Supreme Court Acquits Man in Wife s Murder Case Due to Lack of Confirmatory Evidence पुष्टि साक्ष्य के बगैर मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर भरोसा करके दोषी ठहराना उचित नहीं- सुप्रीम कोर्ट, Delhi Hindi News - Hindustan
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पुष्टि साक्ष्य के बगैर मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर भरोसा करके दोषी ठहराना उचित नहीं- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुष्टि साक्ष्य के अभाव में मृत्यु पूर्व दिए गए संदिग्ध बयान के आधार पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। अदालत ने सुरेश को पत्नी की हत्या के आरोप से बरी कर दिया। मामले में मृतक...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 12 March 2025 07:28 PM
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पुष्टि साक्ष्य के बगैर मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर भरोसा करके दोषी ठहराना उचित नहीं- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुष्टि साक्ष्य के अभाव में मृत्यु पूर्व दिए गए संदिग्ध बयान के आधार पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने पत्नी की हत्या करने के आरोपी को बरी करते हुए यह टिप्पणी की है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान को एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है और इसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है क्योंकि आपराधिक कानून में इसका अत्यधिक महत्व है। हालांकि पीठ ने साफ किया कि आरोपी को दोषी ठहराने के लिए जरूरी है कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के साथ ही ‌मामले के संपूर्ण तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा है कि यदि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में किसी भी तरह की संदिग्धता है और इसकी पुष्टि करने वाले साक्ष्य की कमी है तो इस पर भरोसा करके आरोपी को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। इसके साथ ही, पीठ ने पत्नी की हत्या करने के मामले में दोषी ठहराए गए सुरेश को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुरेश की अपील कर विचार करते हुए यह फैसला दिया है। उच्च न्यायालय ने जिला अदालत द्वारा सुरेश को पत्नी की हत्या के आरोपी में दोषी ठहराने और उक्रकैद की सजा दिए जाने के फैसले को बहाल रखा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत और उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए, सुरेश को बरी कर दिया आरोपी सुरेश पर 12 सितंबर 2008 में पत्नी को जलाकर उसकी हत्या करने का आरोप था।

शीर्ष अदालत ने हाल ही में पारित फैसले में कहा है कि ‘यदि व्यक्ति के मृत्यु-पूर्व दिए गए बयान पर संदेह हो या उसके मृत्यु-पूर्व दिए गए बयानों में विरोधाभास हो, तो अदालतों को यह पता लगाने के लिए पुष्टि साक्ष्यों पर गौर करना चाहिए कि मृत्यु-पूर्व दिए गए किस बयान पर विश्वास किया जाए। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को सावधानी से कार्य करने की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां मृत्यु पूर्व बयान संदिग्ध हो, वहां पुष्टि साक्ष्य के अभाव में आरोपी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। इसके साथ ही, पीठ ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो मृतक महिला ने दो बयान दिए और दोनों बयान में विरोधाभास है। पीठ ने कहा है कि महिला द्वारा पहला बयान, बाद में दिए गए बयान से पूरी तरह से अलग है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पति द्वारा आग लगाए जाने के तीन सप्ताह बाद महिला की अस्पताल में मौत हो गई। दंपति अपने बेटे के साथ तमिलनाडु तूतीकोरिन में रहता था। पीठ ने कहा है कि महिला ने अस्पताल में पुलिस को बताया कि आग रसोईघर में हुई दुर्घटना के कारण लगी थी। हालांकि, तीन दिन बाद पुलिस ने महिला का एक और बयान दर्ज किया, जिसमें उसने दावा किया कि उसके पति ने उस पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए, जेल प्रशासन से उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था।

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