डेट आने के बाद भी नहीं हुई डिलीवरी तो ना लें टेंशन, जानें क्या है ओवरड्यू प्रेग्नेंसी what is overdue pregnancy 41 weeks reasons dangers precautions, पेरेंटिंग टिप्स - Hindustan
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डेट आने के बाद भी नहीं हुई डिलीवरी तो ना लें टेंशन, जानें क्या है ओवरड्यू प्रेग्नेंसी

नौ महीने की गर्भावस्था की यात्रा कभी खुशी, कभी गम के अहसास के साथ चलती है। पर, जब बच्चे के जन्म की संभावित तारीख निकल जाए, तब खुशी के पीछे-पीछे फिक्र भी दबे कदमों से बढ़ने लगती है। क्यों बनती है यह स्थिति बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 23 May 2025 04:10 PM
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डेट आने के बाद भी नहीं हुई डिलीवरी तो ना लें टेंशन, जानें क्या है ओवरड्यू प्रेग्नेंसी

गर्भावस्था के नौ महीने हर मां के लिए उतार-चढ़ाव से भरे होते हैं। धीमे-धीमे गुजरते वक्त के साथ बच्चे के आने का इंतजार और तेज हो जाता है। हर मां को 37 हफ्तों के बाद से हर पल उस लम्हे का इंतजार होता है, जब उसके कानों में बधाई हो... के अल्फाज गूंजेंगे। पर, कई बार यह इंतजार थोड़ा लंबा हो सकता है। यह इंतजार 40 हफ्तों के बाद भी बरकरार रह सकता है। ऐसे में जैसे-जैसे एक-एक दिन गुजरता है, वैसे ही वैसे चिंता-फिक्र भी बढ़ती जाती है। फिक्र होना लाजमी है, पर यह कोई समस्या नहीं है। इस अवस्था को ओवरड्यू प्रेगनेंसी कहते हैं। जिसके पीछे वजन, प्रेग्नेंसी हिस्ट्री सरीखे सरीखे कुछ कारण जिम्मेदार होते हैं। ऐसी स्थिति में चिंता नहीं, सजगता से काम लेने की जरूरत होती है। आपकी सजगता और सही समय पर चिकित्सकीय परामर्श से ही इस समस्या का समाधान निकल सकता है।

जानें क्या है ओवरड्यू प्रेग्नेंसी

क्या है ओवरड्यू प्रग्नेंसी? यह स्थिति गर्भावस्था में किस हफ्ते में शुरू होती है? ऐसे कई सवाल आपके मन में भी होंगे। इसका जवाब देते हुए स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. पूनम जैन बताती हैं कि गर्भावस्था को 37 से 40 हफ्ते में पूरा माना जाता है। इसकी गणना आपकी एलएमपी यानी आखिरी मासिक धर्म की तारीख से शुरू होकर 40 हफ्ते की होती है। यानी अगर उससे अधिक समय तक प्रसव पीड़ा शुरू नहीं होती या आपकी गर्भावस्था 41वें या 42वें हफ्ते तक चलती रहती है, तो ऐसी स्थिति को ओवरड्यू प्रेग्नेंसी या ओवरड्यू लेवल कहा जाता है। अब सवाल उठता है कि क्या ऐसी गर्भावस्था खतरनाक होती है? जवाब है, नहीं। हर महिला का शरीर अलग होता है। लिहाजा, हर ऐसी गर्भवस्था से परेशानी हो, जरूरी नहीं। यह कोई परेशानी की बात नहीं है। पर हां, ऐसे में सावधानी बरतने की आवश्यकता जरूर होती है। थोड़ी-सी भी लापरवाही बच्चे की जान तक ले सकती है।

ये हैं कारण

अब आप सोच रही होंगी कि भला यह समस्या होती क्यों है? इस तरह की गर्भावस्था के पीछे के कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं। पहली गर्भावस्था में यह स्थिति बन सकती है। घर में ऐसी गर्भावस्था का इतिहास होने पर भी ऐसा हो सकता है। वजन ज्यादा होना भी इसका एक कारण बन सकता है या फिर दिनों की गलत गणना भी हमें भ्रमित कर सकती है।

इन बातों का खतरा होता है

डॉ. पूनम की मानें तो 40 हफ्ते के बाद प्रसव नहीं हो रही तो बच्चे के साथ जो पानी की थैली होती है, उसका पानी कम हो जाता है। यह पानी बच्चे को गर्भ में सुरक्षित रखने में मददगार होता है। साथ ही प्लेसेंटा भी आपके शिशु को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करने के लिए पर्याप्त रूप से कार्य नहीं कर पाता। जिसके चलते भ्रूण को ऑक्सीजन की कमी और तंत्रिका संबंधी क्षति हो सकती है। मां के पेट में बच्चे के पॉटी करने की भी आशंका बढ़ जाती है, जिसे निकोनियम कहा जाता है। और वह पानी जो एकदम साफ होना चाहिए, उसे यह निकोनियम गंदा कर देता है। इसे बच्चा अंदर ले सकता है जो कि बच्चे के फेफड़े में जाकर भी परेशानी का कारण बन जाता है। ओवरड्यू प्रेग्नेंसी में समय के साथ बच्चे का आकार भी बड़ा हो जाता है, जिससे प्रसव में भी परेशानी होती है।

इन परिस्थतियों का रखें ज्यादा ध्यान

डॉ. पूनम कहती हैं आमतौर पर 40 हफ्ते के बाद प्रसव की सलाह दी जाती है। ऐसे में हम यूट्रस को जांचते हैं कि वह कितना सख्त या मुलायम है। इस जांच से यह तय करने में मदद मिलती है कि प्रसव सामान्य होगा या ऑपरेशन से। अगर बच्चा उल्टा या आड़ा है, मां का पहला बच्चा ऑपरेशन से हुआ है या फिर थैली में पानी की मात्रा कम हो गई है या फिर प्लेसेंटा नीचे की ओर है तो डॉक्टर द्वारा ऑपरेशन को ही तरजीह दी जाती है। नहीं तो दवाओं की मदद से सामान्य प्रसव कराने की कोशिश की जाती है।

रखें इन बातों का ख्याल

अगर आपकी गर्भावस्था 40 हफ्ते से ऊपर की हो चुकी है, तो आपको जो चीज सबसे पहले दिमाग में रखनी चाहिए, वह यह है कि आपको चिंता नहीं करनी। बस सही समय और सही तरीके से चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है। बकौल डॉ. पूनम 37वें हफ्ते से हम गर्भवती महिला को बच्चे की मूवमेंट पर गौर करते रहने की सलाह देते हैं। उसमें आई कमी पर फौरन चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए। ओवरड्यू गर्भावस्था की स्थिति में चिकित्सक आपको दो-तीन दिन के अंतराल में जांच की सलाह देते हैं। चिकित्सक अल्ट्रासाउंड, नॉनस्ट्रेट टेस्ट, बायोफिजिकल प्रोफाइल टेस्ट सरीखे जांच की मदद से बच्चे की स्थिति का अंदाजा लगाते हैं।

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