Challenges Faced by Agricultural Workers in Jharkhand Need for Better Training and Designation बोले रांची: नियुक्ति कृषि कार्य में, पर काम सभी विभागों का करना पड़ रहा, Ranchi Hindi News - Hindustan
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बोले रांची: नियुक्ति कृषि कार्य में, पर काम सभी विभागों का करना पड़ रहा

झारखंड में जनसेवकों की नियुक्ति कृषि कार्य के लिए की गई थी, लेकिन वे अब अन्य विभागों में कार्य कर रहे हैं। जनसेवकों को उचित प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है, जिससे उन्हें प्रमोशन और वेतन में समस्याएं आ...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीThu, 17 April 2025 05:55 PM
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बोले रांची: नियुक्ति कृषि कार्य में, पर काम सभी विभागों का करना पड़ रहा

रांची। राज्य में जनसेवकों की नियुक्ति कृषि कार्य के लिए की गई थी, लेकिन इसमें आज वे मात्र 10 प्रतिशत योगदान ही दे पा रहे हैं। अन्य विभागों के कार्यों में उनकी सेवा अधिक ली जा रही है। इतना ही नहीं, कार्य करके भी जनसेवक पद स्पष्ट नहीं होने से भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना कार्य क्षेत्र में करना पड़ता है। प्रोन्नति और वेतन निकासी को लेकर भी वे काफी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में राज्य के जनसेवक शामिल हुए। इसमें उनका कहना था कि उनकी नियुक्ति कृषि कार्य के लिए की गई थी, लेकिन आज वे ऑलराउंडर की तरह काम कर रहे हैं। इसमें भी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उनकी समस्या है कि ऐसा अक्सर होता है कि कृषि मद में पूरे साल भर के लिए आवंटन उपलब्ध नहीं कराया जाता है। ऐसे में आवंटन की कमी के कारण कई महीनों तक बिना वेतन के घर चलाने में कठिनाई आती है। वैसे जनसेवक जिन्हें लोन का इएमआई का भुगतान नियमित तिथि को करना होता है उनकी स्थिति दयनीय हो जाती है।

हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में जनसेवकों ने अपनी समस्याएं रखीं। उनका कहना था कि नियुक्ति के बाद जनसेवकों को अनिवार्य विभागीय प्रशिक्षण दिया जाना है, लेकिन कई जिलों के कुछ जनसेवक बिना प्रशिक्षण के अपनी सेवा दे रहे हैं। प्रशिक्षण के अभाव में उन्हें प्रोन्नति आदि का लाभ नहीं मिल सकता है। ऐसे में उनके करियर के सामने अंधेरा सा छा गया है। जेनसेवकों ने अपनी समस्या रखते हुए कहा कि जनसेवक नियुक्ति नियमावली-2012 के अनुसार जनसेवकों को 10 वर्ष की सेवा के बाद प्रखंड कृषि पदाधिकारी एवं समकक्ष पदों पर प्रोन्नति दी जानी है, लेकिन नियुक्ति के 12 साल बाद भी राज्य स्तरीय वरीयता सूची का निर्धारण नहीं होने के कारण जनसेवकों को प्रोन्नति नहीं दी जा सकती है, जबकि अधिकांश प्रखंड में प्रखंड कृषि पदाधिकारी का प्रभार जनसेवकों को ही दिया गया है। दुखद है कि प्रोन्नति न मिलने से बिना अतिरिक्त वेतन लाभ के उच्चतर पद का कार्य लिया जा रहा है। उनका कहना है कि वर्तमान में अधिकांश प्रखंड में पर्यवेक्षकीय पद रिक्त हैं। इन पदों पर अतिरिक्त प्रभार में जन सेवक ही हैं। ऐसी स्थिति में जब तक पर्यवेक्षक पदों को नियुक्ति द्वारा न भरा जाए। तबतक प्रोन्नति देकर प्रखंड कृषि पदाधिकारी के पदों पर जनसेवकों को पदोन्नत किया जा सकता है और तब पर्यवेक्षक के पदों का प्रभार एक जिम्मेदारी के साथ इन्हें सौंपा जा सकता है।

कार्य प्रकृति बदल दी गई

जनसेवकों ने कहा कि कृषि कार्यों में जनसेवकों का शत प्रतिशत सहभागिता न हो पाना परेशानी का सबब है। वर्तमान में जनसेवक पद की कार्य प्रकृति बदल दी गई है। बिना प्रशिक्षण के गैर कृषि प्रभार दिया जा रहा है, लेकिन मातृ विभाग द्वारा विभागीय आदेशों में जनसेवक को विलोपित करते हुए दरकिनार किए जाने से स्थिति और गंभीर रूप धारण कर रही है। कई बार कार्यशालाओं में भी जनसेवकों को इसकी सूचना तक नहीं दी जाती है न ही पत्र में उनके संबंध में उल्लेख किया जाता है, जबकि कृषि विभाग का ग्रास रूट स्तर का एकमात्र सरकारी सेवक जनसेवक ही हैं।

डीडीओ बदलने से राहत मिलेगी

जनसेवकों का कहना है कि वर्तमान में जनसेवक के निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी (डीडीओ) प्रखंड स्तर पर प्रखंड विकास पदाधिकारी होते हैं। उनसे अधिकांशतः ग्रामीण विकास विभाग एवं पंचायती राज विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की समीक्षा की जाती है। ऐसे में जनसेवकों के कृषि कार्यों में महत्ता को दरकिनार कर गैर कृषि कार्यों लगा कर लक्ष्य हासिल करने की सोच होती है। चूंकि वेतन भुगतान और नियंत्री पदाधिकारी वे स्वयं होते हैं तो जनसेवक मजबूर हो कर उन लक्ष्यों को हासिल करने में अपनी सारी ऊर्जा लगाते हैं। वेतन रोके जाने और प्रताड़ित होने का डर होता है। डीडीओ बदले जाने से इस परेशानी का हल हो सकता है। उनका कहना है कि जनसेवक पदनाम से कार्य प्रकृति और विभाग स्पष्ट नहीं हो पता है, जिस कारण क्षेत्र में बार-बार स्पष्ट करना पड़ता है कि वह जनसेवक हैं, जो कृषि विभाग के अंतर्गत कृषि योजनाओं का संचालन करते हैं। ऐसे में कृषि सहित पदनाम से किसानों और क्षेत्र में स्पष्ट जागरुकता बढ़ेगी तथा आसानी से किसान कृषि कर्मियों तक पहुंच पाएंगे साथ ही उचित सम्मान जनक पदनाम से कर्मियों का मनोबल भी बढ़ेगा।

उचित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता

जेनसेवकों का कहना है कि जनसेवक गैर कृषि कार्यों में लगाए जाते हैं पर उन्हें इसके लिए उचित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। प्रशिक्षण के अभाव में कई बार गलतियां होती हैं और गलतियों को आधार बनाकर दंडात्मक कार्रवाई, निलंबन आदि कई मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज करने जैसी कार्रवाई हुई है। स्थानांतरण के बाद नवपदस्थापन प्रखंड में कई बार नए गैर कृषि कार्य दे दिए जाते हैं। जैसे पिछले प्रखंड में जो प्रखंड कल्याण पदाधिकारी का प्रभार संभाल रहे होते हैं, उन्हें नये पदस्थापन के बाद यदि प्रखंड सांख्यिकी पर्यवेक्षक या प्रखंड कृषि पदाधिकारी या सहायक गोदाम प्रबंधक जैसे प्रभार दे दिए जाएं तो कार्य करने में और भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे में किसी एक कार्य में विशेषज्ञता हासिल नहीं हो पाती है। अर्थात जनसेवक को बहुउद्देशीय कार्यकर्ता बना दिया गया है। इसके लिए विभागीय अनुमति भी नहीं ली जाती है। ऐसे में विभाग को भी इस संदर्भ में सूचना नहीं मिल पाती है और जनसेवकों को एक साथ अनेकों आदेश का अनुपालन करने की जिम्मेदारी होती है और एक साथ एक से अधिक विभाग और पदाधिकारी के नियंत्रण और जिम्मेदारी में रहना होता है।

जनसेवक गैर कृषि कार्य में अधिक रहते हैं परेशान

जनसेवकों ने बताया कि उनकी नियुक्ति सरकार के द्वारा कृषि कार्य के लिए की गई है, लेकिन उन सभी जनसेवकों से अन्य विभाग के कार्य जैसे प्रभारी प्रखंड कल्याण, प्रभारी सांख्यिकी पर्यवेक्षिका पर्यवेक्षक, प्रभारी प्रखंड पंचायती राज्य पदाधिकारी और जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, आरटी और सहायक गोदाम प्रबंधक जैसे कई गैर-कृषि कार्य कराए जाते हैं। सभी काम बिना किसी प्रशिक्षण के जनसेवकों से कराया जाता है। गलती होने पर उन्हें कई बार सस्पेंड भी कर दिया जाता है। इन सभी गैर कृषि कार्य करने के कारण जनसेवक अपने मुख्य कार्य से नहीं जुड़ पाते हैं और न ही कृषि कार्य से जुड़ी जानकारी रख पाते हैं। इन्हीं कारणों के कारण जनसेवक किसानों को कई बार जानकारी भी नहीं दे पाते हैं।

जनसेवकों को कृषि प्रसार पदाधिकारी किया जाए

जनसेवकों ने मांग की रखी कि जिस प्रकार से सभी विभागों के पदाधिकारियों का नाम उनके विभाग के साथ जोड़कर रखा जाता है। उसी प्रकार हमारे भी पदनाम में बदलाव किए जाए। जनसेवक होने के कारण कई बार लोगों को हमारे कार्य के बारे में नहीं पता चल पाता है। कहा, सरकार से अनुरोध करते हैं कि जल्द से जल्द हमारा पदनाम बदलकर जनसेवक से कृषि प्रसार पदाधिकारी कर दिया जाए।

कृषि उपकरण भी नहीं मिल पाता है

जनसेवकों ने बताया कि कृषि विभाग की ओर से हम सभी को किसी भी प्रकार के उपकरण तक उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। जब फसलों को काटा जाता है तब विभाग की ओर से सभी फसलों का वजन कर डाटा के साथ विभाग को भी भेजना होता है, लेकिन वजन मापने के लिए विभाग की ओर से न तराजू और न बटखारा आदि उपलब्ध कराए जाते हैं। सुदूर और ग्रामीण इलाकों में किसी भी प्रकार की कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं होती है, जिस कारण कार्य करना काफी मुश्किलों भरा हो जाता है।

न स्मार्ट फोन और न ही वाहन भत्ता, कैसे करें काम

जनसेवकों को कृषि कार्य करने के लिए कई बार सुदूर जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में भी भेज दिया जाता है। जहां पर नेटवर्क का भी काफी अभाव रहता है। जिस कारण कृषि ऐप पर किसी भी प्रकार की जानकारी जल्द अपलोड नहीं हो पाती है। साथ ही इन इलाकों में जाकर कार्य करने के लिए भी जनसेवकों को सरकार अलग से किसी भी प्रकार का कोई वाहन भत्ता या राशि नहीं देती है।

समस्याएं

1. कृषि मद में आवंटन अभाव के कारण नियमित वेतन भुगतान न होना।

2. बायोमेट्रिक उपस्थिति की अनिवार्यता क्षेत्र स्तर पर काम करने की चुनौती।

3. वर्तमान समय में कृषि से अलग अन्य विभागीय कार्यों में भी जनसेवकों की भूमिका होती है।

4. जनसेवक संवर्ग को जबरन बिना किसी प्रशिक्षण के कई कार्यों का प्रभार दे दिया जाता है।

5. जनसेवक से कार्यबोध नहीं होता। क्षेत्र में इसे लेकर काफी चुनौतिसों का सामना करना पड़ता है।

सुझाव

1. क्षेत्र भ्रमण करनेवाले कार्यों के कारण बायोमेट्रिक उपस्थिति की अनिवार्यता नहीं रखी जाए।

2. जनसेवकों को कृषि कार्य में भी लगाया जाए, जिससे योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक पहुंचे।

3. जनसेवकों को अतिरिक्त प्रभार न दिया जाए, दिया भी जाए तो पहले प्रशिक्षण कराया जाए।

4. जनसेवक नाम बदलकर कृषि प्रसार पदाधिकारी पदनाम किया जाए, ताकि काम सुगम हो।

5. डीडीओ बदलने से वेतन निकासी में परेशानी नहीं होगी, इसे तत्काल करना चाहिए।

बोले जनसेवक

हम जनसेवकों से कृषि कार्य के अलावा सभी तरह के गैर कृषि कार्य कराए जाते हैं। जबकी हमारी नियुक्ति केवल कृषि कार्य के लिए ही की गई है। पंचायत सचिव, बीएसओ, जेएसएस और एजीएम के कार्य भी सौंपे और कराए जाते हैं। इन्हीं कामों में लगे रहने के कारण मूल कार्य को नहीं कर पाते हैं। हमारा मुख्य कार्य कृषि से ही जुड़ा हुआ है।

- कुणाल गौरव

हमलोगों को जनसेवक कार्य से जुड़े हुए 12 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन आज तक प्रमोशन नहीं मिला। हमारे पदनाम से कुछ भी पता नहीं चल पाता। नाम को बदलकर कृषि प्रसार पदाधिकारी किया जाए। इसके साथ ही जितने भी जनसेवकों को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है, उनके लिए प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जाए।

- महिमा लकड़ा

राज्य में जितने भी योग्य जनसेवक हैं, उनमें से कई लोगों को एमएसीपी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इपसर पहल जरूरी है।

-अभिषेक कुमार

प्रतिनियुक्ति कृषि कार्य के लिए हुई है, लेकिन मुख्य कार्य की जगह अन्य विभाग के कार्य बिना प्रशिक्षण के कराए जाते हैं।

-ब्रजेश कुमार

जनसेवक नाम से किसी को भी हमारे कार्य के बारे में पता नहीं चल पाता है। पदनाम बदलकर कृषि प्रसार पदाधिकारी हो।

- दिलीप कुमार यादव

जिस प्रकार से पंचायत सचिव के लिए पंचायत सचिवालय की व्यवस्था हैं। उसी प्रकार कृषि प्रसार कार्यलय की व्यवस्था हो।

- दीपक कुमार सिंह

कृषि कार्य से कई बार हमें बाहरी इलाकों में जाना पड़ता है। बॉयोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज करने में परेशानी होती है।

-संजय सुरीन

हम सभी जनसेवकों को हमारे मुख्य कार्य से नहीं जोड़ा जाता। इस कारण कई बार कृषि योजनाओं की जानकारी नहीं हो पाती।

-सीमा इंदु सिंह

हम सभी जनसेवकों को आधुनिक कृषि तकनीक और सूचनाओं के लिए प्रशिक्षण मिले। मुख्य कार्य से ही जाेड़े रखा जाए।

-मधुसूदन सिंह

कृषि कार्य करने के लिए सुदूर और ग्रामीण इलाकों में जाना पड़ता है, लेकिन किसी प्रकार का कोई वाहन भत्ता नहीं मिलता।

-संजय मुकुट ब्लूम

जनसेवक पदनाम से कार्य प्रकृति और विभाग स्पष्ट नहीं हो पाता है। वहीं, बिना जनसेवकों के हस्ताक्षर के कई कार्य हो जाते हैं।

-लखन लाल पंडित

कृषि कार्य में कटनी से संबंधित उपकरण तक उपलब्ध नहीं हो पाता। फसलों का भार नापने में भी परेशानी का सामना करते हैं।

-सुशील कुमार आनंद

प्रमोशन नहीं मिलने के कारण कर्मी जनसेवक के पद से ही सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

-कमला कांति किंडो

हम जनसेवकों का वेतन ग्रामीण विकास 25 और 15 के मध्य से नहीं होना चाहिए। वेतन 240 कृषि मद से मिले। सुविधाएं भी बढ़े।

-इशरत परवीन

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