बोले कटिहार : सब्सिडी, वित्तीय सहायता व योजनाओं का मिले लाभ
आदिवासी समाज का शिक्षित न होना एक बड़ी समस्या है। शिक्षा के अभाव में ऋणग्रस्तता, भूमि हस्तांतरण, और कुपोषण जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं। राजनीतिक दल केवल वादे करते हैं, लेकिन वास्तविकता में आदिवासी...
आदिवासी समाज का शिक्षित न होना बड़ी समस्या है। ऋणग्रस्तता, भूमि हस्तांतरण, गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य आदि कई समस्याए हैं जो शिक्षा से प्रभावित होती हैं। जनजातीय समूहों पर औपचारिक शिक्षा का प्रभाव बहुत कम पड़ा है। आजादी के 77 साल बाद भी भारत के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित हैं। राजनीतिक पार्टियां और नेता आदिवासियों के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान आदिवासी समाज के लोगों ने अपनी परेशानी बताई। 90 हजार है जिले में आदिवासी समाज की आबादी
07 करोड़ की आबादी है समाज की पूरे देश में
01 हजार से ज्यादा लोग हैं सरकारी सेवा में
आदिवासी किसी राज्य या क्षेत्र विशेष में नहीं हैं। बल्कि पूरे देश में फैले हैं। ये कहीं नक्सलवाद से जूझ रहे हैं तो कहीं अलगाववाद की आग में जल रहे हैं। जल, जंगल और जमीन को लेकर इनका शोषण निरंतर चला आ रहा है। देश के लगभग 7 करोड़ आदिवासियों की अनदेखी हो रही है। कटिहार में कुल जनसंख्या 90 हजार के करीब है। कटिहार जिले में समाज के कई लोग पुलिस सेवा, बैंक, पोस्टऑफिस, नगर निगम, डीएम ऑफिस, कोर्ट कचहरी में अच्छे-अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी 7 दशक में उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाए, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं। भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। इसका फायदा उठाकर नक्सली उन्हें अपने से जोड़ लेते हैं। राज्य सरकारें आदिवासियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता। महंगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।
आदिवासी समुदायों में मद्यपान सबसे बड़ी समस्या :
पुलिस की भर्ती की ट्रेनिंग देने वाले ट्रेनर मुकेश लकड़ा ने बताया कि अधिकतर आदिवासी समुदायों में मद्यपान सबसे बड़ी समस्या है। इस सामाजिक संकट से हमें मिलकर लड़ना होगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय में जिन युवाओं को इस सामाजिक कुरुतियों से लड़ने के लिए आगे आना चाहिए था। वे मद्यपान के जाल में फंसते जा रहे हैं। इससे आदिवासी समाज को दूर होने की आवश्यकता है।
साक्षरता और जागरूकता से बदलेगा समाज :
आदिवासी क्षेत्रों में कम साक्षरता दर और उच्च ड्रॉपआउट दर हैं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की दर काफी कम है। सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक पाठ्यक्रम की कमी है। बेरोजगारी, निम्न जीवन प्रत्याशा, उच्च शिशु मृत्यु दर, आवास की बदतर स्थितिया शिक्षा तथा रोज़गार तक पहुंच नहीं है। आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण, बीमारियों और खराब स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या भी आम है। भूमि से वंचित होना, जबरन विस्थापन और भूमि पर अधिकार न होना आदिवासियों के लिए ये भी बड़ी समस्या है। आदिवासी समाज के लोग अक्सर हिंसा और उत्पीड़न का शिकार होते हैं। लोगों ने कहा, आदिवासी संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने में भी चुनौतियां हैं, क्योंकि वे बाहरी प्रभावों और धर्मांतरण के दबाव का सामना करते हैं। नशाखोरी भी आदिवासी समाज में एक बड़ी समस्या है, जो विकास में बाधा डालती है। इन सबका का एक ही कारण है शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी । इसके लिए नव युवक को आगे आने की आवश्यकता है।
शिकायतें
1. आदिवासी समाज के लोगों के पारंपरिक व्यवसाय में श्रम के अनुसार आमदनी कम है।
2. व्यवसाय और व्यवस्था में सुधार और सुविधाएं बढ़ाने की ओर सरकार का ध्यान नहीं है।
3. जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने में होती है परेशानी।
4. आदिवासी समाज के लोगों को समाजिक सुरक्षा और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।
5. आदिवासी इलाके के क्षेत्र में टूटी सड़कें, नाली की सही व्यवस्था नहीं।
सुझाव
1. सरकार सब्सिडी, वित्तीय सहायता और अन्य लाभ देकर व्यवसाय और संस्थाओं को संरक्षण प्रदान करे।
2. दूसरे राज्यों की तरह आदिवासी को लाभ पहुंचाए राज्य सरकार।
3. जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए राज्य सरकार कोई सुगम उपाय निकाले।
4. आदिवासी समाज के लोगों को समाजिक सुरक्षा लाभ से जोड़ा जाए।
5. निगम और पंचायत स्तर पर नाली, सड़कें, स्कूल का निर्माण कराए, जहां सभी सुविधाएं मौजूद हों।
सुनें हमारी बात
आदिवासी समाज के लोग योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। आदिवासी के साथ लोगों की दोहरी मानसिकता है। जिले में लोग आदिवासी को बाहरी भीतरी के तर्ज पर देखते हैं।
बाल्मीकि उरांव
शहर में आदिवासी को निम्न वर्ग में माना जाता है। विस्थापितों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। आदिवासी समाज के साथ केवल वोट की राजनीति होती है। समाज के लोग शिक्षा से विमुख हैं।
अर्चना कुमारी
आदिवासी समाज के लोगों की पारंपरिक व्यवसाय में श्रम के अनुसार आमदनी कम है। व्यवसाय और व्यवस्था में सुधार और सुविधाएं बढ़ाने की ओर सरकार का ध्यान नहीं है।
मनीषा कुमारी
जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने में होती परेशानी होती है। जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए राज्य सरकार कोई सुगम उपाय निकाले।
रानी कुमारी मुंडा
आदिवासी समाज के लोगों को समाजिक सुरक्षा और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। आदिवासी समाज के लोगों को समाजिक सुरक्षा लाभ से जोड़ा जाए।
अन्नू कुमारी मुंडा
आदिवासी इलाके के क्षेत्र में टूटी सड़कें, नाली की सही व्यवस्था नहीं है। जन प्रतिनिधि का भी ध्यान इस ओर नहीं जाता है। निगम और पंचायत स्तर पर नाली, सड़कें, स्कूल का निमार्ण कराए, जहां सभी सुविधाएं मौजूद हो।
गुंजा कुमारी
सरकार सब्सिडी, वित्तीय सहायता और अन्य लाभ देकर व्यवसाय और संस्थाओं को संरक्षण प्रदान करे। दूसरे राज्यों की तरह आदिवासी को लाभ पहुंचाए बिहार सरकार।
शीला कुमारी मुंडा
आदिवासी क्षेत्रों में कम साक्षरता दर और उच्च ड्रॉपआउट दरें हैं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अपर्याप्त पहुंच, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक पाठ्यक्रम की कमी है।
सुभाष मुंडा
बेरोजगारी, निम्न जीवन प्रत्याशा, उच्च शिशु मृत्यु दर, आवास की बदतर स्थितिया, शिक्षा तथा रोजगार तक कम पहुच आदि समस्याएं हमारे समाज में है। जन प्रतिनिधि को इसपर विचार करना चाहिए ।
सहदेव मुंडा
आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण, बीमारियों और खराब स्वास्थ्य सेवाओं की समस्याए आम बात है। आस पास हॉस्पिटल भी नहीं है। बात करने के लिए काफी दूर आना पड़ता है। पैसे खर्च हो जाते हैं ।
अनूप उरांव
भूमि से वंचित होना, जबरन विस्थापन और भूमि पर अधिकार न होना आदिवासियों के लिए बड़ी समस्या है। शिक्षा का नहीं होना इसका मुख्य कारण है। लोगों को शिक्षित होने की जरूरत है।
जितेश उरांव
आदिवासी समाज के लोग अक्सर हिंसा और उत्पीड़न का शिकार होते हैं, खासकर पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा। इस ओर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
प्रकाश उरांव
आदिवासी संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने में भी चुनौतियां हैं, क्योंकि वे बाहरी प्रभावों और धर्मांतरण के दबाव का सामना करते है। अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।
शिव उरांव
नशाखोरी भी आदिवासी समाज में एक बड़ी समस्या है, जो विकास में बाधा डालती है। युवा को अपने मोहल्ले या जान पहचान के लोगों को समाज के लोगों को नशा के प्रति जागरूक करना होगा तभी हमारा समाज आगे बढ़ेगा।
अंकित उरांव
आदिवासी समुदायों ने नशामुक्त समाज बनाने का निर्णय लिया है। हम लोग कभी भी शराब दारु का सेवन नहीं करते हैं। अपने जितने भी परिचित हैं सभी को यह शिक्षा भी देते हैं।
सूरज लकड़ा
आदिवासी में जो शिक्षित वर्ग हैं वो धर्मांतरण और बाहरी घुसपैठ के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। हम लोग भी इस और प्रयास कर रहे हैं कि हमारा समाज भटके नहीं समाज की कुरीति है जल्द दूर हो जाए।
विकेश उरांव
बोले जिम्मेदार
जिले के विभिन्न प्रखंडों में आदिवासियों समुदाय के लोगों का धर्मांतरण करने की सूचना मिलती रही है। इस मामले में विधान सभा के मानसून सत्र में उठाया जायेगा। साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर आदिवासियों की धर्मांतरण सहित विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए समुचित समाधान करने पर पहल की जायेगी।
-तारकिशोर प्रसाद, पूर्व उप मुख्यमंत्री सह सदर विधायक कटिहार
बोले कटिहार असर
श्रमिकों की बढ़ाई गई न्यूनतम मजदूरी
कटिहार। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के बोले कटिहार संवाद के तहत 28 मार्च को भवन निर्माण कामगारों की समस्या को लेकर 'सुरक्षा उपकरण और चिकित्सा की हो व्यवस्था, बने श्रम कार्ड, श्रमिकों की बढ़े मजदूरी' को लेकर खबर छापी गई थी। खबर प्रकाशन किए जाने के बाद बिहार सरकार ने श्रमिकों की मजदूरी 1 अप्रैल से 12 रुपए बढ़ा दी है। कुशल मजदूरों को प्रतिदिन 412 रुपए के बदले अब 424 रुपए प्रतिदिन मजदूरी मिलेगी। श्रम संसाधन विभाग की ओर से न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अंतर्गत बढ़ोतरी की गई है। अर्द्ध कुशल मजदूर को 428 के जगह अब 440 रुपये प्रतिदिन मिलेगा। वहीं कुशल मजदूरों को 521 रुपए की जगह अब 533 रुपए प्रतिदिन मिलेगा अति कुशल श्रमिकों को 636 के जगह 654 रुपए प्रतिदिन मिलेगा। यह जानकारी कटिहार के श्रम अधिक्षक, पिटर मिंज ने दी। उन्होंने यह भी बताया कि असंगठित कामगार के लिए न्यूनतम मानदेय का प्रावधान है। कार्यस्थल पर अगर किसी के साथ किसी तरह की परेशानी होती है तो आप श्रम संसाधन विभाग से इसकी शिकायतें कर सकते हैं। इसके लिए शख्त कानून बनाए गए है। श्रमिकों के लिए श्रम कार्ड का भी प्रावधान है । जिसके अंतर्गत साइकिल और कई योजनाएं हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना सरकार के द्वारा चलाई जा रही है। 18 से 62 साल के उम्र वाले श्रमिकों के लिए दुर्घटना मृत्यु होने पर 2 लाख तक का परिवार को सहायता राशि दी जाती है। प्रवासी मजदूरों के लिए भी कई योजनाएं सुचारू रूप से चल रही है। यह खबर की जानकारी मिलते ही जिले के हजारों श्रमिकों में खुशी की लहर है। श्रमिकों ने हिन्दुस्तान अखबार के बोले कटिहार मुहिम के प्रति आभार व्यक्त किया।
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