बोले प्रयागराज : औद्योगिक इकाइयां लगीं मगर नहीं मिला रोजगार, इलाके के हिस्से धूल, धुआं और धोखे का उपहार
Gangapar News - बारा-शंकरगढ़ क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तेजी से बढ़ी है, लेकिन स्थानीय युवाओं को रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर जाना पड़ रहा है। बेरोजगारी, महंगाई और प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही...
बारा-शंकरगढ़ बारा तहसील के विकास खंड शंकरगढ़ क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों को लगाने का सिलसिला हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है। क्षेत्र में कई औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं, कुछ की कवायद चल रही है। इसके बावजूद स्थानीय युवाओं को रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर रुख करना पड़ रहा है। बढ़ते कारखानों के बीच गांवों में बेरोज़गारी, महंगाई और प्रदूषण की चादर और गहरी होती जा रही है। यहां के लोगों को सिर्फ धूल, धुआं, धोखा और दुर्घटना का उपहार मिला है। इससे यहां के युवाओं, किसानों और मजदूरों में आक्रोश है। पिछले 10 वर्षों में बारा-शंकरगढ़ क्षेत्र में प्रयागराज पावर जनरेशन कंपनी, अल्ट्राटेक सीमेंट, जेके सीमेंट, वेन्कीज़ इंडिया, सिलिका सैंड प्रोसेसिंग, सोलर संयंत्र, डिस्टलरी प्लांट और अन्य इकाइयों ने क़रीब 4500 प्रत्यक्ष और 7000 अप्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न किए हैं लेकिन श्रम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इनमें से सिर्फ 17% पद ही स्थानीय युवाओं को मिले।
बाकी के पदों पर दिल्ली, मुंबई, झारखंड, पंजाब आदि से आए कर्मचारी तैनात हैं। स्थानीय युवाओं को सुरक्षा गार्ड, हेल्पर, सफाई या दिहाड़ी मज़दूर जैसी भूमिकाओं में समेट दिया गया है, जिनसे उनके जीवन में स्थिरता या उन्नति की कोई ठोस संभावना नहीं बन पाती। क्षेत्र के मिश्रा पुरवा में स्थित 1980 मेगावाट का तापीय विद्युत गृह भी क्षेत्र के रोजगार की समस्या को दूर नहीं कर पाया। वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की तरफ से बेरुई, बेमरा, जोरवट, कपारी, खान सेमरा के 817 किसानों की 725.788 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण तापीय विद्युत गृह की स्थापना के लिए किया गया था, जिसमें लगभग साढ़े छियालीस करोड़ रुपये का किसानों को भुगतान दिया गया था। बेरूई, खान सेमरा, बेमरा, ज़ोरबट का सवा लाख बीघा तथा कपारी का ढाई लाख बीघा का मुआवजा दिया गया था। जब 2009 में कंपनी का निर्माण प्रारंभ हुआ तो पांचों गांव से पांच-पांच लोगों को 133 रुपये दिहाड़ी के हिसाब से केके सिक्योरिटी गार्ड सर्विस में रखा गया। सबको बताया गया कि नौकरी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, पानी आदि पूरी सुविधा कंपनी देगी। धीरे धीरे लगभग 200 प्रभावित किसानों के पाल्यों को दैनिक भुगतान पर रखा भी गया। उस समय लोगों में आस जगी कि अब हमारा गांव भी चमकेगा, रोजगार भी मिलेगा लेकिन मिला सिर्फ धोखा। दिहाड़ी करने वाले किसान मजदूरों का वर्तमान में आलम यह है कि कुछ 60 साल बाद तो कुछ को विभिन्न कारणों से निकाला जा चुका है। कुछ मृत हो चुके हैं। 817 प्रभावित किसानों में से लगभग 150 प्रभावित किसानों/उनके पाल्यों को खानापूरी के लिए दैनिक भुगतान पर रखा गया है। छह दिन काम कराके एक दिन बैठा दिया जाता है। उन्हें 26 दिन की पगार मिलती है। शेष किसान आज भी इस पावर प्लांट में रोजगार की आस लगाए बैठे हैं। इतना बड़ा पावर प्लांट भी क्षेत्र को समुचित रोजगार नहीं दे पाया जिससे किसान मायूस हैं। पावर प्लांट के लिए अधिग्रहीत भूमि पर लगा सीमेंट प्लांट शंकरगढ़ तापीय विद्युत गृह की स्थापना के लिए 725.788 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इसमें से जेपी ग्रुप ने 30 जून 2017 को 22.07 हेक्टेयर जमीन अल्ट्राटेक सीमेंट कंपनी को बेच दी। मजे की बात यह है कि जमीन बेचने के एक महीने बाद प्रयागराज पावर जनरेशन कंपनी (जेपी ग्रुप) ने 29 जुलाई 2017 को 22.07 हेक्टेयर जमीन बेचने की अनुमति उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन से मांगी थी। दो महीने बाद उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के मुख्य अभियंता एएच खान ने चार सितंबर 2017 को प्रयागराज पावर जनरेशन कंपनी को पत्र भेजकर पावर प्लांट की जमीन को किसी अन्य इकाई को बेचने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बावजूद जमीन किस नियम के तहत बेची गई यह एक गंभीर प्रश्न है। इन जमीनों का नामांतरण होने में दो साल लगे। तहसील प्रशासन ने सचिव उत्तर प्रदेश सरकार के पत्र का हवाला देकर इन जमीनों का नामांतरण अल्ट्राटेक के नाम 2019 में कर दिया। यह बिक्री किस नियम के तहत हुई किस अधिकारी के आदेश पर हुई यह जांच का विषय है। बेरूई गांव निवासी कई लोग बताते हैं कि हम लोगों की जमीन पावर प्लांट के लिए ली गई थी लेकिन गांव के पास ही सीमेंट प्लांट बना दिया जिससे हम लोग प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। हम लोगों को पता होता कि मेरी जमीनों में पावर प्लांट नहीं सीमेंट प्लांट लगाया जाता तो हम लोग जमीन न देते। अब हम लोग अपने को ठगा महसूस करते हैं। किसानों की जमीन पर लगे सीमेंट प्लांट में किसानों या स्थानीय लोगों को रोजगार देने की कोई पॉलिसी नहीं है। पूरा काम ठेकेदारी प्रथा से होता है। ठेकेदार अपने वर्कर को रखने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिलना टेढ़ी खीर हो गया है। नहीं बनी रिफायनरी, लोग मायूस क्षेत्र में रिफाइनरी के नाम पर अधिग्रहीत 3100 एकड़ ज़मीन 25 वर्षों से बेकार हो रही है। शंकरगढ़ क्षेत्र में लगभग 25 साल पहले 12 गांवों के 1205 किसानों की लगभग 3100 एकड़ जमीनों का अधिग्रहण रिफायनरी लगाने के लिए किया गया था। 25 साल बाद भी उक्त जमीनों पर रिफाइनरी नहीं लग सकी है जिससे क्षेत्रीय लोगों में मायूसी है। रिफायनरी की कुछ जमीनों पर अवैध अतिक्रमण तो कुछ जगह अवैध खनन भी बे रोक टोक धड़ल्ले से जारी है। रिफाइनरी का मुद्दा सर्वोच्च सदन में भी उठ चुका है। 25 साल पहले किसानों ने रोजगार के लालच में सस्ते दामों पर जमीन देने को राजी हो गए थे लेकिन अब वो अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। अपनी जमीनों से जहां किसान वंचित हो गया वहीं रोजगार न मिलने से वे मायूस हैं। महिलाओं की भागीदारी : आंकड़ों से भी नीचे शंकरगढ़ क्षेत्र में स्थापित कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 5% से भी कम है जो चिंता का विषय है। यहां महिलाओं की सुरक्षा और परिवहन की कमी विशेष तौर पर देखी जा सकती है। क्षेत्र में कई उद्योग लगने के बावजूद भी स्थानीय महिलाओं की भागीदारी न के बराबर है जो बेरोजगारी का मुख्य कारण है। अगर किसी क्षेत्र में दो चार महिला लगी भी हैं तो उनके कार्यस्थलों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव साफ देखा जा सकता है। प्रदूषण और महंगाई ने बढ़ाईं मुश्किलें शंकरगढ़ क्षेत्र में जहां पिछले 10 सालों से लगातार महंगाई का आंकड़ा बढ़ा है, वहीं कंपनियों के कारण बढ़ते यातायात दबाव की वजह से दुर्घटनाओं के आंकड़े में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। जहां इन उद्योगों से किराया और व्यापार में मांग बढ़ी, वहीं महंगाई औसतन 8% सालाना बढ़ी है। तापीय संयंत्रों की राख, सीमेंट प्लांट की धूल और ट्रकों के धुएं ने गांवों को बीमारियों की ओर धकेल दिया है। सीमेंट प्लांट से बंधी थी आस, अभी तक मायूसी शंकरगढ़ क्षेत्र के लेदर के पास लगे 20 लाख टन उत्पादन क्षमता के जेके सीमेंट प्लांट से स्थानीय लोगों को कुछ उम्मीद बंधी थी लेकिन वह भी परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है। यहां पर सड़कों के दोनों ओर बड़ी-बड़ी गाड़ियां खड़ी रहती हैं जिससे दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है। इसके अलावा स्थानीय लोगों को रोजगार या नौकरी के नाम पर खानापूरी की जा रही है। कुछ स्थानीय लोगों ने इस प्लांट में प्लांट की जमीन के अंदर सरकारी जमीन, चकरोड, बंजर, नवीन परती आदि जमीनों का भी मुद्दा उठाया था। लेकिन वो भी किसी कोने में दब गया। शिकायतें - जमीन हमारी तो विकास भी हमारा ही हो - भर्तियों में स्थानीय युवाओं को नहीं मिल रही वरीयता - खानापूरी के लिए दिहाड़ी पर काम करने का मिला मौका - स्थानीय लोगों को सिर्फ प्रदूषण और बीमारियां ही मिलीं - स्थानीय युवाओं को सुरक्षा गार्ड, हेल्पर, सफाई या दिहाड़ी मज़दूर जैसी भूमिकाओं में समेट दिया गया - शासन ने भी स्थानीयता को वरीयता में नहीं दिखाई कोई रुचि सुझाव -विशेषज्ञ और स्थानीय संगठन मानते हैं कि अब ज़रूरत है तीनतरफा साझेदारी की -स्थानीय युवाओं के लिए 50 फीसदी पद आरक्षित करें -महिलाओं के लिए रात्रिकालीन परिवहन व क्रेच सुविधा। -छह माह के तकनीकी कोर्स चलाएं सूक्ष्म उद्योग जैसे राख अपसायक्लिंग, सौर उपकरण असेंबली को बढ़ावा दें -आईटीआई और टेक्निकल कोर्स शुरू हों -पंचायतों व समाजसेवियों को रोजगार नीति में भागीदार बनाया जाए। बोले जिम्मेदार औद्योगिक इकाइयां खुली हैं वो निजी संस्थान हैं। नौकरी देने की उनकी अपनी शर्ते हैं। कई जगह अच्छी तकनीक की मशीनें हैं तो 100 आदमी का काम 10 लोगों से हो रहा है। इसमें हमारा क्या हस्तक्षेप हो सकता है। रही बात वेतन की तो निश्चित तौर पर न्यूनतम मजदूरी की दर तय है। इसके लिए श्रम विभाग अपने स्तर पर काम करता ही है। शरद टंडन, जीएम, डीआईसी कंपनी एक्ट के तहत रोजगार देने का अधिकार कंपनी का है फिर भी वार्ता की जाएगी। क्षेत्रीय लोगों को रोजगार देने का यदि उन्होंने कोई प्रावधान बनाया है तो उसका पालन होना चाहिए। संदीप तिवारी, उप जिलाधिकारी, बारा ----------------------- हमारी भी सुनें क्षेत्र में इतने बड़े पावर प्लांट के होते हुए क्षेत्र के युवा और तकनीकी कार्यों में दक्ष क्षेत्रवासी रोज़गार के लिए पलायन कर रहें हैं जबकि पावर प्लांट में इतनी क्षमता है कि अकेले क्षेत्र के मजदूर और सुयोग्य क्षेत्रवासियों को पावर प्लांट में उचित स्थान पर समायोजित कर सकता हैं। -अरुण कुमार सिंह, निवर्तमान प्रधान एवं पूर्व बीडीसी ज़ोरवट, शंकरगढ़ हमारे परिवार में लगभग डेढ़ सौ बीघा जमीन अधिग्रहित की गई थी जिसमें हमारे परिवार से सिर्फ दो लोगों को ही ठेका बेस पर नौकरी दी गई है बल्कि और लोगों को नौकरी देने में आनाकानी किया गया है जिसको लेकर न्यायालय में मामला भी विचाराधीन है। बल्कि हमारे गांव के दर्जनों लोग बाहर नौकरी कर रहे हैं घर इस क्षेत्र में कई प्लांट लगे हैं उसके बावजूद हम लोग पढ़ लिखकर भी बेकार घूम रहे हैं। -विनय कुमार सिंह, किसान, बेमरा शंकरगढ़ जो भी प्लांट लगाए जाते हैं कहीं न कहीं समाज को उसकी जरूरत होती है। इस क्षेत्र में कई प्लांट लगे हैं और प्लांट लगने से इस क्षेत्र का विकास हुआ है। बहुत से प्रभावित गांवों के लोगो को रोजगार भी दिए गए हैं। परंतु और भी रोजगार देने की आवश्यकता है। बल्कि इस क्षेत्र के कई लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं एवं इसे अपना व्यापार भी बढ़ा रहे हैं। -राम बाबू सिंह, मंडल अध्यक्ष प्रयागराज भारतीय किसान यूनियन भानू, कपारी बहुत खुशी की बात है कि इस क्षेत्र में कई औद्योगिक प्लांट लगे हैं परंतु दुख इस बात का है कि स्थानीय स्तर पर सही तरीके से लोगों को रोजगार भी नहीं दिए गए बल्कि जिसको दिया गया है उससे सिर्फ मजदूरी ही कराया जाता है। -राजकुमार सिंह, बिहरिया, शंकरगढ़ शंकरगढ़ क्षेत्र में पावर प्लांट, सीमेंट प्लांट एवं सौर ऊर्जा प्लांट सहित कई छोटी-छोटी इकाइयां लगी हुई है। उसके बावजूद भी इस क्षेत्र के युवा दो जून की रोटी कमाने के लिए बाहर का रास्ता देख रहे हैं। इन कंपनियों को चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा प्रभावित क्षेत्र के युवाओं एवं जरूरतमंद लोगों को नौकरी दे। -कैलाश नाथ सिंह, लखनपुर शंकरगढ़ प्रदेश सरकार एवं केंद्र सरकार बधाई के पात्र हैं। जो इस क्षेत्र में कई औद्योगिक इकाई लगवाया है एवं आगे भी और कई औद्योगिक कार्य प्रस्तावित है परंतु क्षेत्र के युवा रोजगार को लेकर परेशान है क्षेत्र इस समय भुखमरी के कगार पर है। लोग बाहर नौकरी करने के लिए विवश हैं। स्थानीय औद्योगिक इकाइयां स्थानीय लोगों को पहली प्राथमिकता दें। -शक्तिमान पाल, एडवोकेट, शिवराजपुर, शंकरगढ़ शंकरगढ़ एवं आसपास के क्षेत्र के बच्चे पढ़ लिखकर डिप्लोमा लेकर दूसरे अन्य शहरों एवं प्रदेशों में जा रहे हैं। जहां रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। डिग्री को प्राप्त करने के बाद उनको सही तरीके से मानदेय भी नही मिलता। जबकि हमारे शंकरगढ के ही क्षेत्र में कई औद्योगिक प्लांट स्थापित हैं। परंतु स्थानीय युवकों को रोजगार नहीं दिया जा रहा है। -सुशील सिंह, प्रयाग विभाग सुरक्षा प्रमुख, विहिप शंकरगढ़ बारा क्षेत्र में जब कंपनियां स्थापित हो रही थीं तो उस समय शासन प्रशासन एवं कंपनियों को लोगों ने यह स्थानीय लोगों को अस्वस्थ किया था कि सर्वप्रथम इस क्षेत्र का विकास होगा साथ ही नवजवानों को रोजगार दिया जाएगा एवं इस क्षेत्र की हर समस्या को शासन प्रशासन एवं स्थापित कंपनियों से निराकरण करवाएगी परंतु यहां पर बिल्कुल अलग है। आज भी युवक दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। -पुष्पराज सिंह, प्रधान संघ, अध्यक्ष शंकरगढ़
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