Real Dr John Camm from UK came forward on Damoh Fake cardiologist said this started 5 years ago ये सब 5 साल पहले शुरू हुआ था, दमोह कांड पर सामने आए असली डॉक्टर जॉन कैम; सबकुछ बताया, India Hindi News - Hindustan
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ये सब 5 साल पहले शुरू हुआ था, दमोह कांड पर सामने आए असली डॉक्टर जॉन कैम; सबकुछ बताया

  • करीब पांच साल पहले एक ट्विटर अकाउंट के जरिए यह पहचान चोरी सामने आई थी, जिसमें आरोपी ने खुद को डॉ. जॉन कैम बताकर कई विवादास्पद राजनीतिक बयान दिए थे।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 9 April 2025 01:50 PM
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ये सब 5 साल पहले शुरू हुआ था, दमोह कांड पर सामने आए असली डॉक्टर जॉन कैम; सबकुछ बताया

हाल ही में मध्य प्रदेश के दमोह जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया, जहां एक नकली कार्डियोलॉजिस्ट को गिरफ्तार किया गया है। इस व्यक्ति पर आरोप है कि उसने फर्जी चिकित्सा डिग्री के आधार पर मरीजों का इलाज किया, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम सात लोगों की मौत हो गई। गिरफ्तार शख्स की पहचान नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के रूप में हुई है, जो खुद को "डॉ. नरेंद्र जॉन कैम" बताता था। यह नाम यूनाइटेड किंगडम के प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जॉन कैम से प्रेरित है। अब खुद असली डॉक्टर जॉन कैम ने इस मामले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस धोखाधड़ी के बारे में कहा है कि यह पांच साल पहले शुरू हुई थी।

पहले पूरा मामला समझ लीजिए

मध्य प्रदेश पुलिस ने सोमवार रात को नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया। यह कार्रवाई दमोह के मिशन हॉस्पिटल में सात मरीजों की मौत के बाद शुरू हुई जांच के बाद हुई। पुलिस अधीक्षक श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने बताया, "आरोपी ने कुल 64 केस पर काम किया, जिसमें 45 एंजियोप्लास्टी शामिल थीं, और इनमें से सात मरीजों की मौत हो गई।" जांच में पता चला कि यादव के पास कोई वैध चिकित्सा डिग्री नहीं थी और उसके दस्तावेजों में मेडिकल काउंसिल का पंजीकरण नंबर भी गायब था।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब दमोह के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. एम. के. जैन ने शिकायत दर्ज की और कहा कि विक्रमादित्य यादव ने मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में पंजीकरण के बिना एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी जैसे जटिल ऑपरेशन किए। इसके बाद 5 अप्रैल को एक प्राथमिकी दर्ज की गई, और जांच शुरू हुई।

असली डॉ. कैम का बयान

यूके के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में क्लिनिकल कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. जॉन कैम ने इस घटना पर दुख जताया। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "यह पहचान की चोरी का मामला पहली बार करीब पांच साल पहले मेरे संज्ञान में आया था। उस समय यह बहुत परेशान करने वाला था। उसने कई बार दावा किया कि वह मैं हूं या मेरे अधीन लंदन के सेंट जॉर्ज अस्पताल में ट्रेनिंग ली है।" डॉ. कैम ने कहा कि भारतीय कार्डियोलॉजिस्ट्स ने इस धोखाधड़ी को उजागर करने की कोशिश की थी, लेकिन हाल की घटना ने उन्हें और मृतकों के परिजनों को गहरा आघात पहुंचाया है।

असली जॉन कैम ने बताया, “मैंने पाया कि इस बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन मेरे युवा सहयोगियों और भारतीय चिकित्सकों व हृदय रोग विशेषज्ञों ने तुरंत यह पता लगा लिया कि इस व्यक्ति का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है और उन्होंने उसे 'बंद' करने का प्रयास किया।" उन्होंने कहा कि "सब कुछ अपेक्षाकृत शांत रहा और मुझे लगा कि वे सफल रहे हैं"। साल 2023 में ही असली जॉन कैम ने ईमेल के माध्यम से बूम को बताया था कि ट्विटर अकाउंट @njohncamm "उनकी पहचान चुरा रहा है।" उन्होंने कहा था कि वे एन जॉन कैम या नरेंद्र यादव नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते हैं।

पहचान की चोरी और Twitter से शुरू हुई कहानी

करीब पांच साल पहले एक ट्विटर अकाउंट के जरिए यह पहचान चोरी सामने आई थी, जिसमें आरोपी ने खुद को डॉ. जॉन कैम बताकर कई विवादास्पद राजनीतिक बयान दिए थे। एक ट्वीट में आरोपी ने फ्रांस में दंगों के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वहां भेजने की बात कही थी। यह ट्वीट खुद मुख्यमंत्री के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट द्वारा रिट्वीट भी किया गया था। ट्वीट वायरल होने के बाद भारत के हृदय रोग विशेषज्ञों ने इस अकाउंट की सत्यता पर सवाल उठाए और इस फर्जीवाड़े को उजागर किया।

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अब हुआ गंभीर खुलासा — मरीजों की मौत और फर्जी प्रमाणपत्र

अब मध्य प्रदेश की पुलिस इस मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। जांच में सामने आया है कि डॉ. नरेंद्र जॉन कैम असल में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव हो सकता है, जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का रहने वाला है। दमोह के मिशन अस्पताल में वह बिना किसी मान्यता के एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी जैसे जटिल इलाज कर रहा था। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की रिपोर्ट में कम से कम 7 मरीजों की मौत का जिक्र किया गया है, जिनका इलाज आरोपी ने किया था। पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि उसने कुल कितनी सर्जरी और इलाज किए।

जाली दस्तावेज, फर्जी डिग्री और गिरफ्तारी

5 अप्रैल को जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) डॉ. एम. के. जैन की शिकायत के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई। सोमवार रात आरोपी को प्रयागराज से गिरफ्तार कर मंगलवार को स्थानीय अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 5 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है। पुलिस के अनुसार, आरोपी ने खुद को कानपुर निवासी बताया है। उसके पास उत्तराखंड के दस्तावेज भी पाए गए हैं और उसने दावा किया है कि उसकी पत्नी उत्तराखंड की है। पुलिस सभी दस्तावेजों और अस्पतालों से संपर्क कर उसकी चिकित्सा पृष्ठभूमि की पुष्टि कर रही है।

नकली डॉक्टर का इतिहास

नरेंद्र विक्रमादित्य यादव का यह पहला अपराध नहीं है। 2019 में, उसे हैदराबाद में एक ब्रिटिश डॉक्टर को कथित तौर पर अपहरण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उसने दावा किया था कि वह यूके के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में 2002 से इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में काम कर चुका है और जर्मनी, अमेरिका और स्पेन में भी उसने सेवाएं दी हैं।

इतना ही नहीं, 2014 में भारत के चिकित्सा नियामकों ने "पेशेवर कदाचार" के लिए नरेंद्र विक्रमादित्य यादव पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया था। रिकॉर्ड बताते हैं कि उस पर 2013 में उत्तर प्रदेश में धोखाधड़ी और ठगी का भी आरोप लगाया गया था। हालांकि, एक अदालत ने उसके खिलाफ शिकायत पर रोक लगा दी थी।

आगे की कार्रवाई

पुलिस अब इस मामले में उन सभी अस्पतालों से संपर्क कर रही है जहां आरोपी ने कथित रूप से काम किया था। यदि यह साबित होता है कि उसने फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर चिकित्सा प्रक्रियाएं की हैं, तो यह गंभीर आपराधिक मामला बन सकता है। यह मामला न सिर्फ चिकित्सा जगत में पहचान चोरी का दुर्लभ उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह एक फर्जी डॉक्टर वर्षों तक सिस्टम को चकमा देकर लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर सकता है।