बोले कटिहार : स्कूलों में अन्य भाषाओं की तरह बांग्ला की भी हो पढ़ाई
कटिहार में दशकों से रह रहे बंगाली समाज के लोग अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए चिंतित हैं। सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होने से नई पीढ़ी इस भाषा से दूर होती जा रही है। समुदाय...
दशकों से कटिहार में रह रहे बंगाली समाज के लोग अपनी नई पीढ़ी को बंग्ला भाषा और संस्कृति से जोड़े रखने को लेकर चिंतित हैं। सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होने से यहां का बंगाली समुदाय अपनी विरासत बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। कुछ दशक पहले कटिहार के निजी विद्यालयों में बंग्ला भाषा की पढ़ाई होती थी लेकिन अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। बांग्ला अकादमी भी आज अंतिम सांसें गिन रहा है। बंगाली समुदाय के लोगों को अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति और विरासत को बचाये रखने के लिए सरकारी सहयोग मिलने का इंतजार है। सुविधा नहीं मिलने के कारण बंगाली समाज के लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
15 हजार जनसंख्या है बंगाली समाज की निगम क्षेत्र में
01 सौ 25 वर्षों से रहते हैं कटिहार में बंगाली समाज के लोग
03 सौ से ज्यादा परिवार निगम क्षेत्र में कर रहे गुजर-बसर
कटिहार जिले के गठन के पहले से ही कटिहार में बड़ी संख्या में बंगाली समुदाय के लोगों की बड़ी आबादी निवास करती थी। उनकी पीढ़ियां यहीं की होकर रह गई हैं। कटिहार की मिट्टी में रच बस जाने के बाद भी बंगाली समाज के लोग अपनी संस्कृति और विरासत को बचाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। साल 2000 में बिहार के विभाजन के बाद से यहां भाषाई अल्पसंख्यक बन चुके बंगाली समुदाय के लोग अपनी नई पीढ़ी को बंगाली जुबान और तहजीब से जोड़े रखने की जी तोड़ कोशिश करते रहते हैं। इसके लिए समिति बनाकर अपने स्तर पर बांग्ला भाषा को समुदाय की जड़ों से जोड़ने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि सरकारी स्तर पर स्कूलों में विषय के तौर पर बांग्ला भाषा की पढ़ाई और उसके शिक्षकों की बहाली नहीं होने से समुदाय के लोग चिंतित हैं। सरकार से बांग्ला भाषा को बढ़ावा देने की मांग कर रहे हैं।
बांग्लाभाषियों को किया जा रहा नजरअंदाज:
बिहार बंगाली समिति के मेंबर बासी दत्ता ने बताया कि बिहार में बांग्ला एक अल्पसंख्यक भाषा है। इसके संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार की है। लेकिन आज यहां तेजी से बांग्ला स्कूल बंद हो रहे हैं। बांग्ला भाषा में पाठ्य पुस्तकों की छपाई नहीं हो रही है। विद्यालयों में बांग्ला भाषा के शिक्षक नहीं हैं। स्कूल-कॉलेजों में मातृभाषा के तौर पर भी बांग्ला विषय की पढ़ाई नहीं होती है। दुख की बात है कि यहां बांग्लाभाषियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। हमारी भाषा समाप्त हो रही है। ये समस्या तो यहां रहने वाले लगभग 12 हजार पुश्तैनी बंगाली समाज के लोगों की है। इसके अलावा कमोबेश इतनी ही संख्या उन शरणार्थी बंगालियों की है, जिन्हें 1971 के युद्ध के बाद बिहार सरकार ने वैध तौर पर यहां बसाया था। लेकिन ये लोग आज भी यहां पराये ही बने हुए हैं। इनकी अधिक संख्या कटिहार, बेतिया, मोतिहारी, पुर्णिया, गोपालगंज, भागलपुर, दरभंगा, मुंगेर तथा कुछ संख्या में बांका और सहरसा आदि जिलों में है। उन्हें आजतक किसी भी प्रकार का अधिवास प्रमाणपत्र नहीं दिया गया है। वे दशकों से बिहार के निवासी होने के बावजूद इसका कागजी प्रमाण देने में असमर्थ हैं। जब सरकार ने इन बंगालियों को वैध रूप से शरणार्थी के तौर पर रहने की अनुमति दी है तो उन्हें किसी भी तरह का प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा रहा है। ये एक बड़ी समस्या है।
हमारे समुदाय में ही घट रहा है बांग्ला प्रेम :
सन ऑफ इंडिया क्लब के अध्यक्ष बासी दत्ता ने बताया कि किसी समाज की पहचान उसकी भाषा से ही होती है। हम अपनी भाषा से बेहद प्रेम करते हैं लेकिन हमारे बच्चे अपनी मातृभाषा नहीं पढ़ पाने के कारण उससे दूर होते चले जा रहे हैं। बच्चों के साथ उनके अभिभावक भी इसे लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। कटिहार में निजी स्तर पर तीन विद्यालय संचालित होता था जो पूरे बंगला मीडियम से पढ़ाई होती थी जिसमें आनंद पाठशाला, दुर्गास्थान चौक, राम कृष्ण मिशन, हरदयाल टॉकीज रोड, नेताजी विद्यामंदिर, रेलवे कॉलोनी, ओटी पाड़ा मुख्य था। इन विद्यालय में बंगला में शिक्षा देने के बावजूद बच्चों की संख्या लगातार कम हो रही थी। अभिभावक ही कहते हैं कि बांग्ला पढ़कर क्या होगा। हालांकि लोग ये बात समझ नहीं पा रहे हैं कि जिस मां की पेट से जन्म लिया है उसकी भाषा भी सीखना जरूरी है। यहीं कारण है कि आज हमारे बच्चे अपनी संस्कृति से दूर होते चले जा रहे हैं। मजबूरन अब इन विद्यालय में सीबीएससी बोर्ड से इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई होने लगी । राम कृष्ण मिशन स्कूल में भाषा के तौर पर बंगला विषय की पढ़ाई होती है ।
जिले के स्कूलों में बांग्ला भाषा की नहीं होती है पढ़ाई, कहां पढ़ें बच्चे :
नौकरी के लिए पश्चिम बंगाल से कटिहार आए कई लोग रिटायरमेंट के बाद भी यहीं के होकर रह गये। कहते हैं कि यहां सभी धर्म और जाति के लोगों के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहते हैं। सामाजिक स्तर पर उन्हें जरा भी अहसास नहीं होता है कि वह किसी दूसरे राज्य से आकर यहां रह रहे हैं। हालांकि अपनी भाषा और संस्कृति को संजोये रखने में तकनीकी दिक्कत महसूस करते हैं। शिकायत भरे लहजे में बताते हैं कि यहां सरकारी स्तर पर बांग्ला भाषा को बढ़ावा देने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। बंगाली समाज द्वारा संचालित चंद स्कूलों को छोड़ दें तो यहां सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होती है। इसके अलावा बांग्ला विषय के शिक्षकों की नियुक्ति भी नहीं की जाती है। इस कारण चाहकर भी बंगाली समाज के बच्चे बांग्ला भाषा की शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं। जबकि सभी विद्यालयों में छात्रों को अपनी मातृभाषा चुनने का अधिकार है लेकिन शिक्षकों की बहाली नहीं होने के कारण विद्यालय प्रबंधन हाथ खड़े कर देता है। मजबूरन किसी और विषय को चुनना पड़ता है। सरकारी तौर पर व्यवस्था नहीं होने के कारण हमारी बिहार बंगाली समिति निजी स्तर पर बंगाली समाज के बच्चों के लिए अलग से बांग्ला भाषा की शिक्षा की व्यवस्था करती है लेकिन ये पर्याप्त नहीं है। आज हमारे बच्चे अपनी भाषा और साहित्य नहीं पढ़ पा रहे हैं। सभी सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
दुर्गा पूजा में होता है आयोजन :
सन ऑफ इंडिया क्लब के अध्यक्ष बासी दत्ता ने बताया कि अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति और विरासत को अपनी नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिये 2 नंबर कॉलोनी स्थित सन ऑफ इंडिया क्लब में प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा मेले का भी आयोजन किया जाता है। यह क्लब 1972 में स्थापित हुआ क्लब के मेंबर पप्पू चक्रवर्ती, विप्लव दास, उत्तम दास, राणा घोष, बिट्टू पाल, मंगल जायसवाल आदि लोगों ने बताया कि पूजा और संस्कृति के मामले में सन ऑफ इंडिया क्लब जिले भर में एक अलग ही स्थान रखता है। सोशल वर्क में भी उनकी सहभागिता बढ़-चढ़कर रहती है जैसे बाढ़ पीड़ित गरीब लड़कियों की शादी आर्थिक मदद सामाजिक मुद्दे पर मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं बंगाली कल्चर को अभी तक पीढ़ी दर पीढ़ी बनाकर रखे हुए हैं। यहां सदियों में बंगाली समाज के लोग रह रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहारी और बंगालियों ने मिलकर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया है।
शिकायतें
1. राज्य के सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होती है, जिससे इसका विकास नहीं हो रहा
2. सरकारी स्कूलों में बांग्ला शिक्षकों की बहाली नहीं होने से परेशानी
3. सरकारी स्तर पर बांग्ला पाठ्य-पुस्तकों की छपाई की नहीं है व्यवस्था
4. शरणार्थी बंगालियों को जाति-प्रमाण पत्र बनाने में होती है दिक्कत
5. बिहार राज्य बांग्ला अकादमी के निष्क्रिय होने से भाषा को बढ़ावा देना बनी चुनौती
सुझाव
1. सरकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था की जाए
2. सरकारी विद्यालयों में बांग्ला शिक्षकों की उचित संख्या में हो बहाली
3. सरकारी स्तर पर बांग्ला भाषा की पुस्तकों का हो प्रकाशन
4. शरणार्थी बंगालियों को जाति-प्रमाण पत्र बनाने की मिले सुविधा
5. बिहार राज्य बांग्ला अकादमी को सक्रिय कर इसका संचालन किया जाए
इनकी भी सुनें
बांग्ला भाषा नहीं पढ़ पाने के कारण हमारे बच्चे अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। उन्हें जैसा आकार दिया जायेगा वह वैसे ही बनेंगे। इसके लिए माता-पिता को ही प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
बासी दत्ता
आज यहां के स्कूल-कॉलेजों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं होने से हमारे बच्चे विकल्प के तौर पर भी अपनी मातृभाषा को नहीं पढ़ पा रहे हैं। वहीं शिक्षक भी नहीं हैं तो चाहकर भी बांग्ला भाषा सीखने में असमर्थ हैं।
कृपेश
स्कूलों में बांग्ला शिक्षकों की बहाली नहीं होने से यहां के बंगाली समाज के लोगों को अपनी मातृभाषा की शिक्षा मिलने में परेशानी होने के साथ-साथ नौकरी के अवसर से भी वंचित रह जाते हैं। अगर सरकारी स्तर पर बहाली की जाये तो इससे शिक्षा व नौकरी दोनों का हल निकल सकता है।
बिमल पाल
यहां सरकारी स्तर पर बांग्ला भाषा को बढ़ावा देने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। बंगाली समाज द्वारा संचालित चंद स्कूलों को छोड़ दें तो यहां सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होती। इसके अलावा बांग्ला विषय के शिक्षकों की नियुक्ति भी नहीं की जाती।
सुब्रतो पाल
दशकों पहले पिताजी सरकारी नौकरी के कारण पटना आये और फिर यहीं बस गये। हमारा जन्म यहीं हुआ है। यहां बांग्ला भाषा को लेकर सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है। जब अन्य भाषाओं को स्कूलों में पढ़ाया जा सकता है तो फिर बांग्ला के साथ भेदभाव क्यों हो रहा।
अभिनव
सरकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होने से हम लोगों को काफी समस्या का समाना करना पड़ता है। हमारे बच्चे पढ़ाई के साथ अपनी मातृभाषा की शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। घरेलू स्तर पर तो उन्हें भाषा का ज्ञान दे दिया जाता है, लेकिन ये काफी नहीं है।
पंकज कुमार दास
पूर्व में कटिहार के स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई होती थी लेकिन बीते कुछ दशक से ये बंद है। आज यहां के विद्यालयों में बंगाली शिक्षक नहीं हैं। बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं हो पाती है। केवल उन विद्यालयों में ही बांग्ला भाषा की शिक्षा दी जाती है, जहां का प्रबंधन बंगाली समुदाय के हाथ में है।
कुमार रवि
बंगाली समाज के लोग भाषाई अल्पसंख्यक हैं। आज यहां के स्कूलों में बंगाली शिक्षक नहीं हैं। बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं हो पाती है। पढ़ाई नहीं होने से बच्चे इस भाषा को भूलते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है।
अभिजीत
एक जाति की पहचान उसकी भाषा से ही होती है। हम अपनी भाषा से बेहद प्रेम करते हैं लेकिन हमारे बच्चे अपनी मातृभाषा नहीं पढ़ पाने के कारण उससे दूर होते चले जा रहे हैं।
उत्तम दास
सरकारी तौर पर व्यवस्था नहीं होने के कारण हमारी बिहार बंगाली समिति बंगाली समाज के बच्चों के लिये अलग से बांग्ला भाषा की शिक्षा की व्यवस्था करती है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं है।
संगीता दास
जब बिहार विभाजित नहीं हुआ था तो यहां 40 प्रतिशत आबादी बांग्लाभाषी थी, लेकिन विभाजन के बाद ये संख्या 1-1.5 प्रतिशत तक रह गई है। आज यहां बांग्ला शिक्षा और साहित्य का माहौल नहीं रह गया है।
पीयूकर दास
यहां सदियों से बंगाली समाज के लोग रह रहे हैं। अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति और विरासत को अपनी नई पीढ़ी तक पहुंचने में लगे हुए हैं। आज यहां तेजी से बांग्ला स्कूल बंद हो रहे हैं। बांग्ला पाठ्य पुस्तकों की छपाई नहीं हो रही है। विद्यालयों में बांग्ला भाषा के शिक्षक नहीं हैं
सम्पाना दास
आज यहां के विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होती है। केवल बंगाली समुदाय के प्रबंधन वाले स्कूलों में ही इसकी पढ़ाई होती है। इसके लिये सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है।
राखी दास
1971 के युद्ध के बाद बिहार सरकार ने वैध तौर पर बंगाली शर्णार्थियों को बसाया था। वे दशकों से बिहार के निवासी होने के बावजूद इसका कागजी प्रमाण देने में असमर्थ हैं। जब सरकार ने बंगालियों को वैध रूप से शरणार्थी के तौर पर रहने की अनुमति दी है तो प्रमाण पत्र क्यों नहीं देती है।
अनिवान
सबसे बड़ी समस्या हमारे बच्चों को विद्यालय स्तर पर बांग्ला भाषा की शिक्षा को लेकर है। यहां न तो बांग्ला भाषा की पुस्तकें उपलब्ध हो पाती हैं और न ही सरकारी विद्यालयों में बांग्ला विषय के शिक्षकों की नियुक्ति है। ऐसे में हमारी मातृभाषा की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
मिंटू प्रसाद
यहां सभी के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण तरीके से रहते हैं। सामाजिक स्तर पर कोई दिक्त नहीं है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या हमारी भाषा को लेकर है। हम स्कूलों में अपने बच्चों को बांग्ला भाषा नहीं पढ़ा पा रहे हैं।
समर
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