महिला और पुरुष में अगर ये दिक्कतें हों तो होती है कंसीव करने में समस्या
छह माह से लेकर एक साल तक की कोशिश के बाद भी गर्भधारण न कर पाना सामान्य नहीं बल्कि इनफर्टिलिटी का संकेत है। पर, इसके लिए सिर्फ महिलाएं ही जिम्मेदार नहीं। दुनिया भर में क्यों बढ़ रही है यह समस्या और कैसे करें इसका सामना, बता रही हैं शमीम खान

गर्भधारण कर पाना कुछ महिलाओं के लिए जहां एक बेहद सामान्य-सी बात होती है, वहीं दुनिया भर में बड़ी संख्या में ऐसे जोड़े हैं, जो इसकी वजह से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से जूझ रहे हैं। यह एक ऐसी समस्या है, जिस पर आज भी हमारे समाज में खुलकर बातें नहीं होतीं। नतीजा, अपने संघर्ष के साथ-साथ गर्भधारण न कर पाने की वजह से परिवार और समाज का ताना भी। दुनिया भर में हर छह में से एक जोड़ा बांझपन यानी इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहा है। वहीं भारत में दस से 14 प्रतिशत जोड़े इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। यह एक जटिल स्थिति है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित कर रही है। बांझपन के लगातार बढ़ते दायरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक जन स्वास्थ्य समस्या घोषित किया है। विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में तो स्थिति बहुत गंभीर है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रजनन दर में गिरावट देखी गई है, जो 1950 में 5.9 से घटकर 2023 में 2.0 हो गई है। बांझपन के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए उसके कारणों के साथ ही बचाव के उपायों पर चर्चा करना जरूरी है। बांझपन यानी इनफर्टिलिटी के क्या हैं प्रमुख कारण, आइए जानें:
अंडाणुओं की संख्या में कमी
महिलाएं अपने पूरे अंडों (लगभग 10-20 लाख अंडाणु) के साथ जन्म लेती हैं। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनका ओवेरियन रिजर्व कम होता जाता है। जिसका अर्थ है समय के साथ उनके अंडों की संख्या और मात्रा दोनों कम हो जाना। 20-30 वर्ष की उम्र के दौरान किसी भी महिला की प्रजनन क्षमता चरम पर होती है। इसमें तीस की उम्र के पश्चात तेजी से कमी आने लगती है। तीस से कम उम्र आयु की महिला में गर्भधारण करने की संभावना 71 प्रतिशत तक होती है, वहीं 40 वर्ष के पश्चात यह केवल 41 प्रतिशत तक रह जाती है। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों में युवा महिलाओं में भी खराब ओवेरियन रिजर्व का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है।
प्रजनन तंत्र से जुड़ी परेशानियां
एंडोमेट्रियोसिस या फैलोपियन ट्यूब से संबंधित सामान्यताएं प्रजनन तंत्र की संरचनाओं को प्रभावित कर सकती हैं। इनकी वजह से गर्भधारण करने में दिक्कत हो सकती है। प्रजनन तंत्र से जुड़ी ये समस्याएं या तो पहले से ही मौजूद हो सकती हैं या पहली गर्भावस्था के पश्चात विकसित हो सकती है। हार्मोनल असंतुलन, अंडाणुओं से संबंधित गड़बड़ियां भी महिलाओं में बांझपन का कारण बनती हैं।
शुक्राणुओं की खराब गुणवत्ता
पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम होना, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम होना या शुक्राणुओं का आकार कम होने से भी गर्भधारण में समस्या आती है। दुनिया भर के कुल बांझपन के मामलों में से 50 प्रतिशत पुरुष बांझपन की वजह से हो सकते हैं।
मोटापे का असर
ज्यादा वजन पुरुष और महिला दोनों की प्रजनन क्षमता पर असर डालता है। महिलाओं का वजन सामान्य से बहुत अधिक होने से अंडोत्सर्ग की प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है। वहीं पुरुषों में मोटापा शुक्राणुओं के निर्माण को कम कर देता है। अनुवांशिक कारक जैसे क्रोमोसोम से संबंधित असामान्यताएं और ऑटोइम्यून बीमारियां, डायबिटीज, थायरॉइड से संबंधित गड़बड़ियां तथा पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) भी बांझपन का कारण बन सकता है।
पुरुष की ज्यादा उम्र
बढ़ती उम्र केवल महिलाओं की प्रजनन क्षमता को ही प्रभावित नहीं करती, उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों में भी शुक्राणुओं की गुणवत्ता और मात्रा घटती जाती है। युवावस्था में पुरुषों का टीटीपी (टाइम टू प्रेग्नेंसी) अधेड़ उम्र के पुरुषों की तुलना में पांच गुना होता है। 45 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में अपनी पार्टनर को गर्भवती करने की क्षमता में 25 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष की तुलना में तीस प्रतिशत तक की कमी आ जाती है।
देर से शादी और गर्भधारण
पहले कम उम्र में शादी हो जाती थी, इससे गर्भधारण की औसत उम्र भी कम थी। पर, अब शादी 26-27 या उससे अधिक उम्र में होती है। करियर के चलते जोड़े गर्भधारण की कोशिश भी देर से शुरू करते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे - 5 के अनुसार, हमारे देश में 25-49 साल की उम्र की महिलाओं में से 29.3 प्रतिशत में ओवेरियन रिजर्व (अंडों की संख्या) कम है, जिससे उन्हें गर्भधारण करने में परेशानी होती है। वहीं, भारत के पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या भी वैश्विक स्तर से कम हैं।
जीवनशैली से संबंधित गलत आदतें
जीवनशैली से संबंधित कुछ आदतें जैसे शराब का सेवन और धूम्रपान आदि से पुरुषों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। ये आदतें शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। जंक और प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन, निष्क्रिय जीवनशैली, नींद की कमी और मानसिक तनाव भी प्रजनन क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
ये हैं बांझपन के संकेत
मासिक चक्र की अवधि का सामान्य से अधिक (35 दिन या उससे अधिक) होना
मासिक चक्र की अवधि सामान्य से कम (21 दिन से कम) होना
अनियमित मासिक चक्र
मासिक चक्र न होना
पुरुषों में यौन क्रिया से जुड़ी समस्याएं ( शारीरिक संबंध बनाने की कम इच्छा, वीर्य की मात्रा कम होना, इरेक्शन होने या इसे बनाए रखने में कठिनाई), अंडकोष क्षेत्र में सूजन, दर्द या गांठ की उपस्थिति।
पुरुषों में असामान्य स्तन वृद्धि, चेहरे या शरीर पर बालों की कमी, हार्मोनल असंतुलन और शुक्राणुओं की संख्या में कमी।
कैसे करें इस खतरे को कम
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, भारत में शहरी क्षेत्रों में फर्टिलिटी रेट 1.6 और ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2.1 है। अनुमान है कि 2050 तक भारत का टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) गिरकर 1.29 हो जाएगा। ऐसे में बहुत जरूरी है कि बचपन से ही बच्चों की परवरिश पर विशेष ध्यान दिया जाए और बांझपन की समस्या से बचने के लिए कुछ जरूरी
उपाय किए जाएं
जंक और प्रोसेस्ड फूड्स की बजाय पोषक और संतुलित भोजन का सेवन करें
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से योग और व्यायाम करें
सही समय पर शादी और बच्चे प्लान कर लें
अगर किसी बीमारी से पीड़ित हों तो उसका उपचार कराएं
नियमित जीवनशैली का पालन करें, पूरी नींद लें, नियत समय पर सोएं, जगें और खाएं। इनका प्रजनन तंत्र पर सकारात्मक असर पड़ता है
तनाव न पालें, खुश रहने की कोशिश करें
प्रजनन तंत्र से संबंधित किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें। अगर जरूरी हो तो उपचार कराएं
(मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद में गाइनेकोलॉजी विभाग की क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ. पल्लवी वसल और एलैंटिस हेल्थकेयर, नई दिल्ली में आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ. मनन गुप्ता से बातचीत पर आधारित)
क्या है इनफर्टिलिटी
बांझपन प्रजनन तंत्र की एक ऐसी स्थिति है, जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। बांझपन किसी को भी प्रभावित कर सकता है और इसके कई कारण हो सकते हैं। बांझपन की समस्या महिला या पुरुष या दोनों के प्रजनन तंत्र से संबंधित किसी समस्या के कारण हो सकती है। बांझपन मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है:
प्राथमिक बांझपन: महिला कभी गर्भवती नहीं हुई है और नियमित, असुरक्षित संभोग के एक वर्ष या छह महीने के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाई है।
द्वितीयक बांझपन: कम से कम एक सफल गर्भधारण के बाद महिला फिर से गर्भवती नहीं हो पा रही हो।
अस्पष्टीकृत बांझपन: महिला और पुरुष के विभिन्न प्रजनन परीक्षणों में गर्भधारण न कर पाने का कोई स्पष्ट कारण सामने ना आना।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।