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भारत समेत पूरी दुनिया में कमजोर आंखें अब भी बड़ी स्वास्थ्य चुनौती

-दुनिया में बेहतर दृष्टि पाने वालों की दर सिर्फ 65.8%, 2010 से अब तक केवल

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 24 May 2025 01:26 PM
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भारत समेत पूरी दुनिया में कमजोर आंखें अब भी बड़ी स्वास्थ्य चुनौती

नई दिल्ली, एजेंसी। दुनियाभर में करोड़ों लोग आज भी आंखों से संबंधित बुनियादी सेवाओं जैसे चश्मे से वंचित हैं, जिससे उनकी जिंदगी और कामकाज प्रभावित हो रहे हैं। भारत ने हाल के वर्षों में चश्मे की पहुंच बढ़ाकर इस समस्या से लड़ने की दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2030 तक निर्धारित लक्ष्यों से देश की दूरी बनी हुई है। द लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में पता चला है कि भारत में 50 साल से ऊपर के लोगों में चश्मा पहनकर बेहतर देख पाने की दर (ईआरईसी) 2023 तक पुरुषों में 65.5% और महिलाओं में 61.6% तक पहुंच गई है।

यह आंकड़ा 2000 की तुलना में लगभग 20% अधिक है, जिससे पता चलता है कि देश में नेत्र देखभाल की सेवाएं बेहतर हुई हैं। लेकिन डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य है कि 2030 तक ये दर पुरुषों में 98.4% और महिलाओं में 94.3% होनी चाहिए। इसका मतलब है कि भारत को अब भी करीब 30% से अधिक सुधार करना होगा ताकि हर जरूरतमंद तक चश्मे की सही पहुंच सुनिश्चित की जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में ईआरईसी का औसत स्तर सिर्फ 65.8% है, जो 2010 के मुकाबले सिर्फ 6% ही बढ़ा है। डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य है कि 2030 तक इसमें 40 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी हो। अध्ययन में इंग्लैंड के एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रूपर्ट बॉर्न के नेतृत्व में 76 देशों के आठ लाख से ज्यादा लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। भारत में ईआरईसी की स्थिति वर्ष पुरुष महिला 2000 44.2% 40.1% 2020 58.4% 54.3% 2023 65.5% 61.6% 2030 (लक्ष्य) 98.4% 94.3% उच्च आय वाले देशों में स्थिति बेहतर क्षेत्र ईआरईसी उच्च आय वाले देश 84.0% लैटिन अमेरिका 78.6% दक्षिण एशिया 53.3% उप-सहारा अफ्रीका 28.3% इन देशों में यह स्थिति देश पुरुष (%) महिला (%) लक्ष्य अमेरिका 84.0 81.5 कुछ दूर चीन 65.3 61.2 दूर भारत 65.5 61.6 दूर इथियोपिया 27.8 24.6 बहुत ज्यादा दूर फ्रांस 94 94 लक्ष्य हासिल चुनौतियां -गांव और गरीब इलाकों में चश्मे की उपलब्धता कम -महिलाओं और बुजुर्गों को कम प्राथमिकता मिलती है -लोगों को लगता है कि उम्र के साथ आंखों का कमजोर होना सामान्य, इलाज की जरूरत नहीं। -कई बार चश्मा मिल भी जाए तो उसकी गुणवत्ता ठीक नहीं होती। समाधान -सस्ते और अच्छे चश्मों की पहुच बढ़ाई जाए। -गांवों में मोबाइल नेत्र क्लीनिक और टेलीरिफ्रैक्शन तकनीक लाई जाए। -महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष शिविर लगाए जाएं। -स्कूलों और दफ्तरों में नियमित आंखों की जांच अनिवार्य हो।

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