बोले अम्बेडकरनगर-रास्ता ठीक न शौचालय,कोई समस्या सुनने वाला भी नहीं
Ambedkar-nagar News - अम्बेडकरनगर में 100 से अधिक परिषदीय स्कूलों के रास्ते खराब हैं और शौचालय की स्थिति भी दयनीय है। बारिश में जलभराव से शिक्षिकाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बिजली कटौती और सफाई व्यवस्था भी...

अम्बेडकरनगर। जिले में 100 से अधिक परिषदीय स्कूल ऐसे हैं, जहां या तो जाने वाला मार्ग बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है या फिर शौचालय की स्थिति अत्यंत दयनीय है। जलनिकासी की समुचित व्यवस्था न होने से बारिश होने पर जलभराव उत्पन्न हो जाता है। इससे शिक्षिकाओं को कई प्रकार की दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, कुछ शिक्षिकाएं तो ऐसी हैं, जिनकी तैनाती घर से काफी दूर स्थित स्कूल में की गई है। इससे उन्हें आवागमन में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जिले में 1582 परिषदीय स्कूल संचालित हैं। इसमें लगभग पौने 2 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा हासिल कर रहे हैं।
परिषदीय स्कूलों के प्रति छात्र-छात्राओं व उनके अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए कई प्रकार की योजनाएं तो संचालित हैं, लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। और तो और मूलभूत सुविधाएं ही प्रदान नहीं की जा रही हैं। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग 100 स्कूल ऐसे हैं, जहां तक जाने वाला मार्ग ही बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है। आलापुर तहसील क्षेत्र के अराजी देवारा के अलावा माझा क्षेत्र में स्थित अन्य स्कूलों तक जाने वाले मार्ग गड्ढों में तब्दल हो चुके हैं। ऐसा ही हाल टांडा व जलालपुर विकास खंड क्षेत्र के भी कई स्कूलों का है। अकबरपुर, जलालपुर, हजपुरा, सूरापुर, राजेसुल्तानपुर, जहांगीरगंज, भीटी, कटेहरी, महरुआ, मिझौड़ा के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में स्थित परिषदीय स्कूलों में न तो जलनिकासी की समुचित व्यवस्था है और न ही शौचालय की। बारिश के मौसम में परिसर में जलभराव हो जाता है। इससे छात्र-छात्राओं के साथ साथ शिक्षिकाओं को आवागमन में व्यापक मुश्किालों का सामना करना पड़ता है। अक्सर छोटे छोटे बच्चे फिसलकर गिर जाते हैं। शौचालय की समुचित व्यवस्था न होने से शिक्षिकाओं को कई प्रकार की दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जिले में दो दर्जन से अधिक ऐसी शिक्षिकाएं हैं, जिनकी तैनाती घर से काफी दूर स्थित स्कूल में की गई है। इससे उन्हें आवागमन में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मुख्य मार्ग पर स्कूल होने में तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन यदि स्कूल मुख्य मार्ग से काफी अंदर होता है, तो इसके लिए शिक्षिकाओं को विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। अकबरपुर विकासखंड के एक स्कूल में तैनात शिक्षिका ने कहा कि उनकी तैनाती जिस स्कूल में है, वह मुख्य मार्ग से काफी हटकर है। ऐसे में उन्हें इसके लिए विशेष तौर पर ई रिक्शा करना पड़ा है। अघोषित बिजली कटौती बढ़ा रही मुश्किलें:मौजूदा समय में भीषण गर्मी का प्रकोप है। आसमान से आग बरस रही है। ऐसे में बेपटरी बिजली आपूर्ति ने परिषदीय स्कूलों में तैनात शिक्षिकाओं को मुश्किलों में डाल दिया है। शिक्षण कार्य के दौरान बिजली आपूर्ति बाधित होने के चलते बच्चों को सुचारु रूप से पढ़ाने में समस्या होती है। बेहतर बिजली आपूर्ति उपलब्ध कराए जाने की मांग अक्सर शिक्षिकाओं द्वारा की जाती है, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। इससे न सिर्फ शिक्षिकाओं, बल्कि छात्र-छात्राओं को भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। बेपटरी सफाई व्यवस्था से मुश्किलें:वैसे तो साफ सफाई पर विशेष जोर दिया जाता है, लेकिन परिषदीय स्कूलों में यह व्यवस्था अक्सर बेपटरी ही रहती है। सफाई कर्मचारियों की लापरवाही के चलते परिसर से लेकर शिक्षण कक्ष तक जगह जगह गंदगी का अंबार लगा होने से शिक्षिकाओं को कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मनमानी करने वाले सफाई कर्मचारियों की शिकायत समय समय पर जिम्मेदारों से की जाती है, लेकिन कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छता अभियान तो चलता है, लेकिन यह अभियान परिषदीय स्कूलों के परिसर तक पहुंचते पहुंचते न जाने क्यों दम तोड़ देता है। शहरी क्षेत्र में स्थित परिषदीय स्कूलों में साफ सफाई तो दिख जाती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में स्थित ज्यादातर स्कूलों में साफ सफाई व्यवस्था बेपटरी है। परिसर से लेकर शिक्षण कक्ष तक जगह जगह गंदगी फैली रहती है। इससे सबसे अधिक समस्या शिक्षिकाओं को होती है। दरअसल सफाई कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी के प्रति पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। गांव में तैनाती होने के बाद भी वे कभी कभार ही साफ सफाई के लिए पहुंचते हैं। बारिश के दिनों में तो यह समस्या और भी बढ़ जाती है। लापरवाही बरतने वाले सफाई कर्मचारियों की शिकायत अक्सर जिम्मेदारों से की जाती है, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। नतीजा यह है कि इसका खामियाजा छात्र-छात्राओं के साथ साथ शिक्षिकाओं को भुगतना पड़ता है। सामाजिक कार्यकत्री पुष्पा पाल ने कहा कि साफ सफाई को लेकर दावे तो बढ़ चढ़कर किए जाते हैं, लेकिन उसे जमीनी हकीकत देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।
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