बोले कटिहार : शेड और पानी की हो व्यवस्था, सुरक्षा का भी रहे कड़ा इंतजाम
कटिहार जिले के खेरिया, डूमर और मनसाही मवेशी हाट, जो 1940 के दशक से व्यापार का केंद्र हैं, आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं। व्यापारी और खरीदारों को पानी, शौचालय, और शेड की कमी का...
कटिहार जिले के कोढ़ा प्रखंड स्थित खेरिया, समेली प्रखंड के डूमर एवं मनसाही मवेशी हाट सीमांचल के ऐतिहासिक और पारंपरिक व्यापार केंद्र रहे हैं। 1940 के दशक से ये हाट हर गुरुवार, बुधवार एवं रविवार को सजते हैं, जहां कटिहार के अलावा किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और बंगाल से भी व्यापारी पहुंचते हैं। गाय, बैल, बकरी, खस्सी से लेकर रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं यहां खरीदी-बेची जाती हैं। वर्षों से ये हाट ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं, लेकिन आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं। शेड, पानी, शौचालय, रोशनी की कमी के बीच यह हाट अपनी ऐतिहासिक पहचान सहेजे हुए हैं। यहां आने वाले व्यापारी और खरीदारों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। संवाद के दौरान लोगों ने अपनी समस्या बताई।
19 सौ 40 के दशक से लगा रहा है खेरिया हाट
05 जिले से व्यापारी आते हैं खरीद-बिक्री करने
02 सौ 31 पंचायतों में हैं मात्र तीन मवेशी हाट
जिले के कोढ़ा प्रखंड का खेरिया, समेली प्रखंड का डूमर एवं मनसाही मवेशी हाट, जो कभी सीमांचल के मवेशी व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता था, आज सुविधाओं की भारी कमी से जूझ रहा है। 1940 के दशक से हर गुरुवार, बुधवार एवं रविवार को लगने वाला यह हाट सिर्फ मवेशियों की खरीद-बिक्री तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार रहा है। लेकिन समय के साथ न तो इसके स्वरूप में सुधार हुआ, न ही इसके बुनियादी ढांचे को मजबूत किया गया।
कई जिलों व प्रदेश के जुटते हैं व्यापारी :
आज भी खेरिया हाट में कटिहार के अलावा किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और बंगाल तक से व्यापारी आते हैं। गाय, बैल, भैंस, बकरी से लेकर मुर्गा-खस्सी तक की बिक्री होती है। साथ ही नमक, कपड़ा, मसाले, बांस और लोहे के औजारों की दुकानों से पूरा मेला-सा माहौल बनता है। लेकिन इस रौनक के बीच जो बात सबसे ज्यादा खलती है, वो है मूलभूत सुविधाओं का अभाव।
सीढ़ीनुमा प्लेटफॉर्म का है अभाव :
हाट में मवेशियों को चढ़ाने-उतारने के लिए सीढ़ीनुमा प्लेटफॉर्म नहीं है। चारे के लिए नाद नहीं बने हैं और शेड की भारी कमी है, जिससे गर्मी और बारिश में मवेशियों को रखने में परेशानी होती है। पानी की व्यवस्था एक मात्र चापाकल पर निर्भर है और रोशनी की कोई सुविधा नहीं। हाट में शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्था भी नदारद है, जबकि यहां से पंचायतों को सालाना लाखों रुपये का राजस्व मिलता है।
पशुपालन से संवरती थी किसानी की तकदीर :
एक वक्त था जब इस इलाके में नकदी फसलें नहीं होती थीं। किसान पशुपालन के जरिये ही अपनी बड़ी जरूरतें पूरी करते थे। बेटी की शादी हो या ज़मीन खरीदनी हो, मवेशी बेचकर खर्च निकालना आम बात थी। खेरिया समेत अन्य हाट उस दौर में किसानों की सबसे बड़ी उम्मीद था।आज भी गुरुवार की सुबह होते ही दुकानदार अपनी झोपड़ीनुमा दुकानों को खुद साफ करते हैं और फिर जुटती है बड़ी भीड़। इस परंपरा को बचाने और हाट को नई जान देने की जरूरत है। स्थानीय व्यापारियों और ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि खेरिया हाट को एक मॉडल मवेशी हाट के रूप में विकसित किया जाए, जिससे यह ऐतिहासिक विरासत अपना खोया हुआ गौरव दोबारा हासिल कर सके।
शिकायतें
1. शेड की कमी से मवेशियों को बारिश व धूप में खड़ा करना पड़ता है।
2. चारा खिलाने के लिए नाद नहीं होने से व्यापारी परेशान होते हैं।
3. सिर्फ एक चापाकल से सारा हाट निर्भर है, जिससे जल संकट बना रहता है।
4. शौचालय की अनुपलब्धता से महिलाएं व बुजुर्गों को कठिनाई होती है।
5. सड़क से हाट तक पहुंचने का रास्ता जर्जर होने से व्यापारियों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
सुझाव
1. मवेशियों के लिए पक्का शेड बनाया जाए ताकि धूप और बारिश से बचाव हो सके।
2. सीढ़ीनुमा प्लेटफॉर्म का निर्माण हो जिससे मवेशियों को वाहन से उतारने-चढ़ाने में सहूलियत हो।
3. शौचालय और पेयजल की व्यवस्था की जाए, खासकर भीड़भाड़ वाले दिनों को ध्यान में रखकर।
4. प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि शाम तक व्यापार में सुविधा हो।
5. साप्ताहिक सफाई अभियान चलाकर हाट परिसर को स्वच्छ और व्यवस्थित रखा जाए।
इनकी भी सुनें
खेरिया मवेशी हाट हमारी विरासत है, लेकिन आज भी सुविधाओं की भारी कमी है। शेड, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी ज़रूरतें नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि इतने बड़े व्यापार केंद्र को आधुनिक बनाए ताकि व्यापारियों और ग्रामीणों दोनों को सहूलियत मिले।
-मो यासिफ
मैं वर्षों से इस हाट में मवेशी बेचता हूं। बारिश हो या धूप, खुले में ही मवेशियों को खड़ा रखना पड़ता है। अगर बेहतर इंतजाम हों तो व्यापार और बढ़ेगा। प्रशासन को कम से कम बुनियादी सुविधाएं तो देनी ही चाहिए।
-अर्जुन चौधरी
हाट की ऐतिहासिकता तो सब जानते हैं, लेकिन आज की जरूरतें बदल चुकी हैं। पानी, बिजली और चारा की व्यवस्था होनी चाहिए। इतने व्यापारी आते हैं, लेकिन कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। सरकार को ध्यान देना चाहिए।
-भेतर आलम
हर गुरुवार को मैं बकरी और खस्सी बेचता हूं। यहां पहुंचने में तकलीफ होती है, सड़कें खराब हैं और हाट में भी कीचड़ रहता है। न शौचालय है, न पीने का पानी। सुविधा बढ़ेगी तो लोग और आएंगे।
-शनहन शाहनवाज
यह हाट सिर्फ मवेशियों का नहीं, पूरे ग्रामीण बाजार का केंद्र है। यहां नमक से लेकर कपड़े तक बिकते हैं, लेकिन दुकानदारों के लिए ढांचा नदारद है। अगर शेड और सफाई की व्यवस्था हो जाए तो ग्राहक भी संतुष्ट होंगे।
-सुमन सरकार
मैं पश्चिम बंगाल से यहां मवेशी खरीदने आता हूं। पहले के मुकाबले अब हालत और खराब हो गई है। पानी नहीं, शेड नहीं और भीड़ में सुरक्षा भी नहीं होती। हाट को नया रूप देना ज़रूरी हो गया है।
-कृष्ण
खेरिया हाट हमारी संस्कृति का हिस्सा है। मेरे दादा भी यहीं व्यापार करते थे। लेकिन आज हालत देख कर दुख होता है। सरकार को चाहिए कि इस ऐतिहासिक हाट को संरक्षित करे और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराए।
-सुदामा ऋषि
हाट में रोजगार की संभावना है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी के कारण युवा इससे दूर हो रहे हैं। अगर प्रशासन इस जगह को व्यवस्थित कर दे, तो यह इलाके की आर्थिक स्थिति को बदल सकता है।
-अंशु अमन
मैं चारा बेचता हूं, लेकिन बारिश होने पर पूरा मैदान कीचड़ हो जाता है। न तिरपाल है, न शेड। कई बार सामान खराब हो जाता है। प्रशासन को व्यापारी हितों को ध्यान में रखते हुए योजना बनानी चाहिए।
-सतीश
खेरिया हाट में हर हफ्ते हजारों की भीड़ होती है, फिर भी एक चापाकल से ही पानी की व्यवस्था की गई है। महिलाओं और बच्चों को खास परेशानी होती है। पानी और शौचालय की व्यवस्था सबसे पहले होनी चाहिए।
-दिनेश मंडल
मैं गाय और बकरी खरीदने आता हूं। भीड़भाड़ में जगह नहीं मिलती और मवेशियों को खोलने की जगह नहीं होती। अगर अलग-अलग सेक्शन बना दिया जाए तो आसानी होगी। हाट का विस्तार और बेहतर प्रबंधन ज़रूरी है।
-मो जुबेर
मैं हर गुरुवार यहां सब्जी और मसाले की दुकान लगाता हूं। बारिश के समय पूरी दुकान भीग जाती है। अगर पक्की छत और नालियों की व्यवस्था हो जाए तो व्यापार और अच्छा चलेगा।
-राजेंद्र प्रसाद
हाट में अब भी वही पुराने तरीके से मवेशियों को उतारा जाता है। कोई पक्का टीला नहीं है, जिससे मवेशियों को नुकसान होता है। सरकार को टीले और सीढ़ीदार प्लेटफॉर्म बनवाना चाहिए।
-राकेश कुमार
यह हाट सीमांचल के कई जिलों का केंद्र है। यहां व्यापार बढ़ाने की बहुत संभावना है। अगर नगर पंचायत चाह ले तो यहां से सालाना राजस्व कई गुना बढ़ाया जा सकता है।
-शशि सिंह
यहां का व्यापार बहुत पुराना है, लेकिन सुविधाएं बिल्कुल नहीं हैं। मवेशियों को पानी पिलाने के लिए नाद तक नहीं है। अगर पशुपालन को बढ़ावा देना है तो हाट को दुरुस्त करना होगा।
-सत्यनारायण मंडल
मैं हाट में छोटे जानवर बेचता हूं। कभी धूप तो कभी बारिश से जानवर बीमार हो जाते हैं। अगर पक्के शेड और सफाई हो तो हमारे जानवर सुरक्षित रहेंगे और मुनाफा भी ज्यादा होगा।
-भूरण सहनी
हाट में हर बार लगता है जैसे व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। कोई जिम्मेदार अधिकारी कभी आता नहीं है। हमें लगता है कि सरकार को यहां की स्थिति देखने के लिए सर्वे कराना चाहिए।
-महेश सिंह
खेरिया हाट में भीड़ बहुत होती है लेकिन सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। न लाइट है, न गार्ड। कभी कोई विवाद हो जाए तो संभालना मुश्किल होता है। प्रशासन को सुरक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए।
-वरुण सहनी
बोले जिम्मेदार
खेरिया समेत जिले के अन्य मवेशी हाटों की स्थिति की जानकारी हमारे पास है। कई जगह बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जिसे दुरुस्त करने की दिशा में कार्रवाई हो रही है। हाट में शेड, नाद, पानी, शौचालय व रोशनी की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर भेजा गया है। राजस्व के हिसाब से इन हाटों का महत्त्व काफी है, इसलिए इसे व्यवस्थित बनाना हमारी प्राथमिकता है। जल्द ही नगर निकाय, पंचायत व पशुपालन विभाग के समन्वय से सुधार कार्य प्रारंभ किए जाएंगे। हम चाहते हैं कि मवेशी व्यापारियों व किसानों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
-ओमप्रकाश गुप्ता, जिला गव्य विकास पदाधिकारी, कटिहार
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रेडीमेड दुकानदारों ने की डिजिटल मंच की मांग
कटिहार, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। कटिहार जिले के कुरसेला और आसपास के प्रखंडों में रेडीमेड व्यापारियों की चुनौतियों को लेकर हिन्दुस्तान के बोले कटिहार पेज पर 11 मई को प्रकाशित विशेष रिपोर्ट के बाद स्थानीय व्यापारियों में नई उम्मीद जगी है। डिजिटल युग में हो रही कठिन प्रतिस्पर्धा और बदलते ग्राहक व्यवहार से जूझ रहे दुकानदार अब सरकार और जिला प्रशासन से ठोस सहयोग की मांग कर रहे हैं। स्थानीय व्यापारियों ने मांग की है कि उन्हें भी ऑनलाइन मंच मिले, जहां वे अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों तक पहुंचा सकें। इससे ऑनलाइन शॉपिंग की मार झेल रहे दुकानदारों को नया बाजार मिलेगा। साथ ही, त्योहारों और विशेष अवसरों पर प्रखंड स्तर पर कपड़ा प्रदर्शनी आयोजित हो, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के दुकानदारों को शहर के ग्राहकों से जुड़ने का अवसर मिले। दुकानदार आलोक कुमार ने कहा कि हमारे पास अच्छी गुणवत्ता है, लेकिन ग्राहक सोशल मीडिया पर दिखाए गए सस्ते कपड़ों से प्रभावित हैं। सरकार हमें डिजिटल ट्रेनिंग दे और एक सरकारी पोर्टल पर जगह दे, तो हम भी प्रतिस्पर्धा में टिक सकते हैं। सरकार यदि इन सूक्ष्म व्यापारियों को तकनीकी व वित्तीय सहयोग दे, तो न केवल उनका व्यवसाय सुदृढ़ होगा, बल्कि स्थानीय रोजगार और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। रेडीमेड कपड़ा व्यवसाय को फिर से खड़ा करने के लिए अब नीतिगत निर्णयों की दरकार है।
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