाय लाभ कमाने का साधन बनती जा रही है। गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना कठिन होता जा रहा है। कई बार स्कूलों द्वारा पाठ्यपुस्तकों, ड्रेस और अन्य सामग्रियों की अनावश्यक खरीददारी भी अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डालती है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार निजी स्कूलों पर निगरानी रखे और शिक्षा को एक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करे, न कि एक व्यापार के रूप में।

भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एक क्रांतिकारी कानून है, जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है। इस कानून के तहत निजी स्कूलों को अपनी कुल सीटों का 25 प्रतिशत हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) श्रेणी के बच्चों के लिए आरक्षित करना अनिवार्य है। इन बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जानी चाहिए। हालांकि, झारखंड के देवघर जिले में इस कानून का पालन नहीं हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं। देवघर के कई निजी स्कूल शिक्षा का अधिकार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं। ये स्कूल बीपीएल श्रेणी के बच्चों को दाखिला देने से या तो इंकार कर देते हैं या फिर उनके लिए निर्धारित 25% कोटा लागू नहीं करते। इससे गरीब परिवारों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिल पाता। निजी स्कूलों की यह उदासीनता और प्रशासन की निष्क्रियता शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक असमानता को और गहरा रही है। स्थानीय समुदाय और अभिभावकों ने इस मुद्दे पर कई बार शिकायत की है, लेकिन ठोस कार्रवाई का अभाव बना हुआ है। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को इस दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत है। स्कूलों की नियमित निगरानी, कड़ाई से जांच और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई से ही इस कानून का प्रभावी कार्यान्वयन संभव है। साथ ही, जागरूकता अभियान चलाकर गरीब परिवारों को उनके अधिकारों के प्रति शिक्षित करना भी जरूरी है। शिक्षा समाज के विकास की नींव है। यदि आरटीई जैसे कानून का पालन नहीं होगा, तो न केवल गरीब बच्चे अपने भविष्य से वंचित रहेंगे, बल्कि देश का समग्र विकास भी प्रभावित होगा।

शिक्षा को देश के भविष्य की नींव माना जाता है, और स्कूल को बच्चों के सर्वांगीण विकास का केंद्र। लेकिन आजकल निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है। पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों से भारी-भरकम फीस वसूलने की होड़ मची है। स्कूलों में ट्यूशन फीस के अलावा बिल्डिंग फंड, डेवलपमेंट चार्ज, स्मार्ट क्लास फीस, कंप्यूटर फीस जैसे अलग-अलग मद में पैसे लिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, बच्चों को ड्रेस, जूते, मोजे, बेल्ट, टाई, आई-कार्ड से लेकर किताबें और कॉपियां भी स्कूल प्रबंधन से ही खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है। बाहर से खरीदने पर स्कूल प्रशासन सामान को "अनअप्रूव्ड" बताकर बच्चों को क्लास से बाहर कर देता है या उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। इससे अभिभावकों को महंगे दाम पर निम्न गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। महीने दर महीने बढ़ती मंथली फीस ने मध्यम और निम्न वर्गीय परिवारों की कमर तोड़ दी है। कई अभिभावक बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए कर्ज लेने तक को मजबूर हैं। स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग भी इन शिकायतों के बावजूद चुप्पी साधे हुए है। न तो फीस नियंत्रण की कोई नीति लागू है और न ही स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने का कोई ठोस प्रयास दिख रहा है। समाज में समान शिक्षा और बच्चों के उज्जवल भविष्य की बात करने वाले तंत्र को अब इन विकृतियों पर ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है, वरना शिक्षा का मूल उद्देश्य ही खो जाएगा। बातचीत के दौरान लोगों ने कहा कि जिले के निजी विद्यालयों में अभिभावकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। कई अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि स्कूल प्रबंधन उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेता और असम्मानजनक व्यवहार करता है। फीस वृद्धि, किताबों और यूनिफॉर्म की मनमानी कीमतों को लेकर जब अभिभावक सवाल उठाते हैं, तो उन्हें धमकियां या अपमान का सामना करना पड़ता है। कुछ मामलों में बच्चों को कक्षा में बैठने से रोकने या मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की शिकायतें भी मिली हैं।स्थानीय अभिभावकों ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए जिला प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है। एक अभिभावक रमेश सिंह ने बताया स्कूल हमारी मजबूरी का फायदा उठाते हैं।

सुझाव

1. सरकार को निजी स्कूलों पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए ताकि शिक्षा एक अधिकार बनी रहे, न कि व्यापार।

2. जिला प्रशासन को निजी स्कूलों में आरटीई के 25% आरक्षण नियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।

3. स्कूलों में पारदर्शिता और विश्वास बढ़ाने हेतु संयुक्त अभिभावक-शिक्षक कमेटी बनाई जानी चाहिए।

4. स्कूलों को केवल किताबों की सूची देनी चाहिए व अभिभावकों को स्वतंत्र रूप से कहीं से भी किताबें खरीदने की अनुमति मिलनी चाहिए।

5. शिक्षा विभाग को स्कूलों में नियमित निरीक्षण और उल्लंघनों पर दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।

शिकायतें

1. आरटीई का पालन नहीं हो रहा: देवघर के निजी स्कूल गरीब बच्चों के लिए निर्धारित 25% सीट आरक्षण का पालन नहीं कर रहे हैं।

2. फीस और अन्य शुल्क की मनमानी वसूली: ट्यूशन फीस के अतिरिक्त विभिन्न चार्ज जैसे डेवलपमेंट फीस, स्मार्ट क्लास फीस आदि से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है।

3. स्कूलों द्वारा महंगे दामों पर किताबें और स्टेशनरी बेचना: स्कूल बाजार से महंगी दर पर किताबें बेचते हैं और बाहर से खरीदने पर बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।

4. अभिभावकों के साथ दुर्व्यवहार: शिकायत करने पर कई स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों को अपमानित किया जाता है और बच्चों को क्लास से बाहर कर दिया जाता है।

5. सरकारी स्कूलों में रिश्वतखोरी: सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए अभिभावकों से रिश्वत मांगी जाती है, जिससे गरीब परिवारों को परेशानी होती है।

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