रिकेट्सियल बीमारियों के राष्ट्रीय निगरानी तंत्र से जुड़ा बाल चिकित्सालय
नोएडा का बाल चिकित्सालय राष्ट्रीय रिकेट्सियल निगरानी तंत्र से जुड़ गया है। अब यह संस्थान रिकेट्सियल बीमारियों से संबंधित डेटा आईसीएमआर को उपलब्ध कराएगा। इससे शोध और इलाज में मदद मिलेगी। डॉ. जॉन ज्यूड...

नोएडा, प्रमुख संवाददाता। बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान राष्ट्रीय रिकेट्सियल निगरानी तंत्र से जुड़ गया है। अब संस्थान रिकेट्सियल बीमारियों से जुड़ी सभी तरह के डाटा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को उपलब्ध कराएगा। इस व्यवस्था के बाद बीमारियों से संबंधित शोध, इलाज, सहित अन्य पहलुओं में बाल चिकित्सालय की भागीदारी होगी। राष्ट्रीय रिकेट्सियल निगरानी तंत्र से जुड़ने पर 24 अप्रैल को सीएमसी वेल्लोर के माइक्रो बायलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. जॉन ज्यूड प्रकाश ने अस्पताल का दौरा किया था। सीएमसी वेल्लोर राष्ट्रीय रिकेट्सियल निगरानी का संदर्भ केंद्र है। इस दौरान उन्होंने इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी। रिकेट्सियल बीमारियों में स्क्रब टायफस, मयूरिन टायफस, स्पॉटेड फीवर आदि शामिल हैं।
इस तरह की बीमारियां घुन और कीट के काटने से होती हैं। बीमारियों का कारण बैक्टीरियल संक्रमण होता है। सही समय पर जांच और बीमारी की पहचान नहीं होने के कारण ज्यादातर मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं। ऐसे में इन बीमारियों की जांच और नियमित शोध बेहद जरूरी है। बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान के माइक्रो बायलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. सुमी नंदवानी ने बताया कि निगरानी तंत्र से जुड़ने से रिकेट्सियल बीमारियों से संबंधित सभी डाटा हम साझा करेंगे। इसके लिए हमें आईसीएमआर से मदद मिलेगी। इस योजना के तहत होने वाले शोध, जांच आदि से रिकेट्सियल बीमारियों के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया के जिनोटाइप के बारे में जानकारी मिल पाएगी। जिससे बेहतर इलाज, वैक्सीन बनाने, किट बनाने आदि में मदद मिलेगी। भविष्य में इसका लाभ इन बीमारियों के मरीजों को होगा। अस्पताल में पहले से ही स्क्रब टायफस बीमारी की जांच की जा रही है। अब और जांचें बढ़ेंगी। साथ ही बीमारियों से पीड़ित मरीजों, इलाज, सहित अन्य पहलुओं का आधिकारिक डाटा मिल पाएगा।
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