मणिपुर में वापस आने लगे लूटे गए हथियार, राष्ट्रपति शासन के बाद नरम पड़े उग्रवादी
- मणिपुर में राज्यपाल की अपील का असर दिखाई दे रहा है। उग्रवादियों ने हथियार सरेंडर करने शुरू कर दिए हैं। वहीं मेतेई संगठनों ने राज्यपाल से समय बढ़ाने की गुजारिश भी की है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने सख्ती से कहा था कि उग्रवादी संगठन अपने हथियार सरेंडर कर दें। उनकी इस अपील का असर भी दिखाई दे रहा है। चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिले के कई उग्रवादियों और अन्य लोगों ने हथियार सरेंडर कर दिए हैं। राज्य में असम राइफल्स, सीआरपीएफ और पुलिस ने एक जागरूकता अभियान भी चलाया है जिससे की वहां के समाज को हथियार मुक्त बनाया जा सके और हिंसा को रोका जा सके।
शनिवार को 16 अवैध और लूटे गए हथियार सरेंडर किए गए। इनमें एक एम-16 राइफल, एक 7.62 एमएम एसएलआर, दो एके श्रेणी की राइफल, तीन इनसास राइफल और अन्य खतरनाक हथियार शामिल हैं। गोला बारूद में 64 जिलेटिन रॉड, 10 राउंड 60 एमएम पुंपी, 17 राउंड एके राइफल के कारतूस और अन्य तरह की गोलियां शामिल हैं। एक लूटी गई टियर गैस गन भी अधिकारियों को सौंप दी गई। आने वाले समय में कई संगठनों ने हथियार डालने का वादा किया है।
वहींमेइती संगठनों के एक निकाय ने शनिवार को राज्यपाल से अनुरोध किया कि वह इस प्रक्रिया में सहयोगात्मक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय युवा नेताओं के साथ औपचारिक रूप से जुड़ें। ‘कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी’ (सीओसीओएमआई) ने एक बयान में यह भी कहा कि सात दिन की समय सीमा बहुत कम है।
भल्ला ने 20 फरवरी को राज्य के लोगों से सात दिन के अंदर हथियार सौंपने का आग्रह किया था। उन्होंने आश्वासन दिया था कि इस अवधि के दौरान हथियार छोड़ने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा था कि समय सीमा समाप्त होने के बाद "कड़ी कार्रवाई" की जाएगी। सीओसीओएमआई ने कहा, "हम इसे (राज्यपाल की हथियार समर्पण की अपील को) देश के कानून के तहत एक आवश्यक कदम मानते हैं। हालांकि, उन परिस्थितियों को पहचानना जरूरी है जिनके कारण स्थानीय युवाओं ने हथियार उठाए और हथियार लूटे। यह स्थिति सरकारी सुरक्षा बलों की अक्षमता के कारण उत्पन्न हुई, जो संकट के चरम पर होने के समय गांवों की रक्षा करने में विफल रहे।”