वक्फ संशोधन कानून वापस ले सरकार: मदनी
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने केंद्र सरकार पर वक्फ (संशोधन) अधिनियम को वापस लेने की मांग की है। मौलाना महमूद मदनी ने आरोप लगाया कि यह कानून मुस्लिमों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास है और संविधान के...

-बहुलता की अनदेखी कर बना कानून देश की एकता अखंडता को करेगा प्रभावित: मदनी नई दिल्ली। प्रमुख संवाददाता
मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम) ने केंद्र सरकार पर संविधान और उसकी मूल अवधारणा का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम को वापस लेने की रविवार को मांग की। संगठन ने केंद्र पर वक्फ (संशोधन) कानून के जरिए मुस्लिमों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का संगठित और कुत्सित प्रयास करने का भी आरोप लगाया। जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में हुई संगठन की कार्य समिति की बैठक में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया और दावा किया गया कि यह संशोधित कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है और वक्फ के मूल ढांचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी है। जमीअल उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने आईटीओ स्थित कार्यालय में आयोजित बैठक में कई प्रस्ताव भी पास हुए। एक प्रस्ताव में कहा गया है कि केन्द्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम व्यक्तियों का बहुमत होना धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का खुला उल्लंघन है।
इसमें दावा किया गया है कि इस तरह का कानून दरअसल बहुसंख्यक वर्ग के वर्चस्व का प्रतीक है, जिसका हम पूरी तरह विरोध करते हैं। यह हमें किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि वर्तमान सरकार भारत के संविधान की भावना और उसकी मूल अवधारणा का उल्लंघन कर रही है। हम इसे पूरी तरह से समझते हैं कि एक पूरे समुदाय को हाशिए पर डालने, उनकी धार्मिक पहचान को मिटाने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का संगठित और कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि संशोधन की भावना हमेशा प्रशासनिक सुधार पर आधारित होनी चाहिए, जैसा कि गत कुछ संशोधनों के माध्यम से हुआ है।
इसमें कहा गया है कि कार्यकारी समिति सरकार और विपक्षी दलों द्वारा वक्फ संपत्तियों और प्रस्तावित संशोधनों के संबंध में दिए गए भ्रामक बयानों की कठोर शब्दों में निंदा करती है।
इसमें यह भी कहा गया है कि विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा निराशाजनक है और जो तत्व विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा में लिप्त हो रहे हैं, वह वास्तव में वक्फ की रक्षा के इस आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं।
प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे(यूसीसी) लागू करना और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना धार्मिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है तथा मुस्लिम पारिवारिक कानूनों को समाप्त करने का प्रयास लोकतंत्र की भावना और भारत के संविधान में प्रदत्त गारंटी के खिलाफ है।
प्रस्ताव के मुताबिक, यूसीसी केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि इसका संबंध देश के विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों, जातियों और सभी वर्गों से है।
इसमें कहा गया है, हमारा देश अनेकता में एकता का सर्वोच्च उदाहरण है, हमारे बहुलतावाद की अनदेखी करके जो भी कानून बनाया जाएगा, उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा।
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