बोले पलामू-पलामू में कुडुख भाषा की पढ़ाई दो सालों से बंद
मेदिनीनगर में बोले पलामू कार्यक्रम के दौरान हिन्दुस्तान से अपनी परेशानियां साझा करते जनजातीय छात्र।
पलामू जिले में करीब 9% जनजातीय आबादी निवास करती है। बावजूद इसके नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय (एनपीयू) में जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई कराने को लेकर कोई उल्लेखनीय कदम बीते 16 वर्षो में नहीं उठा सका है। एनपीयू के प्रिमियर संस्थान जीएलए कॉलेज में कुडुख भाषा की पढ़ाई होती थी। परंतु एकमात्र शिक्षक प्रो. कैलाश उरांव की 31 मार्च 2023 को सेवानिवृति के बाद से विभाग बंद पड़ा हुआ है। पलामू जिले में उरांव के अलावा खरवार, मुंडा, चेरो, बिरहोर, असूर, कोरवा और परहिया समुदाय के जनजाति निवास करते हैं। इनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए उन्हे समग्र रूप से शिक्षित करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु अपनी भाषा-संस्कृति की पढ़ाई के लिए वर्तमान में जिले में कोई सुविधा नहीं है। हिन्दुस्तान अखबार के बोले पलामू कार्यक्रम में चर्चा के दौरान जनजातीय विद्यार्थियों ने अपनी परेशानी को साझा किया।
मेदिनीनगर। पलामू जिले के जनजातीय समाज में चेरो, उरांव व खरवार सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी जागरूक है। इसके विपरीत अन्य पांच जनजातीय समुदाय यथा कोरवा, बिरहोर, परहिया, असूर और मुंडा आबादी और जागरूकता दोनों ही दृष्टि से कमजोर हैं। इसके कारण आर्थिक-सामाजिक विकास के लिए सरकार से निर्धारित योजनाओं का समुचित लाभ उन्हे नहीं मिल पाता है। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण जनजातीय समुदाय के विद्यार्थी कम उम्र में ही घर की जवाबदेही में सहयोग करने लगते हैं। इसके कारण पढ़ाई से उनकी दूरी बन जा रही है।
पलामू जिले में वर्तमान आंकड़े के अनुसार जनजातीय समुदाय की आबादी लगभग 2.5 लाख है। परंतु गढ़वा जिले में जनजातीय समुदाय की आबादी पलामू जिले से ज्यादा है। लातेहार जिला जनजातीय आबादी की बहुलता वाला जिला है। दोनों जिले का प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर है। पहले गढ़वा और लातेहार जिला पलामू के ही अंग थे। इसके कारण आज भी उनका जुड़ाव मेदिनीनगर से बना हुआ है। एपीयू की स्थापना से जनजातीय युवाओं में भी बड़ी उम्मीद जगी थी कि कुडुख के अलावा मुंडारी, नागपुरी आदि की पढ़ाई भी उच्च शिक्षा की सुविधा मेदिनीनगर में सुलभ हो जाएगी। परंतु हालात बदलते हुए कुडुख की पढ़ाई भी बंद हो गई। इससे जनजातीय विद्यार्थियों में बड़ी निराशा है।
ग्रामीण क्षेत्र में प्लस-2 स्तर की पढ़ाई की सुविधा सुलभ होने से पलामू जिले के रामगढ़, चैनपुर, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, मनातू, नावाबाजार, छतरपुर, पाटन आदि प्रखंड के जनजातीय युवक ही नहीं युवतियां भी इंटरमीडियट तक की पढ़ाई घर से कर ले रहे हैं। परंतु उच्च शिक्षा ग्रहण करने में उनके समक्ष बड़ी परेशानी मेदिनीनगर में आवास लेकर पढ़ने में आती है। जनजातीय छात्रावास की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण युवा उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज में नामांकन नहीं लेते हैं। हिम्मत कर कॉलेज में नामांकन करा लेने वाली जनजातीय युवाओं अपनी भाषा की पढ़ाई की सुविधा नहीं मिल पा रही है। अन्य भाषा का सिखने और उसमें बेहतर अंक हासिल करने के लिए उन्हे काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसके कारण उनकी परेशानी बढ़ जा रही है।
मेदिनीनगर के कॉलेज में अध्ययन के लिए लातेहार जिले के बरवाडीह, महुआडाड़ आदि क्षेत्र से अब भी बड़ी संख्या में युवा प्रत्येक दिन ट्रेन से मेदिनीनगर आते हैं। अगर छात्रावास की समुचित व्यवस्था हो जाए तो जनजातीय विद्यार्थियों के समक्ष चुनौती काफी आसान हो पाएगी। ऐसा भी नहीं है कि जनजातीय विद्यार्थियों के लिए छात्रावास का निर्माण नहीं हुआ है। परंतु निर्मित छात्रावासों की हालात ऐसा नहीं है कि विद्यार्थी उसमें सहजता से रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकें।
मेदिनीनगर है च्वाइस पर सुविधाओं की भारी कमी
यद्यपि गढ़वा और लातेहार में भी उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना हुई है। फिर भी मेदिनीनगर उच्च शिक्षा का बड़ा केंद्र बना हुआ है। विश्वविद्यालय, तीन अंगभूत कॉलेज, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज के साथ-साथ लॉज की सुविधा भी यहां उपलब्ध है। इससे विद्यार्थियों को मेदिनीनगर में रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सहुलियत होती है। कोचिंग की भी सुविधा उपलब्ध हो जाने के कारण विद्यार्थी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की भी सहजता से तैयारी कर पाते हैं। यही कारण है कि जनजातीय विद्यार्थी मेदिनीनगर में पढ़ाई करना चाहते हैं।
मनपसंद भाषा की पढ़ाई नहीं होने से निराशा
लातेहार के जनजातीय बहुल क्षेत्र बरवाडीह और महुआडाड़ से मेदिनीनगर के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। गढ़वा जिले के जनजातीय बहुल प्रखंड भंडरिया, बड़गड़, रंका, रमकंडा आदि से भी मेदिनीनगर के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। इसके कारण जनजातीय विद्यार्थी मेदिनीनगर में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित रहते हैं। मेदिनीनगर के कॉलेज में जनजातीय विद्यार्थियों संख्या अच्छी खासी है। जनजातीय उत्सव आयोजन में भी वे बड़ी ऊर्जा के साथ भाग लेते हैं। परंतु जब छात्रावास और जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई की बात आती है तब उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता है।
हॉस्टल में सिर्फ 32 आदिवासी छात्र
पलामू प्रमंडल में अब भी जीएलए कॉलेज उच्च शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। इसके जेएन दीक्षित छात्रावास के आधे हिस्से में जनजातीय छात्र रहते हैं। कम जगह के कारण महज 32 विद्यार्थियों को ही छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने का मौका मिलता है। यह छात्रावास भी निर्माणाधीन एनपीयू परिसर के अंदर आ गया है। इसके कारण इसके कई हिस्से तोड़ भी दिए गए है जिससे शौचालय, पेयजल आदि का संकट पैदा हो गया है।
जनजातीय छात्राओं के लिए सुविधा नहीं
मेदिनीनगर के महिला कॉलेज में बड़ी संख्या में जनजातीय युवतियां नामांकन कराकर पढ़ाई करती आ रही है। इसे देखते हुए कैंपस में छात्रावास का निर्माण भी करवाया जा रहा था। परंतु वह आजतक पूरा नहीं हो सका है। वित्तीय वर्ष 2024-25 वित्तीय सत्र में भी यह छात्रावास पूरा नहीं हो सका। इसके कारण जनजातीय युवतियों को पढ़ाई पूरी करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। असुविधा के कारण बड़ी संख्या में जनजातीय युवतियां इंटरमीडियट के बाद पढ़ाई छोड़ रही है। इसका नकारात्मक असर के उनके करियर पड़ रहा है।
समस्याएं
1. जनजातीय भाषा के लिए कॉलेजों में कोई व्यवस्था नहीं है, इसके कारण संबंधित भाषा की जानकारी कम हो रही है।
2. जनजातीय छात्रों के लिए समुचित छात्रावास की व्यवस्था नहीं है, इससे बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई नहीं कर पाते हैं।
3. जनजातीय विषय के लिए नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में एक भी शिक्षक नहीं हैं, इसके कारण पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
4. जनजातीय भाषा विषयक समृद्ध पुस्तकालय का निर्माण अबतक नहीं हुआ है। न ही जिला पुस्तकालय जनजातीय भाषा प्रक्षेत्र बनाया गया है।
सुझाव
1. कॉलेजों में जनजातीय भाषा की पढ़ाई शुरू करनी चाहिए, इसके लिए एनपीयू प्रबंधन को पहल करनी चाहिए।
2. जिला मुख्यालय में 500 बेड का आदिवासी छात्रावास बनाया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक छात्र रह सकें।
3. नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में कुड़ुख , नागपुरी और खोरठा विषय के शिक्षकों की पदस्थापना होनी चाहिए।
4. पलामू प्रमंडल के सभी जिला मुख्यालय में कम से कम एक-एक जनजातीय भाषा के लिए समृद्ध पुस्तकालय की स्थापना किया जाना चाहिए।
इनकी भी सुनिए
जीएलए कॉलेज में कुडुख भाषा के प्राध्यापक की नियुक्ति के लिए झारखंड लोक सेवा आयोग को मांग भेजा गया है। नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय प्रबंधन के अंतर्गत फिलवक्त कोई छात्रावास नहीं है। एनपीयू प्रबंधन द्वारा अभी मांग पर विचार किया जा रहा है।
डॉ शैलेश कुमार मिश्र, रजिस्ट्रार एनपीयू
आदिवासी विद्यार्थी शिक्षा के लिए घर से दूर नहीं जाना चाहते हैं। कम उम्र में ही काम करने में लगते हैं। आदिवासी छात्रों की पढ़ाई के लिए स्थानीय स्तर पर विशेष व्यवस्था नहीं है। इसका नकारात्मक असर उनके सामाजिक और आर्थिक विकास पर पड़ रहा है।
विशेंद्र उरांव, छात्र
जनजातीय भाषा की पढ़ाई के लिए शिक्षक नहीं हैं। पलामू प्रमंडल के कुछ ही स्कूलों में जनजातीय भाषा के शिक्षक हैं। जनजातीय भाषा की पढ़ाई नहीं होने से परेशानी है। पिंटू उरांव
पलामू प्रमंडल में निवास करने वाले जनजातीय मुख्य रूप में कुड़ुख, नागपुरी और खोरठा बोलते हैं, लेकिन इसकी पढ़ाई नीलांबर पीतांबर विवि में नहीं होती है। प्रशांत मिंज
नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय में जनजातीय भाषा की पढ़ाई नहीं हो रही है। केवल कुड़ुख भाषा की पढ़ाई होती थी वह भी बंद हो गया है। वर्तमान में विकट स्थिति है। रूपेश सिंह
आदिवासी छात्रों को शहरों में रहकर पढ़ाई करने में बहुत परेशानी होती है। किराया में रहकर पढ़ाई करना मुश्किल है। जनजातीय छात्रों के लिए कोई छात्रावास नहीं है। मनोज सिंह
कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जनजातीय भाषा की जानकारी नहीं मिल रही है। एनपीयू प्रशासन भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहा है। अभय उरांव
सरकार जनजातीय छात्रों को जो सुविधा देती है उसका लाभ नहीं मिलता है। बिचौलियों के कारण छात्रों तक लाभ नहीं पहुंच पाता है। छात्रवृत्ति भी कम मिलती है। मिथलेश सिंह
मेदिनीनगर में आदिवासी छात्रों के लिए कोई छात्रावास नहीं है। जीएलए कॉलेज का छात्रावास में केवल 32 आदिवासी छात्रों के लिए ही स्थान मिला है।
गंगा सिंह
कॉलेज में कुड़ुख विभाग बंद है। जनजातीय भाषा के पढ़ाई नहीं हो रही है। पलामू के छात्र गरीब हैं इसलिए बाहर जाकर पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। इससे परेशानी होती है।
राकेश कुजूर
जनजातीय भाषा की पढ़ाई नहीं होने से दूसरी भाषा की पढ़ाई करनी पड़ती है। छात्र कमजोर ही रह जाते हैं। लाइब्रेरी में जनजातीय भाषा की पुस्तक नहीं है।
बबलू सिंह
मेदिनीनगर की किताब दुकानों में जनजातीय भाषा के किताब उपलब्ध नहीं होती है। साथ ही पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। आवागमन के लिए भी की सुविधा नहीं मिलती है। गोल्डन मिंज
आदिवासी छात्रों के लिए एनपीयू के अंतर्गत सभी कॉलेजों का अलग आदिवासी हॉस्टल होना चाहिए। साथ ही सभी कॉलेजों में जनजातीय भाषा का विभाग खुलना चाहिए।
अंकित सिंह
आदिवासी छात्रों को शहर में पढ़ाई करने में बहुत परेशानी होती है। जीएलए कॉलेज के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करते हैं पर कई सुविधाओं की व्यवस्था नहीं है। पुण्य प्रताप सिंह
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