फडिंगा में है 11वीं सदी का शिवलिंग और पौराणिक मंदिर के अवशेष
तोरपा प्रखंड के फडिंगा गांव में बनई नदी के संगम तट पर एक प्राचीन शिवलिंग और मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। ये ऐतिहासिक धरोहर की गवाही देते हैं, लेकिन संरक्षण की कमी के कारण इनकी हालत दयनीय है। ग्रामीणों का...

तोरपा, प्रतिनिधि। तोरपा प्रखंड के फडिंगा गांव के पास बनई नदी के संगम तट पर स्थित एक पौराणिक शिवलिंग और प्राचीन मंदिर के अवशेष आज भी ऐतिहासिक गौरव और सांस्कृतिक धरोहर की गवाही देते हैं। लगभग 200 वर्गफीट क्षेत्र में फैले इस स्थल पर पत्थरों पर बनी मूर्तियां, नक्काशी, ग्रेनाइट के स्तंभ, और मंदिर के प्रवेश द्वार जैसे अवशेष साफ दिखाई देते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि यदि इस स्थल की व्यवस्थित खुदाई हो, तो अन्य बहुमूल्य कलाकृतियां और स्थापत्य संरचनाएं सामने आ सकती हैं। खुले आसमान के नीचे उपेक्षित है धरोहर:
इस ऐतिहासिक स्थल की हालत दयनीय है। शिवलिंग और अन्य अवशेष आज भी निर्जन स्थान पर खुले आसमान के नीचे पड़े हुए हैं। संरक्षण और पुनर्स्थापना की दिशा में आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यहां की पौराणिकता और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं हुई है।
इस स्थल से जुड़ी है असुरों की कथा:
स्थानीय मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में असुर जनजातियों का एक समूह इस क्षेत्र में आया था। उन्होंने एक ही दिन में मंदिर निर्माण का प्रयास किया था, लेकिन किसी कारणवश निर्माण पूरा नहीं हो सका और वे असफल होकर लौट गए। यही कारण है कि यहां अधूरे मंदिर के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इस संबंध में कुछ वर्ष पूर्व परियोजना निदेशक आइटीडीए ने डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान को पत्र भेजकर इस स्थल के संरक्षण की मांग की थी।
शिवलिंग से जुड़ी है वर्षा की मान्यता:
स्थानीय पूर्व मुखिया सोमा मुंडा और जुरदाग के जयसिंह बताते हैं कि यह शिवलिंग आदिकाल से विद्यमान है। ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ माह में जब तक काली गाय के दूध से शिवलिंग का अभिषेक नहीं होता था, तब तक वर्षा नहीं होती थी। अभिषेक होते ही जोरदार बारिश शुरू हो जाती थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन कुछ सदी पूर्व पश्चिमी सिंहभूम के खंडा गांव का कोई पाहन इस शिवलिंग को ले गया। इसके बाद इस गांव और आसपास के लोग विचलित हो गए। बारिश होनी रुक गई। गाव में कुछ न कुछ विपत्ति आने लगी। किसी तरह जब पता चला कि यहां का शिवलिंग चोरी कर खंडा गाव ले जाया गया है, तो यहां के ग्रामीण उस गांव में जाकर शिवलिंग को वापस लेकर आए। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिवलिंग को उसी स्थान पर स्थापित किया गया।
मंदिर की भव्यता के संकेत:
सोमा मुंडा बताते हैं कि उनके पूर्वजों के अनुसार यह स्थल कभी एक दर्शनीय मंदिर परिसर रहा होगा। यहां एक जोड़ी नंदी, हल, चौखट में देवी-देवताओं की नक्काशी आदि से प्रतीत होता है कि यहां बहुत विशाल मंदिर रहा होगा।
पुरातत्व विभाग की टीम ने की थी जांच:
दैनिक हिन्दुस्तान में 7 सितंबर 2012 को जब इस स्थल को लेकर खबर प्रकाशित हुई, तो प्रदान के प्रेमशंकर की पहल पर 12 अक्टूबर 2012 को भारत सरकार के पुरातत्व विभाग की टीम यहां पहुंची थी। टीम ने शिवलिंग, मंदिर के अवशेष, पत्थर के बने दो बैल और संगम तट का निरीक्षण किया। विभाग के एनजी निकोसे ने बताया था कि यह 11वीं सदी का शिवलिंग है, जो ग्रेनाइट से बना है और ऐतिहासिक धरोहर है। टीम में अब्दुल आरिफ, जयशंकर नायक, केके झा जैसे अधिकारी शामिल थे।
संरक्षण की जरूरत:
स्थानीय और आसपास के गामीणों का कहना है कि इतिहास और पौराणिकता से जुड़ा यह स्थल अब भी उपेक्षा का शिकार है। ग्रामीणों ने एक बार फिर शासन-प्रशासन से अपील की है कि इस पौराणिक स्थल का संरक्षण और पुनरुद्धार कर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, जिससे यहां की सांस्कृतिक विरासत को अगली पीढ़ियों तक सुरक्षित रखा जा सके।
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