Justice Abhay Oka Honors Mother s Memory by Delivering 11 Verdicts on Last Day at Supreme Court मां के निधन के अगले दिन अंतिम कार्यदिवस पर जस्टिस ओका ने सुनाए 11 फैसले, Delhi Hindi News - Hindustan
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मां के निधन के अगले दिन अंतिम कार्यदिवस पर जस्टिस ओका ने सुनाए 11 फैसले

जस्टिस अभय ओका ने अपनी मां के निधन के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट में अपने अंतिम कार्यदिवस पर 11 मामलों में फैसले सुनाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की स्वतंत्रता को बनाए रख सकता है। सीजेआई गवई...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 23 May 2025 07:15 PM
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मां के निधन के अगले दिन अंतिम कार्यदिवस पर जस्टिस ओका ने सुनाए 11 फैसले

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता अपनी मां के निधन के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जस्टिस अभय एस. ओका ने परंपराओं को तोड़ते हुए अपने सेवा के अंतिम कार्य दिवस पर 11 मामलों में फैसले दिए। 24 मई को सेवानिवृत हो रहे जस्टिस ओका ने भावुक होते हुए कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट एक ऐसा न्यायालय है जो संवैधानिक स्वतंत्रता को कायम रख सकता है और उन्होंने ईमानदारी से उस स्वतंत्रता को बरकरार रखने का प्रयास किया है। जस्टिस ओका ने कहा कि ‘मेरा मानना है कि यह (सुप्रीम कोर्ट) एक ऐसा न्यायालय है जो संवैधानिक स्वतंत्रता को कायम रख सकता है। मैंने इस संबंध में ईमानदारी से प्रयास किया है और मुझे भरोसा है कि इसे बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाएंगे और यह न्यायालय स्वतंत्रता कायम रखेगा क्योंकि संविधान निर्माताओं को भी यही सपना था।

देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई, न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सामारोहिक पीठ का आयोजन किया गया। इस पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई गवई ने अपने कालेज दिनों के मित्र जस्टिस ओका के साथ अपनी यात्रा को याद किया और न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए उनकी सराहना की। वकीलों, बार नेताओं, सीजेआई और जस्टिस एजी मसीह द्वारा दिए गए विदाई पर बोलते हुए, जस्टिस ओका ने कहा कि ‘मुझे स्वीकार करना चाहिए कि पिछले एक घंटे और 20 मिनट में जो कुछ भी कहा गया है, उसे सुनने के बाद, मैं भावविभोर हूं और शायद आज मेरे पेशेवर करियर का पहला और आखिरी दिन है, जब मैंने किसी को बोलने से नहीं रोका क्योंकि मैं रोक नहीं सकता था। मैंने बार के सदस्यों द्वारा मेरे लिए इतना प्यार और स्नेह देखा है कि मैं अचंभित रह गया। स्वतंत्रता, पर्यावरण संरक्षण और संवैधानिक मूल्यों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाने वाले जस्टिस ओका ने अपने भविष्य के बारे में अटकलें लगाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैंने यहां केवल तीन साल 9 माह काम किया है, लेकिन मैं हमेशा इन यादों को अपने दिल में संजो कर रखूंगा। न्यायमूर्ति ओका के ऐतिहासिक निर्णयों पर प्रकाश डालते हुए, सीजेआई गवई ने कहा कि ‘बस दो दिन पहले ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया। वह उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के बाद रात में यात्रा करके वापस लौटे और फिर भी अगले दिन 11 फैसले सुनाने में कामयाब रहे। जस्टिस मसीह ने जस्टिस ओका के साथ अपने गहरे पेशेवर और व्यक्तिगत संबंधों के बारे में बात की। इस मौके पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि जस्टिस ओका के फैसलों ने स्वतंत्रता और जवाबदेही के मूल्यों को हमारे संवैधानिक विमर्श की नींव में स्थापित किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इसी भावना को दोहराया। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने विदाई देते हुए कहा कि ‘स्वतंत्रता वह धागा है जो हमारे संविधान को बांधता है और न्यायमूर्ति ओका को उस धागे को मजबूती से थामे रखने के लिए याद किया जाएगा। आप विरासत का हिस्सा हैं। गुरुवार को मां का अंतिम संस्कार में शामिल हुए जस्टिस अभय ओका गुरुवार को महाराष्ट्र के ठाणे जिले में अपनी मां वसंती ओका के अंतिम संस्कार में शामिल हुए और इसके कुछ ही घंटों बाद वह शुक्रवार को दिल्ली वापस लौटे। सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने 11 मामलों में फैसले सुनाए, जबकि अंतिम कार्यदिवस पर न्यायाधीश फैसला या मामले की सुनवाई नहीं करते हैं। इनमें एक मामला किशोरों के गोपनीयता से जुड़े अधिकार भी मामला है। सेवानिवृति के पद नहीं लेंगे जस्टिस ओका सीजेआई बीआर गवई ने खुलासा किया कि उनकी तरह जस्टिस ओका भी सेवानिवृति के बाद कोई पद नहीं लेंगे, जिससे उन्हें एक-दूसरे से जुड़ने के लिए अधिक समय मिलेगा। सीजेआई ने कहा कि सेवानिवृति के बाद वह और जस्टिस ओका एक साथ काम करेंगे। सीजेआई ने मैं और जस्टिस ओका गर्वनमेंट लॉ कॉलेज में एक साथ पढ़ाई की और दोनों 40 साल से मित्र हैं। उन्होंने कहा कि हम दोनों बॉम्बे हाईकोर्ट में एक साथ वकालत किए और बाद में जज भी बने। हम लोकप्रिय होने के लिए जज नहीं बने- जस्टिस ओका न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कहा कि एक न्यायाधीश को ‘बहुत दृढ़ और बहुत सख्त होना चाहिए और किसी को भी कुछ कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘मुझे एक महान न्यायाधीश याद है, जिनका नाम मैं नहीं बताना चाहूंगा, लेकिन उन्होंने मुझे सलाह दी थी कि कृपया एक बात याद रखें, हम लोकप्रिय होने के लिए न्यायाधीश नहीं बन रहे हैं और मैंने उस सलाह का पालन किया। उन्होंने कहा कि कई बार वे वकीलों के प्रति बहुत कठोर होते थे और इसका एकमात्र कारण यह था कि वे संविधान में निर्धारित सिद्धांतों को कायम रखना चाहते थे।

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