भूगर्भ जल का बेतहाशा दोहन से जलस्तर में हो रही लगातार गिरावट
गढ़वा में बढ़ती जनसंख्या के साथ भूगर्भ जल का लगातार दोहन हो रहा है, जिससे जलस्तर गिर रहा है। 77 गांवों को ड्राइजोन के रूप में चिन्हित किया गया है। सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध के बावजूद,...

गढ़वा, संवाददाता। आबादी बढ़ने के साथ भूगर्भ जल का दोहन लगातार जारी है। जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। वनीकरण के मामले में राज्यभर में गढ़वा में सबसे अधिक क्षेत्र बढ़ा है। वर्ष 1919 में 1391 वर्ग हेक्टेयर में वनक्षेत्र था। वहीं 2021 में बढ़कर यह 1431.72 वर्ग हेक्टेयर में हो गया। इस तरह जिले में करीब 40 वर्ग हेक्टेयर वनक्षेत्र में बढ़ोतरी दर्ज की गई। उसके बाद भी साल दर साल गर्मी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। जलस्तर भी लगातार नीचे गिर रहा है। आईएसएफआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से 2023 के बीच वन क्षेत्र में 39 हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं सिंगल यूज प्लास्टिक का बेतहाशा उपयोग भी पर्यावरण पर प्रतिकुल असर डालता है।
पीएचइडी के अनुसार जलस्तर में गिरावट के कारण कई इलाके ड्राइजोन के तौर पर चिन्हित किए गए हैं। गढ़वा में 77 गांव ड्राइजोन के तौर पर चिन्हित किए गए हैं। उनमें जिलांतर्गत रंका प्रखंड के खपरो, मानपुर, खरडीहा, सलेया, कंचनपुर, तेतरडीह, तेनुडीह, सेराशाम और डाले के अलावा रमकंडा प्रखंड के उदयपुर, चेटे, सूली, पटसर, बलिगढ़ और रमकंडा, चिनियां के छतैलिया, राजबांस, खुर्री, नगसिली और मसरा, भंडरिया प्रखंड के रोदो, मंजरी, पर्रो, पार्ट, मरदा, बड़गड़ के मुटकी, सरूअत पहाड़, टेहरी, हेसातू, गड़िया, गढ़वा प्रखंड के तेनार, ओबरा, बघमार, मसूरिया, करमडीह, डुमरो, कितासोती कला, रंका, पिपरा, कल्याणपुर, संग्रहेखूर्द, सिदेखूर्द, लोटो, नगर उंटारी के गरबांध, उसका कला, मर्चवार और अधौरी शामिल हैं। उसके अलावा रमना के अधौरी, भवनाथपुर के कोणमंडरा, डगर, मकरी गड़ेरियाडीह, तुलसीदामर और झुमरी, सगमा के लोलकी और खास, धुरकी के खाला, परासपानी कला, खरौंधी के मझिगांवा खास और परसवार, मेराल के औरेया, खोरीडीह, चेचरिया, पचफेड़ी, टिकुलडीहा, सिकनी, बिकताम सुगंडी टोला, करमाही, कुशमही, डंडई का लवाही कला, बेलवाटीकर व महुडंड, मझिआंव के करमडीह, भुसुआ, विडंडा, सरकोनी, बूढ़ीखांड़ और बरडीहा के बरडीहा एरिया के कुछ क्षेत्र को ड्राइजोन के तौर पर चिन्हित किया गया है।
गढ़वा। प्रतिबंध के बाद भी सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं रूक रहा है। शहर से लेकर गांव तक में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। शहरी क्षेत्र में तो स्थिति और भी भयावह है। पिछले एक जुलाई 2022 से प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बेरोक-टोक हो रहा है। प्रतिबंध लगने के बाद भी दुकानदार खुलेआम दुकान में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग खरीद-बिक्री में कर रहे हैं। वहीं आम आदमी बाजार से सामान सिंगल यूज प्लास्टिक में ही लेता है। एक अनुमान के अनुसार एक घर से हर दिन औसतन 1200 ग्राम कचरा निकलता है। उनमें सिंगल प्लास्टिक भी शामिल होता है। शहर के रंका मोड़ सहित अन्य चौक-चौराहों पर अधिसंख्य ठेला व खोमचा, किराना दुकानदार, फल दुकानदार सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। ग्राहक को प्लास्टिक में सामान देते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन जिलेभर में खुलेआम दुकानदार व ग्राहक प्लास्टिक का प्रयोग कर रहे हैं। वर्तमान समय में किसी प्रकार का रोकटोक नहीं होने के कारण दुकानदार प्लास्टिक का प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। दुकानदार के अलावा आम लोगों में भी अपने घर से झोला व थैला लेकर बाजार जाने की आदत नहीं है। बाजार से प्लास्टिक में ही सामान आमतौर पर लाते हैं।
डॉ. टी पियूष ने बताया कि प्लास्टिक से फूड प्वाइजनिंग, पेट में दर्द, गैस सहित बहुत सी बीमारियां होती हैं। उससे इंसान का जान जाने का खतरा भी बढ़ जाता है। प्लास्टिक किसी भी जीव के लिए खतरनाक होता है। प्लास्टिक मिट्टी में कई वर्षों तक नहीं गलता या सड़ पाता है। खुले में फेंकने के बाद जहां भी प्लास्टिक हो वहां की मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है। साथ ही उसके जलाने पर भी पर्यावरण को नुकसान होता है। उससे कई तरह की जहरीली गैस निकलती है। वह वायु को प्रदूषित करता है। खुले में फेंकने के बाद प्लास्टिक में बासी खाना व हरी पत्तियों के लोभ में उसे आवारा पशु भी खा जाते हैं। उसके बाद पशुओं के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि बाजार खरीदारी के लिए जब भी जाएं झोला साथ लेकर ही जाएं। इससे नियम का पालन भी होगा और वातावरण भी साफ रहेगा। सरकार के निर्देशों का पालन करना सभी लोगों को कर्तव्य है।
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