गलत खून ने निगल ली जिंदगी,SMS में प्रसूता की मौत, अब फाइल गायब!
जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस में एक बार फिर ऐसी लापरवाही सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। एक महिला, जो 11 दिन तक अस्पताल में भर्ती रही, उसे गलत ब्लड चढ़ा दिया गया और उसकी मौत हो गई।

जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस में एक बार फिर ऐसी लापरवाही सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। एक महिला, जो 11 दिन तक अस्पताल में भर्ती रही, उसे गलत ब्लड चढ़ा दिया गया और उसकी मौत हो गई। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि अब उस महिला की मेडिकल फाइल तक अस्पताल में मौजूद नहीं है।
ये मामला न सिर्फ एक लापरवाही की कहानी है, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़ांध की गवाही देता है। जब भास्कर ने इस मामले की तह तक जाने की कोशिश की, तो सामने आया कि मौत के 35 घंटे बाद भी अस्पताल प्रशासन यह तय नहीं कर पाया कि गलती किसकी थी, ड्यूटी पर कौन था, और किसने ब्लड चढ़ाया। सबके पास एक ही जवाब था — "महिला सीरियस थी।"
क्या अब गंभीर मरीजों के लिए लापरवाही करना जायज हो गया है?
हकीकत ये है कि अस्पताल में ब्लड चढ़ाने की प्रक्रिया में कई स्तर पर जांच और पुष्टि होनी चाहिए। रेजिडेंट डॉक्टर और नर्स को मिलकर यह देखना होता है कि जो ब्लड मंगवाया गया है, वही ब्लड मरीज को चढ़ाया जा रहा है या नहीं। लेकिन सिस्टम की खामियां इतनी हैं कि जवाबदेही कहीं तय ही नहीं होती।
ब्लड बैंक में 70% स्टाफ ठेके पर है। पर्ची आई, एंट्री की गई और बिना पुष्टि के ब्लड दे दिया गया। जिसे ब्लड वार्ड तक पहुंचाना होता है — वह वार्ड बॉय भी ठेके पर। यानी पूरी जिम्मेदारी एक ऐसे ढांचे पर टिकी है, जहां न कोई स्थायित्व है, न जवाबदेही।
यह कोई पहला मामला नहीं है। फरवरी 2024 में 23 साल के सचिन को गलत ब्लड चढ़ाकर मार दिया गया। दिसंबर में भरतपुर का 10 साल का मुस्तफा भी इसी लापरवाही का शिकार हुआ। और अब यह प्रसूता — जिसकी मौत को पहले छुपाने की कोशिश हुई और अब उसकी फाइल तक 'गायब' कर दी गई।
मानवाधिकार आयोग ने इस गंभीर मामले पर संज्ञान लिया है। आयोग ने एसएमएस के अधीक्षक और प्राचार्य को नोटिस जारी कर 12 जून तक तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। साथ ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक और जांच कमेटी मौत का जवाब दे पाएगी? क्या सिर्फ कार्रवाई की घोषणा से एक मां की मौत का हिसाब पूरा होगा?
एसएमएस अस्पताल में मौतें अब आंकड़े नहीं, एक आदत बन गई हैं। और इस आदत की जड़ में है — लापरवाह सिस्टम, ठेके पर टिके कर्मचारी, और जिम्मेदारी से बचने की परंपरा।
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