कौन थीं ब्रह्मकुमारी राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी जी, जिनके निधन पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने भी जताया दुख
- राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने कहा, 'दादी रतन मोहिनी जी के निधन के बारे में जानकर मुझे बहुत दुख हुआ है। वे ब्रह्माकुमारी संस्था का एक प्रकाश-स्तंभ थीं। इस संस्थान ने मेरी जीवन यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

आध्यात्मिक संगठन प्रजापिता ईश्वरीय ब्रह्माकुमारीज़ की प्रमुख राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का सोमवार देर रात निधन हो गया। वह 101 वर्ष की थीं। दादी रतनमोहनी ने गुजरात में अहमदाबाद के जाइडिस अस्पताल में देर रात एक बजकर 20 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागडे, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और अनेक गणमान्य लोगों ने शोक व्यक्त किया है।
इन प्रमुख शख्सियतों ने दादी रतनमोहिनी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि उनके देहावसान से आध्यात्मिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके पार्थिव शरीर को राजस्थान के आबू रोड में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय शांतिवन आश्रम के सभागार में अंतिम दर्शनार्थ रखा गया है। ब्रह्माकुमारीज के अनुसार दादी राजमोहिनी का 10 अप्रैल को सुबह 10 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा।
रतनमोहिनी के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने कहा, 'दादी रतन मोहिनी जी के निधन के बारे में जानकर मुझे बहुत दुख हुआ है। वे ब्रह्माकुमारी संस्था का एक प्रकाश-स्तंभ थीं। इस संस्थान ने मेरी जीवन यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दादी रतन मोहिनी जी ने अपनी शिक्षाओं और कार्यों से अनगिनत लोगों की सोच और जीवन को संवारा। सेवा, सद्भाव, शांति और परोपकार के संदेश का प्रसार उन्होंने आजीवन किया। उनकी शिक्षाएं लोगों को अध्यात्म के मार्ग पर चलने और जन-कल्याण-कार्यों के लिए प्रेरित करती रहेंगी। मैं पूरे विश्व में विद्यमान ब्रह्माकुमारी परिवार के सभी सदस्यों एवं इस संस्था के शुभचिंतकों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करती हूं।'
उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके देहावसान पर शोक प्रकट करते हुए लिखा कि, 'दादी रतन मोहिनी जी की आध्यात्मिक उपस्थिति बहुत ही शानदार थी। उन्हें प्रकाश, ज्ञान और करुणा की किरण के रूप में याद किया जाएगा। उनकी जीवन यात्रा, गहरी आस्था, सादगी और सेवा के प्रति अडिग प्रतिबद्धता में निहित है, जो आने वाले समय में बहुत से लोगों को प्रेरित करेगी। उन्होंने ब्रह्माकुमारीज़ के वैश्विक आंदोलन को उत्कृष्ट नेतृत्व प्रदान किया। उनकी विनम्रता, धैर्य, विचारों की स्पष्टता और दयालुता हमेशा सबसे अलग रही। वह उन सभी के लिए मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी जो शांति चाहते हैं और हमारे समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं। मैं उनके साथ अपनी बातचीत को कभी नहीं भूलूंगा। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके अनुयायियों और ब्रह्माकुमारीज़ के वैश्विक आंदोलन के साथ हैं। ओम शांति।'
पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था जन्म
दादी रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च 1925 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर के एक साधारण परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम लक्ष्मी रखा था। इसके बाद बचपन से अध्यात्म के प्रति लगन और परमात्मा को पाने की चाह में केवल 13 साल की उम्र में लक्ष्मी ने विश्व शांति और नारी सशक्तिकरण की मुहिम में खुद को समर्पित कर दिया।
मात्र 13 साल की उम्र में ब्रह्मकुमारीज से जुड़ीं
बता दें कि दादी रतनमोहिनी जी मात्र 13 साल की उम्र में ही ब्रह्माकुमारीज से जुड़ गई थीं और उन्होंने पूरा जीवन समाज कल्याण में समर्पित कर दिया। 101 वर्ष की आयु में भी दादी की दिनचर्या सुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे से शुरू हो जाती थी। सबसे पहले वह परमपिता शिव परमात्मा का ध्यान करती थीं। राजयोग ध्यान उनकी दिनचर्या में शामिल रहा।
दादी रतनमोहिनी जी साल 1937 में ब्रह्माकुमारीज़ की स्थापना से लेकर अंतिम सांस तक दादी इस संस्था से जुड़ी रहीं और वे कुल 87 वर्षों तक इस संस्था की यात्रा की साक्षी रहीं।