बोले आजमगढ़ : नर्सरी उद्योग को मिले सब्सिडी, पौधों की हो सरकारी खरीद
Azamgarh News - हाल के वर्षों में पौधों की मांग में वृद्धि के कारण नर्सरी उद्योग का विस्तार हो रहा है। हालांकि, नर्सरी संचालकों को प्रशासन से खरीद की व्यवस्था और सब्सिडी की जरूरत है। कई संचालक बिना जमीन के पौधे...

हाल के कुछ वर्षों में हरियाली और पौधरोपण को लेकर लोग जागरूक हुए हैं। यही वजह है कि शहर से लेकर गांव तक पौधों की डिमांड लगातार बढ़ी है। पौधों की मांग बढ़ने से नर्सरी उद्योग का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। इसके बाद भी नर्सरी संचालकों को तमाम चुनौतियों का सामाना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि प्रशासन उनकी नर्सरी से पौधों की खरीद की व्यवस्था करे। साथ ही उन्हें सब्सिडी और आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण दे। जिससे नर्सरी का कारोबार बढ़ाया जा सके। हर साल होने वाले पौधरोपण अभियान में उन्हें भी शामिल किया जाए। 1 नगरपालिका के पास ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में नर्सरी संचालकों ने अपनी समस्याओं को साझा किया।
नर्सरी संचालक मुस्तफा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में नौ से अधिक बड़ी नर्सरी हैं, जिनके संचालक खुद अपने यहां पौधे तैयार करते हैं। इसके अलावा शहर में 15 से अधिक छोटी नर्सरियां हैं। इसके अलावा वन विभाग की दो सरकारी नर्सरी हैं। सरकारी नर्सरी में आम, अमरूद, जामुन, सफेदा आदि के पौधे ही उगाए जाते हैं। सरकारी नर्सरी में उगाए जा रहे पौधे जिले में पौधरोपण अभियान के दौरान काम में लाए जाते हैं। जबकि प्राइवेट नर्सरी संचालकों के यहां हर तरह के पौध उपलब्ध रहते हैं। शहर के नर्सरी संचालक जमीन के अभाव में खुद पौधे नहीं उगा पाते हैं। वे कोलकाता, वाराणसी, लखनऊ, मलिहाबाद की मंडी से पौधे मंगाते हैं। घर के अंदर-बाहर सजाने वाले 150 तरह के पौधों की डिमांड पूरी करते हैं। संसाधनों के अभाव में छोटे नर्सरी संचालकों को पौधों को जिंदा रखने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है। वहीं, शहर से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में बड़े नर्सरी संचालक खुद की जमीन पर सीमित संसाधनों के भरोसे पौधों की सेवा करते हैं। बड़े नर्सरी संचालक फलदार पौधों के अलावा सब्जी के भी पौधे तैयार करते हैं। यूपी ही नहीं अन्य प्रदेश में भी पौधों की डिमांड नर्सरी संचालक वंशगोपाल सिंह ने बताया कि सरकार से बिना मदद के ही 31 साल से नर्सरी का संचालन कर रहे हैं। यूपी के अलावा अन्य प्रदेशों में भी पौधों की डिमांड बढ़ने से वर्तमान में 50 बीघे में नर्सरी उद्योग का विस्तार किया है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड के नर्सरी संचालक और किसानों को पौधों की आपूर्ति की जाती है। जिले के लगभग दस हजार किसानों के यहां सब्जी और आम,अमरूद की बागवानी के लिए पौधों की सप्लाई की जाती है। ग्राहकों की डिमांड पर ही नर्सरी में पौधे उगाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे यहां क्वालिटी के पौधे उगाए जाते हैं। इस लिए महंगा पड़ता है। सड़क की पटरी पर नर्सरी का संचालन कर रहे लोगों के पास जमीन नहीं है। इसलिए वे कोलकाता, बिहार, लखनऊ और वाराणसी की मंडियों से पौधे मंगाकर जीविकोपार्जन करते हैं। जिले में होता है नर्सरी उद्योग से पांच करोड़ का कारोबार नर्सरी संचालक प्रमोद कुमार ने बताया कि जिले में नर्सरी उद्योग का सालाना पांच करोड़ का कारोबार होता है। जिले में नौ बड़ी नर्सरी हैं। शहर से बाहर हाफिजपुर, गाजीपुर रोड पर समेंदा वर्कशाप के पास, जगरनाथ सराय रानी की सराय चेकपोस्ट, रानी की सराय थाना, कोटवा में नर्सरी से पौधे की अधिक डिमांड रहती है। ये नर्सरी संचालक खुद पौधे तैयार करते हैं। इसके अलावा शहर में नगरपालिका के पास सड़क किनारे भी बिहार से आए 15 से अधिक लोगों की छोटी नर्सरी हैं। इनके पास जमीन नहीं है। इस लिए ये पौधे उगाने के बजाय कोलकोता, वाराणसी, बिहार, लखनऊ की मंडियों से तरह-तरह के पौधे मंगाते हैं। उन्होंने बताया कि सड़कों के विकास के चलते हरे-भरे पेड़ कटते जा रहे हैं। पर्यावरण पर संकट मड़रा रहा है। ऐसे में हर कोई स्वच्छ पर्यावरण के लिए पौधा लगाना चाहता है। घरों के अंदर और बाहर भी लोग गमलों में पौधे लगा रहे हैं। इसकी वजह से नर्सरी उद्योग को बढ़ावा मिला है। पूरे जिले में नर्सरी उद्योग से सालाना पांच करोड़ का कारोबार होता है। इस उद्योग में रोजगार की अधिक संभावनाएं हैं। पौधों को बचाए रखना बड़ी चुनौती नर्सरी संचालक विट्टू ने बताया कि बिहार से आकर उनके बाबा महाबीर भगत ने आजमगढ़ शहर में 1980 में नर्सरी व्यवसाय अपनाया। बिना जमीन के ही इस उद्योग से जुड़े महाबीर भगत ने नगर पालिका के पास सड़क किनारे नर्सरी का बोर्ड लगाया। जमीन के अभाव में पौधे उगा नहीं सकते थे। इसलिए कोलकाता, वाराणसी, बिहार और लखनऊ की मंडी से पौधे मंगाकर नर्सरी में सजाया। उस समय जिले में बड़े नर्सरी उद्योग नहीं थे। पौधों की डिमांड भी अधिक रहती थी। महाबीर भगत के निधन के बाद मेरे पिता ने नर्सरी संभाली। वर्तमान में मैं स्वयं नर्सरी का संचालन कर रहा हूं। जिले में मंडी न होने से आज भी बाहर से पौधे मंगाने पड़ते हैं। रास्ते में पौधों के टूट जाने पर नुकसान सहना पड़ता है। नर्सरी में पौधों का स्टाक करने पर जिंदा रखना सबसे बड़ी चुनौती है। गर्मी में बाल्टी के पानी से सुबह-शाम सिंचाई करनी पड़ती है। बारिश के समय में भी पौधों को जिंदा रखना चुनौती है। बंदरों के उत्पात से नष्ट हो जाते हैं पौधे नर्सरी संचालक वशिष्ठ भगत ने बताया कि शहर में बंदरों के उत्पात से पौधे नष्ट हो जाते हैं। पौधों के शौकीन लोग बंदरों से परेशान होकर खरीद कम रहे हैं। हर कोई अपने घर, बालकनी, छत को हरा-भरा देखना चाहता है। खूबसूरत पौधों और रंग-बिरंगे फूलों से लोग घर को सजाते हैं। घरों के अंदर और बाहर लगने वालों में प्रमुख रूप से स्नेक प्लांट, रबड़ प्लांट, डाइफन, आरिका पाम, एग्लोनिया, बेसिया, चाइला डाल सहित 150 तरह के पौधे शामिल हैं। 80 से डेढ़ सौ रुपये मूल्य तक के ये पौधे लोग घरों की सुंदरता बढ़ाने के लिए खरीदते हैं। पौधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं। ग्राहकों की शिकायत रहती है कि बंदरों से उनके पौधे नष्ट हो जा रहे हैं। बंदर गमला तक तोड़ देते हैं। ऐसे में शहरी ग्राहकों का पौधों से मोहभंग होता जा रहा है। कुछ लोग जाली लगाकर पौधों से घरों को सजा रहे हैं, लेकिन यह काफी महंगा पड़ता है। नर्सरी संचालकों को मिले सरकारी अनुदान नर्सरी संचालक दिलीप भगत ने बताया कि नर्सरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी अनुदान की सुविधा मिलनी चाहिए। साथ ही आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण भी देना चाहिए। किसानों की तरह नर्सरी संचालकों को अनुदान मिले, तो उनका धंधा और बेहतर हो सकता है। मौसम में होने वाले परिवर्तन के चलते नर्सरी उद्योग को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गर्मी में सिंचाई का प्रबंधन सही तरीके से नहीं हो पाता है। अधिक तापमान में मिट्टी जल्दी सूख जाती है। पौधे मुरझा जाते हैं। शीतलहर में पाला पड़ने पर भी पौधों को नुकसान होता है। ऐसे में बचाव के लिए पॉली हाउस और शेड नेट की जरूरत पड़ती है। छोटे नर्सरी संचालकों के लिए यह महंगा पड़ता है। उन्होंने बताया कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पानी की बचत होती है। पौधों को आवश्यकता के अनुसार नमी मिलती है। इससे उनकी गुणवत्ता बनी रहती है। खराब होने की आशंका कम रहती है। अगर स्थानीय स्तर पर कृषि विभाग की ओर से सारे उपकरण मुहैया कराए जाएं, तो काफी मदद मिलेगी। सरकारी विभाग प्राइवेट नर्सरी से नहीं खरीदते हैं पौधे रानी की सराय के कोटवां स्थित नर्सरी संचालक बृजेश यादव ने बताया कि सरकारी स्तर पर नर्सरी संचालकों की उपेक्षा की जाती है। सरकारी विभाग पौधरोपण अभियान के दौरान पहले उनकी नर्सरी से पौधे खरीदते थे, मगर अब उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है। इसकी वजह से नर्सरी उद्योग प्रभावित हो रहा है। आम तौर पर सामान्य लोग ही पौधे खरीदने आते हैं। सरकार द्वारा खरीद होती तो उचित मूल्य भी मिलता। नर्सरी मे मिलने वाले बीज पर भी कोई सब्सिडी नहीं मिलती। पौधशालाओं के लिए कोई प्रोत्साहन भी नहीं है। जबकि पौधों को तैयार करने में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। जिस तरह से गेहूं, धान, गन्ना आदि फसलों के लिए वैज्ञानिक अक्सर प्रशिक्षण देते रहते हैं, उस तरह से नर्सरी संचालकों को प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। नर्सरी संचालकों की बात पुरखों ने बिहार से आकर जिले में नर्सरी का व्यवसाय शुरू किया। तीसरी पीढ़ी नर्सरी से जीविका चला रही है। बाहर से पौधे मंगाने पड़ते हैं। इसकी वजह से नुकसान भी होता है। -बिट्टू बिहारी नर्सरी में गर्मी के मौसम में पौधों को जिंदा रखना सबसे बड़ी चुनौती है। पौधों की सिचाई के लिए पानी का संकट झेलना पड़ता है। बाल्टी से पानी लाकर पौधों को बचाना पड़ता है। -रंजीत गर्मी के मौसम में पौधों की डिमांड कम हो गई है। बारिश का इंतजार किया जा रहा है। बारिश में फलदार पौधों की बिक्री होने की संभावना है। -वशिष्ट भगत जिले की नर्सरी में क्वालिटी के कलमी, बीजू पौधे की व्यवस्था होनी चाहिए। पौधे उपलब्ध होने पर नर्सरी उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है। -विष्णुदेव भगत नर्सरी के लिए हम जैसे लोगों के पास खेती नहीं है। कोलकोता, बिहार, लखनऊ से पौधे मंगाते हैं। बिक्री होने तक पौधों की सेवा में लगे रहते हैं,तब कहीं जाकर महीने में छह हजार रुपये की बचत हो पाती है। -मिथुन चक्रवर्ती नर्सरी उद्योग के लिए शासन-प्रशासन को युवाओं को प्रशिक्षण देना चाहिए। पौधों पर शोध होते रहना चाहिए। पर्यावरण के लिए पौधरोपण जरूरी भी है। -महेश कुमार राष्ट्रीय बागवानी विकास मिशन के तहत नर्सरी शुरू करने के लिए किसानों को अधिक से अधिक सब्सिडी दिया जाए। नर्सरी उद्योग से युवाओं को रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। -गिरीश कुमार घरों से लेकर सरकारी कार्यालयों को सजाने वाले खूबसूरत पौधों को बचाने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। -दिलीप भगत पौधे न घर की सुंदरता बढ़ाते हैं,बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। इसके लिए जिले में जागरूकता अभियान की जरूरत है। -दीपचंद्र भगत जिले में नर्सरी उद्योग का विकास इधर अधिक हुआ है। कई मुश्किलें भी हैं। सरकारी स्तर पर उनकी नर्सरी से पौधों की खरीद नहीं की जाती है। इसकी वजह से वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है। -बृजेश यादव शहर में बंदरों के उत्पात से घरों में पौधे लगाने वालों का शौक पूरा नहीं हो पा रहा है। बंदर पौधे ही नहीं,बल्कि गमला भी तोड़ देते हैं। -प्रमोद कुमार मौर्य अपने बल पर कई बीघे में नर्सरी उद्योग को विकसित किया हूं। अन्य प्रदेशों में भी पौधों की आपूर्ति होती है। उद्यान विभाग लोगों को जागरूक करने में कोताही बरतता है। -बंशगोपाल सिंह सुझाव और शिकायतें शहर में बंदरों के उत्पात से मुक्ति दिलाई जाए, ताकि लोग अपने घरों के बालकनी और आंगन में पौधों की सजावट से सुंदरता को बढ़ा सकें। नर्सरी उद्योग से जुड़े युवाओं को वैज्ञानिक प्रशिक्षण दिया जाए। जिससे अधिक से अधिक लोग इस उद्योग से जुड़ सकें। प्राइवेट नसरी से सरकारी स्तर पर पौधों की खरीद की जाए। खासकर पौधरोपण अभियान के दौरान पौधों की खरीद को बढ़ावा दिया जाए। नर्सरी उद्योग के लिए बैंकों से लोन दिया जाए। नर्सरी में पौधों की सिंचाई के लिए सब्सिडी पर यंत्र उपलब्ध कराया जाए। नर्सरी संचालकों की ओर से अगर पर्यावरण पर कार्यक्रम हो तो अधिकारी जागरूकता के लिए जरूर शामिल हों। शिकायतें : शहर में छोटे नर्सरी संचालकों को पौधों को जिंदा रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बाल्टी से पौधों को पानी देना पड़ता है। बाहर की मंडी से पौधे मंगाने पर टूट जाते हैं। इससे छोटे नर्सरी संचालकों को काफी नुकसान सहना पड़ता है। जिले में बड़ी नर्सरी से सरकारी स्तर पर पौधों की खरीद नहीं की जाती है। इसकी वजह से उन्हें वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है। सरकारी नर्सरी में प्राइवेट नर्सरी संचालकों की डिमांड के अनुसार पौधे नहीं उगाए जाते हैं। ऐसे में उन्हें बाहर से पौधे मंगाने पड़ते हैं। जो छोटे नर्सरी संचालक अपनी जमीन पर पौधे उगाते हैं,उन्हें सरकार की ओर से किसी तरह की सब्सिडी नहीं दी जाती है। बोले जिम्मेदार : लोगों को पौधरोपण और नर्सरी तैयार करने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। बागवानी के लिए विशेष कार्यशाला भी आयोजित की जाती है। नर्सरी संचालकों के लिए अलग से प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी। इसके साथ ही पौधरोपण अभियान के दौरान भी जरूरत के अनुसार उनसे पौधों की खरीद करने का भी प्रस्ताव भेजा जाएगा। हरिशंकर राम ,जिला उद्यान अधिकारी
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