रूस-चीन की बढ़ती नजदीकी से ब्रह्मोस परियोजना पर पड़ सकता है असर
रूस और चीन के बीच बढ़ती नजदीकियों का असर भारत-रूस की ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना पर पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर रूस चीन के साथ सहयोग बढ़ाता है, तो इससे ब्रह्मोस के उन्नत संस्करण और निर्यात...

हांगकांग, एजेंसी। रूस और चीन के बीच बढ़ती नजदीकियों का असर भारत-रूस की ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना पर पड़ सकता है। इससे न केवल इसके उन्नत संस्करण के विकास बल्कि निर्यात योजनाओं पर भी प्रभाव पड़ने की आशंका है। लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की ताजा रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है। इसके अनुसार, अगर रूस अपनी सैन्य प्राथमिकताओं को चीन के साथ साझा सहयोग की दिशा में मोड़ता है, तो इससे ब्रह्मोस के उन्नत संस्करण विशेष तौर पर हाइपरसोनिक मॉडल के विकास और भारत द्वारा इसके निर्यात पर प्रभाव पड़ सकता है। ब्रह्मोस मिसाइल तकनीक को भारत ने रूस के साथ दो दशक पहले मिलकर विकसित किया था।
रिपोर्ट की तीन प्रमुख बातें 1. निर्यात नीति स्पष्ट करे भारत में ब्रह्मोस के वैश्विक निर्यात में स्पष्ट रणनीति की कमी रही है। मिसाइल की पहली अंतरराष्ट्रीय बिक्री 2024 में जाकर फिलीपींस को हुई, जबकि इस दिशा में वर्षों से प्रयास जारी थे। 3. स्वतंत्र हो विकास की नीति भारत को ब्रह्मोस के भविष्य के संस्करणों के विकास के लिए स्वतंत्र नीति तैयार करनी होगी। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 3. चीन से बढ़ती दिलचस्पी सैन्य सहयोग को लेकर रूस की चीन से नजदीकियां छिपी नहीं है। अगर रूस, चीन के साथ ब्रह्मोस के हाइपरसोनिक संस्करण को विकसित करने में दिलचस्पी लेता है, तो इससे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को चोट पहुंच सकती है। ---- दक्षिण-पूर्व एशिया में हथियार खरीद पर खर्च बढ़ा रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे प्रमुख दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में हथियार खरीद और सैन्य अनुसंधान पर खर्च बढ़ा है। वर्ष 2022 से 2024 के बीच रक्षा खरीद और अनुसंधान एवं विकास पर 2.7 अरब डॉलर की वृद्धि के साथ कुल खर्च 10.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। ये देश पनडुब्बियों, लड़ाकू विमानों, ड्रोन, मिसाइलों और निगरानी-संग्रहण इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों के लिए आयात पर निर्भर हैं।
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