एक साथ 1947 में हुए आजाद, भारत चमका, पाकिस्तान होता गया कंगाल; आज कितना है पीछे?
पाकिस्तान ने जो रास्ता चुना, वह विकास का नहीं विनाश का था। सेना की चलती रही, सियासत गुमराह होती रही और धार्मिक कट्टरता को पनाह दी जाती रही। इसके इतर भारत ने शिक्षा, तकनीक, उद्योग और लोकतंत्र पर फोकस किया।

आज अगर कोई ये कहे कि पाकिस्तान की पहचान अब सिर्फ उसके फटे हाल स्थिति से नहीं, बल्कि उसके जहरीले इरादों से भी है, तो गलत नहीं होगा। एक तरफ भारत है, जिसने दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर बाजारों में जगह बनाई, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान है, जिसे अब दुनिया आतंक की फैक्ट्री कहती है।
आजादी के वक्त दोनों देश करीब-करीब एक जैसे हालात में थे, टूटे-फूटे ढांचे, खाली खजाना और विदेशी मदद की आस थी मगर भारत ने अपनी प्राथमिकता तय की। भारत ने शिक्षा, तकनीक, उद्योग और लोकतंत्र पर फोकस किया। 1991 के आर्थिक संकट ने देश को झकझोर दिया, मगर वहीं से सुधारों का रास्ता भी खुला। आज भारत के पास 688 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा है, जबकि पाकिस्तान महज़ 15 अरब पर सिसक रहा है।
पाकिस्तान ने चुना आतंक का रास्ता
पाकिस्तान ने जो रास्ता चुना, वह विकास का नहीं विनाश का था। सेना की चलती रही, सियासत गुमराह होती रही और धार्मिक कट्टरता को पनाह दी जाती रही। आतंकवाद को खुलेआम सहारा दिया गया, और नतीजा ये हुआ कि न सिर्फ पाकिस्तान में कट्टरपंथ बढ़ा बल्कि भारत को भी इसके जख्म झेलने पड़े, मुंबई हमले, उरी, पठानकोट और पुलवामा जैसी वारदातों के जरिए पाक ने अपने नापाक मंसूबों को दुनिया के सामने ला दिया है।
आईटी, फार्मा, स्टार्टअप ने भारत ने लहराया परचम
भारत ने जहां आईटी, फार्मा, स्टार्टअप और सर्विस सेक्टर से अपना परचम लहराया, पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था कपड़े और रेमिटेंस पर टिकी रही। आईएमएफ से 20 बार कर्ज लेकर भी मुल्क की हालत नहीं सुधरी, क्योंकि नीति की नीयत ही नहीं थी।
भारत के पास आज वैश्विक निवेशक हैं, अरबों डॉलर की टेक कंपनियां हैं और एक ऐसा युवा वर्ग है जो विश्व मंच पर नाम कमा रहा है। वहीं पाकिस्तान की पहचान अब सिर्फ आर्थिक बर्बादी ही नहीं, बल्कि आतंक की नर्सरी के तौर पर भी बन चुकी है। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उस पर आतंक को बढ़ावा देने के आरोप लगे और एफएटीएफ जैसे संगठनों ने उसे निगरानी सूची में डाला।