बोले जमुई : सखुआ पत्तल निर्माण उद्योग हो स्थापित तो आएगी समृद्धि
सखुआ के पत्ते से पत्तल बनाने की कला अब एक व्यवसाय बन गई है, जो स्थानीय लोगों की आजीविका को बढ़ावा दे रही है। प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इसकी मांग बढ़ रही है, लेकिन स्थानीय वनवासियों को उचित...
सखुआ के पत्ते से पत्तल बनाने की कला सदियों पुरानी है लेकिन अब यह आधुनिक तकनीक और बाजार की जरूरत के साथ तालमेल बिठा रही है। पत्तल बनाने का काम जो कभी पारंपरिक था, अब एक उभरता हुआ व्यवसाय बन गया है। स्थानीय लोग पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण प्लास्टिक के विकल्प के रूप में सखुआ के पत्तल की मांग पूरी कर रहे हैं। इससे उनकी आजीविका को भी बढ़ावा मिल रहा है। सखुआ के पत्तल बनाने का काम स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। किंतु, इस पेशे से जुड़े लोगों की भी कई परेशानियां हैं।
हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान लोगों ने अपनी परेशानी बताई। 02 सौ से 250 रुपये प्रतिदिन होती है कमाई 05 हजार से अधिक परिवार रहते हैं जमुई जिले में 02 सौ से 300 पत्तल एक दिन एक व्यक्ति बनाते हैं सखुआ के पत्ते से पत्तल बनाकर अपनी आजीविका चलाने बाले वनवासियों को न तो भरपेट भोजन नसीब है न तो तन पर कपड़े। अगर उद्योग विभाग पत्तल बनाकर अपनी आजीवका चलाने बाले वनवासियों की सुध ले तो इनका भी जीवन स्तर सुधारेगा। आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे। जंगली क्षेत्र में सखुआ से बने पत्तल का करोबार काफी फैला हुआ है। इस धंधे में महिलाएं व पुरुष दोनों शामिल हैं। सुबह जंगल से सखुआ का हरा पत्ता तोड़कर लाते हैं और फिर परिवार के सभी सदस्य मिलकर पत्तल तैयार करते हैं। पत्तल तैयार करने के बाद स्थानीय व्यपारियों के पास बेच देते हैं। पत्तल तैयार करने में जिस प्रकार वनवासी मेहनत करते हैं उस अनुरूप उन्हें पारश्रमिक नहीं मिल पाता है। वनवासियों की मेहनत का लाभ स्थानीय सेठ साहूकार उठाते हैं जो इस पत्तल को प्लेट का आकर्षक रूप देकर बाजार में ऊंची कीमत पर बेचते हैं। उद्योग विभाग स्थानीय स्तर पर उद्योग लगाकर वनवासियों को अगर इससे जोड़ उन्हें रोजगार मुहैया कराए तो बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलेगा। साथ ही पत्तल के रोजगार से जुड़े वनवासियों के जीवन स्तर में भी काफी सुधार होगा। प्लास्टिक प्लेट ने कम की पत्तल की मांग : पत्तल रोजगार से जुड़े वनवासियों के प्रति सरकार की उदासीनता के कारण उनके कौशल निखर नहीं पा रहा है। इन वनवासियों का कहना है कि प्लास्टिक के प्लेट आ जाने के कारण पत्तल का मांग भी काफी कम हो गई है। पहले नास्ता आदि के दुकान में पत्तल के अलावा सखुआ पत्ते का दोना चलता था। इन वनवासियों द्वारा तैयार पत्तल प्रदेश के अन्य जिलों में भेजा जाता है। उद्योगपतियों द्वारा उद्योग लगाकर इस पत्तल को आकर्षक रूप दिया जाता है और फिर उसे ऊंची कीमत में बाजार में बेचा जाता है। अगर स्थानीय स्तर पर उद्योग लगाकर इन पत्तलों से आकर्षक प्लेट-कटोरे आदि का निर्माण शुरू कर दिया जाए तो यह क्षेत्र पत्तल उद्योग के रूप में प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है। सुरक्षित व उपयोगी हैं सखुआ पत्ते के प्लेट : पर्यावरण के दृष्टि से भी सखुआ पत्ते से बने प्लेट व कटोरे सुरक्षित व उपयुक्त हैं। आज शादी विवाह या अन्य कार्यक्रमों में प्लास्टिक के बने पत्तल का उपयोग व्यापक पैमान पर हो रहा है। इससे पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। सरकार द्वारा सिंगल उपयोग प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया गया है लेकिन इसका सख्ती से अनुपालन नहीं हो पा रहा है। अगर उद्योग विभाग सखुआ पत्ते से प्लेट व कटोरा बनाने का उद्योग स्थानीय स्तर पर लगाकर इसका निर्माण शुरू कर दे तो स्वत: सिंगल उपयोग में लाये जा रहे प्लास्टिक से बने वस्तुओं पर अंकुश लग जायेगा। कुटीर उद्योग के रूप में हो विकास : पत्तल उद्योग को विकसित करने के लिए कच्चा माल के रूप में स्थानीय जंगलों में काफी मात्रा में सखुआ पत्ता उपलब्ध है। इन सखुआ पत्तों से आकर्षक प्लेट व कटोरा तैयार किया जा सकता है। बाजार में ऊंची कीमत प्राप्त करने के लिए वनवासियों को प्रशिक्षण देकर उनके अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने की जरूरत है। प्रशिक्षण प्राप्त वनवासियों के लिए उद्योग विभाग द्वारा पूंजी की व्यवस्था की जाए। वनवासियों से जुड़े गांवों में प्लेट निर्माण को कुटीर उद्योग के रूप में विकसित किया जाए। यह बेरोजगारी से जूझ रहे वनवासियों को स्वरोजगार का अवसर दिला सकता है। शिकायत 1. पूंजी के अभाव में नहीं बढ़ रहा है कारोबार। 2. अब लोग सखुआ पत्ता से बने पत्तल नहीं, थर्मोकोल के प्लेट खरीद रहे हैं जिससे परेशानी हो रही है। 3. कई पीढ़ियों से यह पुश्तैनी व्यवसाय कर रहे हैं, अब लागत मूल्य भी नहीं निकल रहा है। 4. अब दुकानदार दूसरी जगह से बने पत्तल मंगा रहे हैं। 5. रोजगार को बढ़ावा देने के लिए बैंक से सरल प्रक्रिया से लोन नहीं मिलता। सुझाव 1. रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कौशल विकास योजनाओं को इन तक पहुंचाया जाए। 2. पत्तल कामगारों के लिए सरकार के स्तर से बाजार का प्रबंध हो। 3. किसान क्रेडिट कार्ड की तरह पत्तल कामगारों के लिए क्रेडिट कार्ड जारी किया जाना चाहिए। 4. पत्तल कामगारों को बैंक से ऋण दिलाने के लिए शिविर लगाया जाना चाहिए। 5. सामान पर लागत और मेहनत के अनुसार इसकी कीमत मिले। इनकी भी सुनिए वनवासियों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के दिशा में सरकार को सकारात्मक प्रयास करने की जरूरत है। पत्तल उद्योग की स्थापना वनवासियों की प्रगति व उन्नति के लिए मील का पत्थर साबित होगी। -लालचुन तिवारी, वार्ड सदस्य, लखनकियारी पंचायत सुबह जंगल से पत्ता तोड़कर लाते है फिर दिन भर बाल-बच्चों के साथ पत्तल की बुनाई करते हैं। इसके बाद भी हमलोगों को भरपेट भोजन नसीब नहीं हो पाता है। -लालू नैया सरकार द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराकर सखुआ पत्ता से प्लेट बनाने की मशीन उपलब्ध कराई जाए। इससे हमलोगों की कमाई में काफी वृद्धि हो सकती है। -लालचन नैया सखुआ पत्ता से प्लेट तैयार करने के लिए इसे कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करने की जरूरत है। इससे लोग स्वरोजगार से जुड़ेंगे। साथ ही उनकी कमाई भी बढ़ेगी। -गेनो नैया हमारे जंगलों में काफी मात्रा में सखुआ का पेड़ हैं। अगर सरकार क्षेत्र में सखुआ पत्ता से प्लेट बनाने का उद्योग स्थापित कर दे तो यहां बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। -हिरामन पुजहर शादी-विवाह के मौसम में पत्तल के मांग रहती है। इससे हमलोगों को रोजगार मिल जाता है। लेकिन लग्न समाप्त होते ही हमलोग बेरोजगार हो जाते हैं। -कमली देवी प्लास्टिक प्लेट के प्रचलन के कारण सखुआ पत्ता से बने प्लेट का मांग में कमी आई है। लाचारी में हमलोगों को कम दाम में पत्तल बेचनी पड़ती है। -मंजू देवी हम वनवासियों का जंगल से आजीवका चलता है। लेकिन दिन भर कड़ी मेहनत के बाद भी हमलोगों को वाजिब मजदूरी नहीं मिल पाती है। -मोहन पुजहर मेहनत हमलोग करते है और लाभ सेठ साहूकार उठाते हैं। स्थानीय सेठ कौड़ी के भाव में हमलोगों से पत्तल खरीद करते है। फिर ऊंची कीमत पर प्रदेश के अन्य बाजारों में बेच देते हैं। -झुंपा पुजहर पत्तल रोजगार से जुड़े वनवासियों के लिए सरकार मंडी की व्यवस्था करे। जहां सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य पर तैयार किया गया पत्तल बेच सकें। -गुलाबी पुजहर पत्तल रोजगार से जुड़े वनवासियों के संगठित नहीं रहने के कारण इसका लाभ स्थानीय व्यवसायी उठाते हैं। उनके द्वारा तैयार पत्तल का भाव कौड़ियों में तय करते हैं। -नरेश पुजहर सरकार प्लास्टिक प्लेट की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए। तभी बाजार में सखुआ पत्तल की मांग बढ़ेगी। साथ ही हमलोगों की आमदनी भी बढ़ेगी। -कोल्हा पुजहर सखुआ पत्ता से पत्तल बनाकर ही परिवार का भरण पोषण करते हैं। सरकार अगर आर्थिक सहायता उपलब्ध करा दे तो आधुनिक तरीके से पत्तल का निर्माण कर ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है। -पुटूस पुजहर सरकार द्वारा पत्तल बुनकरों को प्रशिक्षण देकर उसे कुशल कारीगर के रूप में विकसित करने की जरूरत है। जिससे आज की मांग के अनुरूप आधुनिक सखुआ का प्लेट-कटोरा निर्माण का कौशल सीख सकें। -अरुण पुजहर सरकार क्षेत्र में पत्तल उद्योग की स्थापना कर हम वनवासियों को रोजगार से जोड़े तभी वनवासियों की प्रगति व उन्नति सम्भव है। तब ही हमलोग खुशहाल जिन्दगी जी सकते हैं। -पुटन पुजहर सरकारी सहायता के बिना पत्तल रोजगार से जुड़े कामगारों का कल्याण संभव नहीं है। वनवासियों के हितों की रक्षा के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है। -कैलू पुजहर बोले जिम्मेदार सरकार की कई योजनाएं हैं। मुद्रा योजना के तहत भी छोटे-छोटे कारोबार करने वालों को लोन मिल रहा है। इसके अलावा अन्य कई प्रकार की योजनाएं है जिसमें सरकार से अनुदान भी प्राप्त होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के अनुदान भी ज्यादा है। ऑनलाइन भी अवेदन कर योजना का लाभ ले सकते हैं। मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है। -मितेश कुमार शांडिल्य, महाप्रबंधक, जमुई जिला उद्योग केंद्र बोले जमुई फॉलोअप मंडी की व्यवस्था करें, कोल्ड स्टोरेज का हो निर्माण जमुई। सब्जी उपजा रहे किसानों को अब तक यह टीस है कि उनके लिए अब तक कोई स्थाई जगह नहीं बन सकी, जहां वे सब्जी को दिन भर बेच सकें। कई बार मांग हुई लेकिन इस संदर्भ में कोई ध्यान नहीं दिया गया। किसानों का कहना था कि एमएसपी का लाभ उन्हें नहीं मिलता है। जितनी लागत आती है उससे भी कम लाभ होता है। जिस कारण कई किसान तो फसल उत्पादन करना तक छोड़ अन्य व्यवसाय करने लगे हैं। इसे लेकर 5 जनवरी को हिन्दुस्तान के बोले जमुई संवाद के दौरान किसानों की समस्या प्रकाशित की गई थी। किसानों ने बताया था कि अगर सरकार द्वारा कोई खास पहल नहीं की गई तो, वह दिन दूर नहीं जब किसान कृषि कार्य को छोड़ देंगें। ऐसे में पूरे देश में अन्न की समस्या हो जाएगी। पंचायत स्तर पर मंडी होना चाहिए ताकि शहरों की मंडी में जाने पर होने वाले परिवहन खर्च से मुक्ति मिल सके। किसानों को उर्वरक और खाद समय पर मिले सरकार को सुनिश्चित करनी चाहिए। खेतों में डाले जाने वाले दवा पर सरकार का नियंत्रण हो। दवा पर नियंत्रन होने पर उन्हें दवाइयां सस्ती मिलेंगी। वहीं यूरिया व खाद की कालाबाजारी भी बंद होनी चाहिए। ताकि किसानों को खेती करने में लागत में कमी आए। सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों को घाटा उठाना पड़ता है। किसानों ने बताया कि किसान कड़ी मेहनत कर सब्जी का उत्पादन करते हैं। पर लागत पर भी आफत है। वर्तमान में सब्जियों के दाम काफी गिर गए हैं। दाम गिरने के कारण किसानों को लागत निकालना मुश्किल होता है। किसान घाटे में जा रहे हैं। बाजार में सब्जियों का भाव को देख किसान सब्जी उत्पादन करते हैं। जब उनके खेतों से सब्जियां निकलती हैं। उस समय भाव काफी गिर जाता है। कर्ज लेकर सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों पर कर्ज का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता है। सब्जियों के भंडारण करने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण सब्जियों को औने-पौने भाव पर भेजना मजबूरी होता है। कोल्ड स्टोरेज बनाया जाना चाहिए।
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