बोले देवघर : सर्वे में ओबीसी कैटेगरी के लोगों को किया नजरअंदाज
झारखंड के देवघर में रामपुर मोहल्ले के लोगों ने ओबीसी सर्वे और बुनियादी सुविधाओं की कमी के खिलाफ विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम ने उनके क्षेत्र में डोर-टू-डोर सर्वे नहीं किया और मूलभूत...
झारखंड में प्रस्तावित नगर निकाय चुनाव को लेकर ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए डोर-टू-डोर सर्वे का काम किया जाना था। देवघर नगर निगम क्षेत्र के रामपुर मोहल्ले के लोगों ने आरोप लगाया है कि उनके मोहल्ले में नगर निगम या चुनाव आयोग की कोई टीम डोर-टू-डोर सर्वे करने के लिए नहीं पहुंची। जबकि नगर निगम द्वारा ओबीसी सर्वे का रिर्पोट तैयार कर जारी भी कर दिया गया है। इससे लोगों में काफी रोष है, साथ ही ओबीसी कैटेगरी के लोगों ने नगर निगम पर सीधे तौर पर ओबीसी समाज की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। साथ ही लोगों ने नगर निगम द्वारा मोहल्ले में सड़क, नाली, नियमित सफाई, स्ट्रीट लाइट, नियमित पानी की आपूर्ती सहित अन्य सुविधाओं की आपूर्ती में भेदभाव का भी आरोप लगाया है। लोगों ने कहा कि रामपुर मोहल्ले को नगर निगम द्वारा पूरी तरह से उपेक्षित रखा गया है। जो कि वहां के लोगों के साथ सरासर अन्याय है। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर हिन्दुस्तान से संवाद के दौरान लोगों ने अपनी बात रखीं।
मंडल, प्रदीप कुमार, राजू सिंह, शंकर कुमार, शंकर पंडित, संजय मंडल, पवन राउत, विजय मंडल, रंजीत बावरी, सुरेश अग्रवाल, विजय कुमार, लक्षमण कुमार सहित अन्य लोगों ने अपनी समस्याओं व उसके समाधान को लेकर अपनी-अपनी बात रखी।
बातचीत के दौरान प्रदीप कुमार ने कहा कि नगर निकाय चुनाव को लेकर हाल ही में नगर निगम द्वारा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) का सर्वे किया गया था, लेकिन रामपुर मोहल्ला के लगभग 500 घरों में से किसी में भी सर्वे टीम नहीं पहुंची। जबकि सर्वे के नियम के अनुसार यह कार्य डोर टू डोर होना चाहिए था। लोगों का आरोप है कि यह सर्वे पूरी तरह से सिर्फ कागजों तक सीमित रहा है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लोगों ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार की योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है। अगर डोर टू डोर सर्वे होना था तो रामपुर मोहल्ला को क्यों नजरअंदाज किया गया? लोगों ने इसमें ओबीसी समाज की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। लोगों ने कहा कि अगर सर्वे सही तरीके से किया जाता तो निश्चित तौर पर सर्वे टीम रामपुर मोहल्ला भी पहुंचती। लेकिन टीम यहां नहीं पहुंची, इससे यह स्पष्ट होता है कि देवघर में सर्वे के नाम पर महज खानापूर्ती की गई है। रामपुर मोहल्ला की तस्वीर आज भी विकास की दौड़ से कोसों दूर है। यहां के लोगों की जिंदगी कई दशक पुरानी समस्याओं के साथ आज भी जूझ रही है। मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी, प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन न होना इस मोहल्ले की प्रमुख समस्याएं हैं। सैकड़ों परिवार यहां किसी तरह जीवन-यापन कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाजें अब तक न तो प्रशासन तक ठीक से पहुंची हैं, और न ही उनके जीवन स्तर को सुधारने की कोई ठोस कोशिश हुई है।
रामपुर मोहल्ला की सबसे बड़ी समस्या है, पीने योग्य पानी की भारी किल्लत। पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक चापाकल और एक सार्वजनिक नल है, जिससे सैकड़ों परिवारों को अपनी दैनिक जरूरतों का पानी जुटाना पड़ता है। नियमित रूप से सप्लाई पानी उपलब्ध न होने के कारण लोगों को अक्सर कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है या फिर मजबूरी में गंदा पानी इस्तेमाल करना पड़ता है। सप्लाई वाटर की व्यवस्था भी नाम मात्र की है। आमतौर पर चार से पांच दिनों के अंतराल में एक बार सप्लाई का पानी आता है। हैरानी की बात यह है कि जिस पाइप से यह पानी आता है, उसमें न तो नल लगाया गया है और न ही उसे जमीन से ऊपर उठाया गया है। इसके चलते पानी लेने में लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पाइप के खुले होने के कारण काफी मात्रा में पानी व्यर्थ बह जाता है। यह न केवल पानी की बर्बादी है, बल्कि इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बढ़ जाते हैं क्योंकि गंदगी और मिट्टी भी पानी में घुल सकती है।
बातचीत के दौरान लोगों ने कहा कि मोहल्ले की साफ-सफाई की स्थिति भी बेहद खराब है। नालियों की सफाई नियमित रुप से नहीं होती है, जिसके कारण नालियां पूरी तरह से मिट्टी और कचरे से जाम हो चुकी हैं। सड़क के दूसरी ओर की नाली तो लगभग मिट्टी में दब कर पूरी तरह से समाप्त हो गई है। इससे बरसात के मौसम में स्थिति और गंभीर हो जाती है। पानी की निकासी नहीं होने के कारण बारिश का पानी लोगों के घरों में घुस जाता है, जिससे घरों की दीवारें कमजोर हो जाती हैं और संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। गंदगी और जलजमाव के कारण मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ता है, जिससे डेंगू, मलेरिया जैसे रोगों के फैलने की आशंका बनी रहती है। लेकिन इस ओर नगर निगम द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
बातचीत के दौरान मोहल्ले के लोगों ने आरोप लगाया कि चापाकल अगर खराब हो जाए तो उसे ठीक कराना भी एक बड़ी चुनौती बन जाता है। मोहल्ले के लोगों का कहना है कि नगर निगम सिर्फ खराब हुए पुर्जों की जगह नया सामान उपलब्ध कराता है, लेकिन मिस्त्री को बुलाकर मरम्मत कराने की जिम्मेदारी आम लोगों पर ही डाल दी जाती है। ऐसे में मिस्त्री चार से पांच सौ रुपए तक मांगता है, जो गरीब परिवारों के लिए बहुत बड़ी रकम है। अगर कोई पैसे नहीं दे पाता तो मिस्त्री चापाकल मरम्मत करने तक नहीं आता।
सुझाव
1. हर घर को जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए और सप्लाई पाइप में नल लगाकर उसे ऊंचाई पर लगाया जाए ताकि पानी की बर्बादी न हो।
2. मोहल्ले की सड़कों को पक्की किया जाए, जिससे बरसात में कीचड़ से राहत मिले और आवागमन आसान हो।
3. नालियों की नियमित सफाई की व्यवस्था की जाए, ताकि जलजमाव और बीमारी से बचाव हो सके।
4. स्ट्रीट लाइट्स लगाई जाएं, जिससे रात में अंधेरा न रहे और सुरक्षा बनी रहे। बच्चों को पढ़ाई करने में राहत मिले।
5. ओबीसी सर्वे को निष्पक्ष रूप से दोबारा कराया जाए, ताकि सभी पात्र व्यक्तियों को योजनाओं का लाभ मिल सके। बहुत योजनाओं का लाभ जानकारी के आभाव में नहीं मिल रहा है।
शिकायतें
1. डोर टू डोर ओबीसी सर्वे रामपुर मोहल्ले में नहीं किया गया, जिससे ओबीसी समाज की उपेक्षा हुई।
2. रामपुर मोहल्ले में पानी की भारी किल्लत है, पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक चापाकल और एक सार्वजनिक नल है।
3. नालियों की सफाई नियमित रूप से नहीं होती, जिससे नालियां जाम हो गई हैं और बारिश में पानी घरों में घुस जाता है।
4. मोहल्ले की सड़कें अब भी कच्ची हैं, जिससे बारिश में कीचड़ भर जाता है और लोगों को चलना मुश्किल हो जाता है।
5. मोहल्ले में एक भी स्ट्रीट लाइट नहीं है, जिससे रात में अंधेरा रहता है और डर तथा अपराध की आशंका बनी रहती है। शहर में हर तरफ उजाला रहता है,इस मुहल्ले में अंधेरा पसरा रहता है।
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