Forest Department s Service Rules Ignored Forest Guards Stuck in Same Position for 8 Years नियुक्ति के आठ वर्ष बाद भी पीटीआर के वनरक्षियों को न तो प्रोन्नति मिली और न ही हुआ स्थानांतरण , Latehar Hindi News - Hindustan
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नियुक्ति के आठ वर्ष बाद भी पीटीआर के वनरक्षियों को न तो प्रोन्नति मिली और न ही हुआ स्थानांतरण

वन विभाग में सेवा नियमावली का अनुपालन नहीं होने से वनरक्षियों में छाई मायूसी, पांच दर्जन से अधिक वनरक्षी छोड़ चुके हैं विभाग, वर्ष 2017 ई में लातेहार

Newswrap हिन्दुस्तान, लातेहारTue, 22 April 2025 01:19 AM
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नियुक्ति के आठ वर्ष बाद भी पीटीआर के वनरक्षियों को न तो प्रोन्नति मिली और न ही हुआ स्थानांतरण

बेतला, प्रतिनिधि। वन विभाग में सेवा नियमावली कोई खास मायने नहीं रखता। नियुक्ति के बाद वनरक्षियों की प्रोन्नति या स्थानांतरण,सेवा नियमावली पर नहीं, बल्कि संबंधित वनाधिकारियों के मर्जी पर निर्भर करता है। यही वजह कि वर्ष 2017 ई में नियुक्त वनरक्षियों को आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी अबतक उन्हें न तो कोई प्रोन्नति मिली और न ही स्थानांतरण हुआ। नतीजतन वे अबतक सेवा योगदान किए एक ही जगह पर पिछले आठ वर्षों से जमे हुए हैं। जबकि सेवा नियमावली में नियुक्ति के पांच वर्ष बाद से ही प्रोन्नति देने का प्रावधान है।यहां बता दें कि वर्ष 2017 ई में लातेहार जिले में सेवा योगदान दिए कुल 242 वनरक्षियों में 163 ने पीटीआर में कार्यभार संभाला था। इनमें 53 ने पीटीआर के नॉर्थ डिवीजन में और 110 ने साऊथ में योगदान दिया था। पर बाद में किसी कारण से 63 वनरक्षियों ने वन विभाग से त्यागपत्र दे दिया। नतीजतन लातेहार जिले में वनरक्षियों की संख्या सिमटकर 179 रह गई। यहां बता दें आठ वर्ष बाद भी विभाग द्वारा प्रोन्नति मिलने से कार्यरत वनरक्षियों में न सिर्फ मायूसी छाई है, बल्कि उनमें हीनता और उदासीनता का भाव व्याप्त है। इसबारे में रेंजर उमेश कुमार दूबे ने बताया कि वन-विभाग की नई सेवा-नियमावली में वनरक्षियों को पांच वर्ष बाद प्रधान वनरक्षी और 10 वर्ष में वनपाल में प्रोन्नति देने का प्रावधान है।इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारियों से संपर्क करने की बात कही। वहीं काफी प्रयास के बाद भी मामले में संबंधित आरसीसीएफ से संपर्क नहीं हो पाया। इधर झारखंड वनश्रमिक यूनियन पलामू के केंद्रीय अध्यक्ष सिद्धनाथ झा ने कहा कि वनपाल विहीन पीटीआर में सीधे वनरक्षी को प्रभारी वनपाल बनाया जाना और वनरक्षियों के एक ही जगह पर आठ वर्षों से जमे रहना काफी दुर्भाग्यपूर्ण और हास्यास्पद है। विभागीय अधिकारी सिर्फ और सिर्फ वन-श्रमिकों को फेरबदल कर उन्हें परेशान करना जानते हैं।

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