सॉरी! सुप्रीम कोर्ट का आदेश पता नहीं था, घर गिराने के बाद नगर निगम की माफी
- नागपुर नगर निगम ने दंगा आरोपी फहीम खान का दो-मंजिला मकान गिरा दिया। अब जब मामला हाई कोर्ट में पहुंचा तो नगर निगम ने माफी मांग ली है।

सांप्रदायिक हिंसा के आरोपियों की संपत्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ हिदायत दी थी कि कोई भी कार्रवाई तय कानूनी प्रक्रिया और सभी जरूरी सुरक्षा उपायों को अपनाए बगैर नहीं की जा सकती। मगर नागपुर नगर निगम ने दंगा आरोपी फहीम खान का दो-मंजिला मकान गिरा दिया। अब जब मामला हाई कोर्ट पहुंचा, तो नगर निगम ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के सामने बिना शर्त माफी मांग ली है।
निगम आयुक्त अभिजीत चौधरी की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि टाउन प्लानिंग और स्लम विभाग के अधिकारी नवंबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अनजान थे। इसीलिए फहीम खान का घर 24 मार्च को गिरा दिया गया। गौरतलब है कि यह कार्रवाई नगर निगम की एंटी-एन्क्रोचमेंट टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से अंजाम दी, जो बिलकुल उसी तरह की थी जैसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बुलडोजर कार्रवाई देखी गई है।
दंगा आरोपी का घर गिराया
बता दें फहीम खान माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के प्रमुख हैं। उन्हें 19 मार्च को नागपुर के महल इलाके में सांप्रदायिक हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे। उन पर आगजनी, पथराव और देशद्रोह तक के गंभीर आरोप लगे हैं। दरअसल यह हिंसा 17 मार्च की रात फैली, जब ये अफवाह फैली कि खुलदाबाद में औरंगजेब की मजार को हटाने की मांग के बीच धार्मिक चादर की बेअदबी हुई है।
बता दें फहीम खान माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के प्रमुख हैं। उन्हें 19 मार्च को नागपुर के महल इलाके में सांप्रदायिक हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे। उन पर आगजनी, पथराव और देशद्रोह तक के गंभीर आरोप लगे हैं। दरअसल यह हिंसा 17 मार्च की रात फैली, जब ये अफवाह फैली कि खुलदाबाद में औरंगजेब की मजार को हटाने की मांग के बीच धार्मिक चादर की बेअदबी हुई है।
हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब
फहीम की मां मेहरुन्निसा और एक अन्य बुजुर्ग अब्दुल हफीज की याचिका में तर्क दिया कि तोड़फोड़ मनमाने ढंग से की गई थी और उचित प्रक्रिया के बिना दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के मानदंडों का उल्लंघन करती थी। इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की बेंच न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी ने महाराष्ट्र सरकार को दो हफ्तों का समय दिया है, ताकि वह बताए कि सुप्रीम कोर्ट की हिदायतें स्थानीय अफसरों तक क्यों नहीं पहुंचाईं गईं।